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माउंट एवरेस्ट को फतह करना दुनिया भर में चुनौती के साथ रोमांच भी रहा है - Sabguru News
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माउंट एवरेस्ट को फतह करना दुनिया भर में चुनौती के साथ रोमांच भी रहा है

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माउंट एवरेस्ट को फतह करना दुनिया भर में चुनौती के साथ रोमांच भी रहा है
Special on International Everest Day
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Special on International Everest Day

सबगुरु न्यूज। जिस खबर के बारे में आपको बताने जा रहे हैं वह कोई साधारण नहीं है बल्कि संसार भर वैज्ञानिकों के लिए असाधारण बल्कि उससे भी आगे है।‌ जी हां हम आज बात कर रहे हैं दुनिया की सबसे ऊंची चोटी माउंट एवरेस्ट की।‌ इस चोटी का नाम सुनते ही चुनौती, रोमांच और इसको फतेह करने की विचार आने लगते हैं। माउंट एवरेस्ट भी अपना डे मनाता है यानी 29 मई को। इस दिन विश्व के लाखों लोग इस इस विशालकाय एवरेस्ट को याद करते हैं। यह डे क्यों मनाया जाता है आइए आपको बताते हैं।‌ 29 मई इतिहास में एक अहम तारीख है। यही वह दिन है जब दुनिया की सबसे पर्वत चोटी माउंट एवरेस्ट को इंसान ने फतह किया था। यह पर्वत चोटी पर्वतारोहियों के लिए सदैव आकर्षण का केंद्र रही है। चाहे अनुभवी पर्वतारोही हों या नौसिखिए, सभी यहां आना चाहते हैं।

इसकी चढ़ाई भी बहुत कठिन है। यहां प्राकृतिक खतरे, ऊंचाई पर होने वाली कमजोरी, मौसम और हवा ऊपर चढ़ने में मुश्किलें पैदा करते हैं। चीन ने अभी हाल ही में दुनिया की सबसे ऊंची चोटी की ऊंचाई को मापने के लिए एक नया सर्वेक्षण शुरू किया। माउंट एवरेस्ट की ऊंचाई को लेकर चीन नेपाल की माप से संतुष्ट नहीं है। वहीं दूसरी ओर चीन के इस कदम से वैज्ञानिकों का मानना ​​है कि यह प्रकृति के संबंध में इंसान की समझ को बढ़ाएगा और वैज्ञानिक विकास को बढ़ावा देने में मदद करेगा।

पर्वतारोही एडमंड हिलेरी की याद में मनाया जाता है एवरेस्ट डे

1953 में दिन सर एडमंड हिलेरी और तेनजिंग नोर्गे शेरपा द्वारा माउंट एवरेस्ट की पहली चढ़ाई की याद में हर वर्ष 29 मई को एवरेस्ट दिवस मनाया जाता है। इस दिन को नेपाल ने 2008 से अंतर्राष्ट्रीय एवरेस्ट दिवस के रूप में मनाने का फैसला किया जब महान पर्वतारोही हिलेरी का निधन हुआ था। माउंट एवरेस्ट, जिसे नेपाली में सागरमाथा के नाम से जाना जाता है और तिब्बत में चोमोलुंगमा के रूप में, समुद्र तल से ऊपर पृथ्वी का सबसे ऊंचा पर्वत है, यह हिमालय की महालंगुर हिमालय उप-सीमा में स्थित है।

नेपाल और चीन के बीच अंतर्राष्ट्रीय सीमा अपने शिखर बिंदु पर है। या विश्व की सबसे ऊंची चोटी है। समुद्र तल से 27,658 फीट की ऊंचाई पर है। नेपाल पर्यटन के लिए पर्वतारोही कमाई का एक महत्वपूर्ण जरिया है। माउंट एवरेस्ट पर चढ़ने के लिए नेपाल सरकार द्वारा अनुमति लेनी पड़ती है जिसके लिए 25 हजार अमेरिकी डॉलर प्रति व्यक्ति चुकाना पड़ते हैं।

माउंट एवरेस्ट पर वर्ष 1953 में कुछ इस प्रकार हुई थी चढ़ाई की शुरुआत

1953 में जॉन हंट के नेतृत्व में ब्रिटिश अभियान की शुरुआत हुई। उन्होंने दो पर्वतारोहियों टॉम बर्डिलन और चार्ल्स इवान्स के दल को सबसे पहले माउंट एवरेस्ट पर चढ़ने के लिए भेजा, लेकिन वे दोनों 300 फुट की ऊंचाई तक जाकर 26 मई 1953 को थके वापस लौट आए, क्योंकि उन्हें ऑक्सीजन की कमी महसूस होने लगी थी। उसके दो दिन बाद दूसरे दल को तैयार किया गया।

