मुंबई। लगभग छह दशक तक अपने संगीत से श्रोताओं को मंत्रमुग्ध करने वाले नौशाद पहले संगीतकार हुये, जिन्हें सर्वश्रेष्ठ संगीतकार के फिल्म फेयर पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
वर्ष 1953 में प्रदर्शित फिल्म बैजू बावरा के लिये नौशाद सर्वश्रेष्ठ संगीतकार के रूप में सम्मानित किये गये।यह भी चौंकाने वाला तथ्य है कि इसके बाद उन्हें कोई फिल्मफेयर पुरस्कार नहीं मिला। भारतीय सिनेमा में उनके महत्वपूर्ण योगदान को देखते हुये उन्हें दादा साहब फाल्के पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया।
लखनऊ के एक मध्यमवर्गीय रूढिवादी मुस्लिम परिवार में 25 दिसम्बर 1919 को जन्में नौशाद का बचपन से ही संगीत की तरफ रुझान था और अपने इस शौक को परवान चढ़ाने के लिए वह फिल्म देखने के बाद रात में देर से घर लौटा करते थे। इस पर उन्हें अक्सर अपने पिता की नाराजगी झेलनी पडती थी। उनके पिता हमेशा कहा करते थे कि तुम घर या संगीत में से एक को चुन लो। एक बार की बात है कि लखनऊ में एक नाटक कम्पनी आई और नौशाद ने आखिरकार हिम्मत करके अपने पिता से बोल ही दिया..आपको आपका घर मुबारक मुझे मेरा संगीत।इसके बाद वह घर छोडकर उस नाटक मंडली में शामिल हो गए और उसके साथ जयपुर, जोधपुर, बरेली और गुजरात के बडे शहरों का भ्रमण किया।
नौशाद अपने एक दोस्त से 25 रुपये उधार लेकर 1937 में संगीतकार बनने का सपना लिये मुंबई आ गये। मुंबई पहुंचने पर नौशाद को कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। यहां तक कि उन्हे कई दिन तक फुटपाथ पर ही रात गुजारनी पड़ी ।इस दौरान नौशाद की मुलाकात निर्माता कारदार से हुयी जिन की सिफारिश पर उन्हें संगीतकार हुसैन खान के यहां चालीस रूपये प्रति माह पर पियानो बजाने का काम मिला । इसके बाद संगीतकार खेमचंद्र प्रकाश के सहयोगी के रूप में नौशाद ने काम किया।
बतौर संगीतकार नौशाद को वर्ष 1940 में प्रदर्शित फिल्म प्रेमनगर में 100 रुपये माहवार पर काम करने का मौका मिला।वर्ष 1944 में प्रदर्शित फिल्म रतन में अपने संगीतबद्ध गीत अंखियां मिला के जिया भरमा के चले नहीं जाना की सफलता के बाद नौशाद 25000 रूपये पारिश्रमिक के तौर पर लेने लगे।इसके बाद नौशाद ने कभी पीछे मुड़कर नही देखा और फिल्मों एक से बढ़कर एक संगीत देकर श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया।
वर्ष 1960 में प्रदर्शित महान शाहकार मुगले आजम के मधुर संगीत को आज की पीढ़ी भी गुनगुनाती है, लेकिन इसके गीत को संगीतबद्ध करने वाले संगीत सम्राट नौशाद ने पहले मुगले आजम का संगीत निर्देशन करने से इंकार कर दिया था। कहा जाता है मुगले आजम के निर्देशक के.आसिफ एक बार नौशाद के घर उनसे मिलने के लिये गये। नौशाद उस समय हारमोनियम पर कुछ धुन तैयार कर रहे थे तभी के. आसिफ ने 50 हजार रुपये नोट का बंडल हारमोनियम पर फेंका।नौशाद इस बात से बेहद क्रोधित हुये नोटो से भरा बंडल के. आसिफ के मुंह पर मारते हुये कहा ..ऐसा उन लोगो लिये करना जो बिना एडवांस फिल्मों में संगीत नही देते ..मै आपकी फिल्म में संगीत नही दूंगा। बाद में के.आसिफ की आरजू-मिन्न्त पर नौशाद न सिर्फ फिल्म का संगीत देने के लिये तैयार हुये बल्कि इसके लिये एक पैसा नही लिया।
नौशाद ने करीब छह दशक के अपने फिल्मी सफर में लगभग 70 फिल्मों में संगीत दिया।उनके के फिल्मी सफर पर यदि एक नजर डाले तो पायेंगे कि उन्होंने सबसे ज्यादा फिल्म गीतकार शकील बदायूंनी के साथ ही की और उनके बनाये गाने जबर्दस्त हिट हुये।
नौशाद ऐसे पहले संगीतकार थे जिन्होंने पार्श्वगायन के क्षेत्र मे सांउड मिकसिग और गाने की रिकार्डिग को अलग रखा। फिल्म संगीत में एकोर्डियन का सबसे पहले इस्तेमाल नौशाद ने ही किया था। नौशाद 05 मई 2006 को इस दुनिया से सदा के लिये रूखसत हो गये।