सबगुरु न्यूज। 22 मई यानी शुक्रवार जेष्ठ अमावस्या को इस बार शनि भक्तों के लिए खास है। यही नहीं शनि के प्रकोप से पीड़ित व्यक्तिओं के लिए शनि जयंती आस्था और वरदान से जुड़ी हुई होती है। यह भी कहा जाता है कि जन्म कुंडली में शनि जब अशुभ स्थिति में होते हैं तो व्यक्ति को कई तरह के कष्ट देते हैं। वैसे तो भक्तों के लिए हर शनिवार ही अपने आराध्य को प्रसन्न करने के लिए रहता है, लेकिन इस बार शनिदेव जयंती पर वर्षों बाद दुर्लभ संयोग पड़ने से और भी खास हो जाता है। सूर्य पुत्र भगवान शनि की पूजा पाठ करने से सभी कष्ट दूर हो जाते हैं। राशि चक्र के अनुसार शनि मकर और कुंभ राशि के स्वामी हैं। शनि लोगों को उनके कर्मों के आधार पर कृपा बरसाते हैं।
शुक्रवार को पूरे देश भर में शनि उत्सव धूमधाम के साथ मनाया जाएगा। ज्येष्ठ मास में कृष्ण पक्ष की अमावस्या को शनि देव का जन्म हुआ था। मंदिरों में भगवान शनि की आराधना की जाएगी। मान्यता है कि इस दिन शनिदेव की पूजा करने से साढ़ेसाती, ढैय्या और महादशा से मुक्ति मिल जाती है। इस दिन शनि चालीसा और शनि स्त्रोत का पाठ करना भी काफी फलदायी माना गया है। इस दिन मंदिरों में काफी भीड़ रहती है लेकिन इस बार कोरोना संकट के चलते भक्त कम ही मंदिर जा पाएंगे। घर पर ही रह कर शनि जयंती पर पूजा पाठ कर सकतेे हैं।
वर्षों बाद शनि जयंती पर पड़ेगा ऐसा संयोग
महाराज इस समय अपनी राशि मकर में स्थित हैं यह भूमि तत्व की राशि है जिसमें शनि के साथ गुरु भी मौजूद है। ऐसा संयोग 59 साल पहले 1961 में बना था। इस साल के बाद फिर ऐसा ही संयोग 2080 में बनेगा। उस वक्त भी आज जिस तरह से तूफान और प्राकृतिक आपदाओं से मानव जाति संकट से गुजर रही है। इसी तरह की स्थिति का सामना करना पड़ सकता है।
इस दिन ज्येष्ठ महीने की अमावस्या रहेगी। इसके साथ ही छत्र योग, कृतिका नक्षत्र और चंद्रमा अपनी उच्च राशि वृष में रहेगा। इस दिन पितृ पूजा का भी विशेष महत्व बताया गया है। शनिदेव और उनके भाई यम दोनों की पूजा एक ही दिन हो ऐसा संयोग सिर्फ शनि जयंती पर आता है। इसलिए इस दिन घर के बाहर दक्षिण दिशा में यम के लिए दीपक लगाया जाता है।
भगवान शनिदेव की इस प्रकार करें पूजा-पाठ
इस दिन सुबह स्नान करने के बाद व्रत का संकल्प लें। फिर काले कपड़े पर शनिदेव की मूर्ति या फिर एक सुपारी रखकर उसके दोनों और शुद्ध घी व तेल का दीपक जलाकर धूप जलाएं। शनिदेवता की प्रतिमा को पंचामृत से स्नान करवायें। इसके बाद अबीर, गुलाल, काजल लगाकर नीले या काले फूल अर्पित करें। भोग स्वरूप इमरती व तेल से बनी वस्तुओं को अर्पित करें। फिर फल अर्पित करें। पंचोपचार पूजा करने के बाद शनि मंत्र का कम से कम एक माला जप करना चाहिए।
इसके बाद शनि चालीसा का पाठ करें और आरती उतारकर पूजा संपन्न करें। शनिदेव की पूजा करने के दिन सूर्योदय से पहले शरीर पर तेल मालिश कर स्नान करना चाहिए। किसी जरूरतमंद गरीब व्यक्ति को तेल में बने खाद्य पदार्थों का दान करना चाहिए। गाय और कुत्तों को भी तेल से बने पदार्थ खिलाने चाहिये। बुजुर्गों और जरुरतमंदों की सेवा करनी चाहिए।
जेष्ठ अमावस्या पर दान-पुण्य करना बहुत ही शुभ माना जाता है
ज्येष्ठ मास में अमावस्या को धर्म कर्म, स्नान-दान आदि के लिहाज से यह बहुत ही शुभ व सौभाग्यशाली माना जाता है। इस दिन को ही शनि जयंती के रूप में भी मनाया जाता है। ग्रंथों के अनुसार ज्येष्ठ अमावस्या को न्यायप्रिय ग्रह शनि देव का जन्म हुआ था। इसलिए इस दिवस को शनि जयंती के रूप में मनाया जाता है। शनि दोष से बचने के लिये इस दिन शनिदोष निवारण के उपाय विद्वान ज्योतिषाचार्यों के करवा सकते हैं। इस कारण ज्येष्ठ अमावस्या का महत्व बहुत अधिक बढ़ जाता है। इतना ही नहीं शनि जयंती के साथ-साथ महिलाएं अपने पति की लंबी आयु के लिए इस दिन वट सावित्री व्रत भी रखती हैं। इसलिेए उत्तर भारत में तो ज्येष्ठ अमावस्या विशेष रूप से सौभाग्यशाली एवं पुण्य फलदायी मानी जाती है।
शंभू नाथ गौतम, वरिष्ठ पत्रकार