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Special on music and singing legend Bhupen Hazarika death anniversary - Sabguru News
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हजारिका ने जब ‘ओ गंगा तुम बहती हो क्यों’ गाया तब गंगा भी कलकल करने लगी थी

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हजारिका ने जब ‘ओ गंगा तुम बहती हो क्यों’ गाया तब गंगा भी कलकल करने लगी थी
Bhupen Hazarika, the maharathi of singing
Bhupen Hazarika, the maharathi of singing
Bhupen Hazarika, the maharathi of singing

आज हम आपको एक ऐसे संगीत और गायन के महारथी के बारे में बताएंगे जो कि बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। जीवन के अपने आखिरी समय में भी वह संगीत और गायन के लिए समर्पित रहे। 90 के दशक में जब उन्होंने ‘ओ गंगा तुम बहती हो क्यों’ गाया तो मानो गंगा भी ‘कलकल’ करने लगी थी। जी हां हम बात कर रहे हैं भूपेन हजारिका की। हजारिका की आज पुण्यतिथि के मौके पर आइए उनको याद करते हैं हुए उनके संगीत और जिंदगी का सफर कैसा रहा, आपको रूबरू कराते हैं।

संगीत की दुनिया के महारथी भूपेन हजारिका के गानों को आज भी फैंस याद करते हैं।

हजारिका का जन्म 8 सितंबर 1926 को असम के तिनसुकिया जिले की सदिया में हुआ था। वे अपने 10 भाई-बहनों में सबसे बड़े थे। हजारिका का संगीत के प्रति लगाव अपनी मां के कारण हुआ जिन्होंने उन्हें पारंपरिक असमिया संगीत की शिक्षा दी। बचपन में ही भूपेन ने पहला गीत लिखा और 10 साल की उम्र में ही गाना शुरू कर दिया था। फिल्‍ममेकर ज्‍योति प्रसाद अग्रवाल ने भूपेन हजारिका को सुना तो उनकी आवाज बेहद पसंद आई। साल 1936 में कोलकाता में भूपेन ने अपना पहला गाना रिकॉर्ड किया था। यहीं से उनके संगीत का सफर शुरू हुआ था। एक बार महान गायिका लता मंगेशकर ने कहा था कि आसाम का मतलब ही भूपेन हजारिका है। 5 नवंबर 2011 को अपने निधन के समय भी भूपेन हजारिका संगीत और गायकी के लिए काम करते रहे।

संगीत से इतना लगाव था कि अध्यापक की नौकरी भी छोड़ दी थी

हजारिका ने 13 साल की उम्र में तेजपुर से मैट्रिक की परीक्षा पास की। इसके बाद 1942 में गुवाहाटी के कॉटन कॉलेज से इंटरमीडिएट किया। 1946 में हजारिका ने बनारस हिंदू विश्वविद्यालय से राजनीति विज्ञान में एम ए किया। 1949 में वे पत्रकारिता में पीएचडी करने के लिए अमेरिका चले गए। पढ़ाई के बाद हजारिका ने गुवाहाटी में ऑल इंडिया रेडियो में गाना शुरू कर दिया था। कोलंबिया यूनिवर्सिटी के दौर पर गए भूपेन हजारिका की मुलाकात प्रियम्वदा पटेल से हुईं। दोनों के प्‍यार की शुरुआत हुई और 1950 में दोनों ने अमेरिका में ही शादी कर ली। दो साल बाद प्रियम्वदा ने एक बेटे को जन्‍म दिया।

एक साल बाद ही हजारिका अपने परिवार के साथ भारत लौट आए। उन्‍होंने गुवाहाटी यूनिवर्सिटी में बतौर अध्‍यापक काम करना शुरू किया लेकिन ज्‍यादा दिनों तक वे नौकरी नहीं कर पाए और इस्‍तीफा दे दिया। पैसों की तंगी के कारण उनकी पत्‍नी ने भी उन्‍हें छोड़ दिया। इसके बाद उनका झुकाव संगीत की ओर चला गया।

 हजारिका अपने गाने खुद लिखते, संगीतबद्ध करते और गाते थे

भूपेन हजारिका गीतकार, संगीतकार और गायक थे। इसके अलावा वह कवि, फिल्म निर्माता, लेखक, असम की संस्कृति और संगीत के अच्छे जानकार भी थे। भूपेन  देश के ऐसे महान कलाकार थे जो अपने गाने खुद लिखते, संगीतबद्ध करते और गाते थे। भूपेन हजारिका के गीतों ने करोड़ों लोगों के दिलों को छुआ।

अपनी मूल भाषा असमिया के अलावा उन्होंने हिंदी, बंगला समेत कई भारतीय भाषाओं में गाना गाए। फिल्म ‘गांधी टू हिटलर’ में महात्मा गांधी के भजन ‘वैष्णव जन’ में उन्‍होंने अपनी आवाज दी थी। उन्‍होंने ‘रुदाली’, ‘साज’, ‘मिल गई मंजिल मुझे’, ‘दरमियां’, ‘गजगामिनी’ और ‘दमन’ जैसी सुपरहिट फिल्मों में गीत दिए। उन्‍होंने अपने जीवन में एक हजार गाने और किताबें लिखीं। उन्होंने कई गीतों को जादुई आवाज दी। ओ गंगा तुम बहती क्यों है, और दिल हूम हूम करे जैसे गीतों ने भूपेन हजारिका को प्रशंसकों को दिलों में हमेशा के लिए बसा दिया।