इस दल में न्यूजीलैंड के एडमंड हिलेरी और नेपाली शेरपा तेनजिंग नोर्गे थे। वे 29 मई 1953 को सुबह 11.30 बजे चोटी पर पहुंचे थे। सबसे पहले हिलेरी ने शिखर पर कदम रखा। उन्होंने वहां फोटो खींचे और एक-दूसरे को मिठाई खिलाई। उस समय सागरमाथा यानी माउंट एवरेस्ट पर चढ़ने वाले यह दोनों पहले पर्वतारोही बने थे। जभी से विश्व भर में इस एवरेस्ट को फतह करने के लिए लोगों में आज भी होड़ लगी रहती है।

भारत की बछेंद्री पाल और संतोष यादव ने माउंट एवरेस्ट पर की थी चढ़ाई

भारत की पहली महिला पर्वतारोही बछेंद्री पाल ने माउंट एवरेस्ट पर चाहे की थी।‌ उसके बाद महिला पर्वतारोही संतोष यादव ने भी इस रेस्ट पर चढ़ाई करने में सफल रही थी। 23 मई 1984 यह दिन भारतीय इतिहास में खास है क्योंकि बछेंद्री पाल ने इसी दिन माउंट एवरेस्ट की चोटी पर झंडे गाढ़े थे। ऐसा करने वाली वह भारत की पहले महिला पर्वतारोही हैं और यह उपलब्धि उन्होंने 29 साल की उम्र में हासिल की थी। इसके बाद तो जैसे बछेंद्री, कई पर्वतारोहियों के लिए मिसाल बन गईं।‌

1993 में पाल ने एवरेस्ट जाने वाले भारत के पहले महिला अभियान की अगुवाई की। इसमें नेपाल और भारत की कुल 16 महिला पर्वतारोही शामिल थीं जो चोटी पर पहुंची। इसमें संतोष यादव भी थीं जो दुनिया की पहली महिला बनी जो एक ही साल में दो बार एवरेस्ट की चोटी पर गई। गौरतलब है माउंट एवरेस्ट को फतह करना हर पर्वतारोही की ख्वाहिश होती है। हर साल कुछ लोग इसको फतह करने में कामयाब भी हो जाते हैं और कुछ को नाकामयाबी हासिल होती है।

माउंट एवरेस्ट पर चढ़ने में सैकड़ों लोगों की जान चली गई लेकिन फिर भी जुनून कम नहीं हुआ

माउंट एवरेस्ट चढ़ाई को लेकर दुनिया भर के देशों के सैकड़ों लोगों की जान चली गई है लेकिन फिर भी इसको फतेह करने के लिए आज भी जुनून कम नहीं हुआ है। एवरेस्ट या आठ हजार मीटर से ऊंची तमाम चोटियों पर चढ़ाई या उनका आरोहण कभी भी आसान नहीं रहा। ‌लेकिन एवरेस्ट पर अब तक हुई दुर्घटनाओं में ज्यादातर एवरेस्ट की प्रतिकूल मौसमी परिस्थितियों, हिमस्खलनों और दरार में फंस जाने जैसी वजहों से हुई थीं। जबकि इस वर्ष ज्यादातर दुर्घटनाएं पर्वतारोहियों की अनुभवहीनता, नेपाल के खराब प्रबंधन, भीड़ और आरोहियों के अति उत्साह के कारण हुई हैं।

माउंट एवरेस्ट पर बढ़ते हादसों को लेकर नेपाल सरकार को यह सोचने पर मजबूर होना पड़ गया है कि एवरेस्ट आरोहण को किस तरह अधिक सुरक्षित बनाया जाए और मानवजनित हादसों पर किस तरह रोकथाम लगाई जाए। हम आपको बता दें कि अभी पिछले वर्ष माउंट एवरेस्ट पर चढ़ने वालों की इतनी भीड़ लग गई थी कि इस दुनिया की चोटी पर भी जाम की स्थिति बन गई थी। अत्यधिक जाम होने की वजह से 11 पर्वतारोहियों ने अपनी जान भी गंवा दी थी। इसके बावजूद भी इस एवरेस्ट को फतह करने के लिए जोश और जज्बा अभी भी बरकरार है।

शंभू नाथ गौतम, वरिष्ठ पत्रकार