यह अभिनेत्री हजारिका के प्रेम में जीवन के आखिरी पड़ाव तक रहीं दीवानी

बॉलीवुड की मशहूर अभिनेत्री कल्पना लाजमी हजारिका से पहली बार मिलते वक्त उनकी उम्र केवल 17 साल थी। उस वक्त हजारिका 45 साल के थे। आत्मकथा में लाजमी ने कहा है मेरी उनके साथ नजरे मिलीं, और पहली नजर में प्यार हो गया। इसका प्रतिबिंब मैंने 40 साल बाद भी उसकी आंखों में देखा जब उनके जीवन की रोशनी बुझने वाली थी।

हॉपर कालिंस द्वारा प्रकाशित किताब में उन्होंने लिखा है कि हमारी जिंदगी में जवानी से बुजुर्ग होने तक पारस्परिक प्रेम और जुनून की निरंतर यात्रा रही। बॉलीवुड की मशहूर एक्ट्रेस कल्पना लाजमी के निधन के बाद उनकी प्रेम उनकी प्रेम कहानी सामने आई थी। उनकी आत्मकथा ‘भूपेन हजारिका, एस आई न्यू हिम’ के रिलीज होने के बाद मालूम हुआ कि लाजमी और भूपेन हजारिका 40 साल तक हमराह रहे।

यहां आपको बता दें कि कल्पना लाजमी आखिरी वक्त में खराब दौर से गुजर रही थीं। वो लंबे समय से किडनी के कैंसर से पीड़ित थीं और उन्हें नवंबर 2017 में मुंबई के कोकिलाबेन अस्पताल में भर्ती कराया गया था लेकिन उनके पास इलाज के लिए पैसे नहीं थे। जिसके बाद कई बॉलीवुड स्टार्स उनकी मदद के लिए आगे आए थे। उनकी कुछ लोकप्रिय फिल्मों में ‘रुदाली’, ‘दमन’, ‘दरमियान’ शामिल हैं।

दादा साहब फाल्के, भारत रत्न पुरस्कार से किया गया था सम्मानित

भूपेन हजारिका को 1975 में सर्वोत्कृष्ट क्षेत्रीय फिल्म के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार, 1992 में सिनेमा जगत के सर्वोच्च पुरस्कार दादा साहब फाल्के सम्मान से सम्मानित किया गया था। इसके अलावा उन्हें 2009 में असोम रत्न और इसी साल संगीत नाटक अकादमी अवॉर्ड दिया गया। साल 2011 में उन्‍हें पद्म भूषण जैसे कई प्रतिष्ठित पुरस्कारों से सम्मानित किया गया।भूपेन हजारिका को इसी साल भारत रत्न पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया है।

पूर्व पीएम अटल बिहारी वाजपेयी ने हजारिका से एक गाना गाने का अनुरोध किया था

पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी भूपेन हजारिका के बहुत बड़े प्रशंसक थे और एक बार जब हजारिका यहां एक कार्यक्रम पेश कर रहे थे तब उन्होंने उनसे एक प्रसिद्ध असमी गीत गाने का अनुरोध किया था। बात 90 के दशक की है।हजारिका रामलीला मैदान में एक कार्यक्रम में मंच पर थे तब उन्हें अटल बिहारी वाजपेयी के नाम से एक पर्ची मिली।

अटल जी के अनुरोध पर भूपेन ने अपना असम लोकप्रिय गाना ‘मोई ऐती जाजाबोर’ सुनाया था। बाद में अटल जी ने भूपेन हजारिका से कहा था कि मैं आपसे गाना सुनने के लिए तड़प रहा था। वर्ष 2004 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने हजारिका को गुवाहाटी से अपना प्रत्याशी बनाया था। लोकसभा चुनाव जीत कर हजारिका भाजपा के सांसद बने।

पीएम मोदी ने देश का सबसे लंबा पुल हजारिका को किया था समर्पित

वर्ष 2017 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने असम के तिनसुकिया जिले के सदिया में देश का सबसे लंबे पुल का उद्घाटन किया था ।इस पुल को पीएम मोदी ने महान संगीतकार और गायक भूपेन हजारिका के नाम रखा है। यह पुल लोहित नदी के ऊपर बनाया गया है, जिसका एक छोर अरुणाचल प्रदेश के ढोला में और दूसरा छोर असम के सादिया में पड़ता है।

गौरतलब है कि भूपेन हजारिका सेतु अब तक देश के सबसे लंबे मुंबई स्थित बांद्रा-वर्ली सी लिंक की तुलना में 3.55 किलोमीटर अधिक लंबा है। इस पुल के बन जाने से सामरिक रूप से महत्वपूर्ण असम और अरुणाचल प्रदेश के बीच यात्रा करने में चार घंटे का समय कम लगता है।

 शंभू नाथ गौतम, वरिष्ठ पत्रकार