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Special on the death anniversary of Shiv Sena founder Bal Thackeray - Sabguru News
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महाराष्ट्र में पांच दशक तक ‘राज+नीति’ इन्हीं के इर्द-गिर्द घूमती रही

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महाराष्ट्र में पांच दशक तक ‘राज+नीति’ इन्हीं के इर्द-गिर्द घूमती रही
Special on the death anniversary of Shiv Sena founder Bal Thackeray
Special on the death anniversary of Shiv Sena founder Bal Thackeray
Special on the death anniversary of Shiv Sena founder Bal Thackeray

पिछले 20 दिनों से महाराष्ट्र की सियासत में मचा शोर देश की सुर्खियों में छाया हुआ है। सरकार के गठन के लिए हर दिन नई-नई बातें निकल कर आ रही हैं। आज हम जिनकी बात करने जा रहे हैं उनका महाराष्ट्र की राजनीति में 50 साल तक राज रहा है। चाहे उनकी पार्टी की सरकार रही हो या न रही हो सत्ता उन्हीं के इर्द-गिर्द घूमती रही थी।

अब शिवसेना एक बार फिर महाराष्ट्र में सरकार के गठन पर उनकी ‘कसम और उनके वचन’ को मराठी जनता में प्रसारित कर सहानुभूति बटोरने में लगी हुई है। जी हां आज हम आपको बालासाहेब ठाकरे के बारे में रूबरू करवाएंगे। शिवसेना के संस्थापक रहे बाल ठाकरे की आज सातवीं पुण्यतिथि है। 17 नवंबर 2012 को बाल ठाकरे ने दुनिया को अलविदा कह दिया था।

बाल ठाकरे का शुरुआती जीवन

23 जनवरी 1926 को महाराष्ट्र के रायगढ़ जिले में बाल ठाकरे का जन्म हुआ था। उनका पूरा नाम बालासाहेब केशव ठाकरे है। लेकिन बाल ठाकरे के नाम से अधिक लोकप्रिय रहे। बालासाहेब ने ‘द फ्री प्रेस जर्नल’ से एक पत्रकार और कार्टूनिस्ट के रूप में करियर की शुरुआत की। 60 के दशक में उनके बनाए गए कार्टून अखबारों में छपते थे।

ठाकरे धीरे-धीरे राजनीति पर भी कार्टून बनाने लगे। उसके बाद 1960 में ही उन्होंने ‘मार्मिक’ नाम से अपनी खुद की राजनीति पत्रिका शुरू कर दी। मार्मिक के जरिए बाल ठाकरे ने मुंबई में गुजरातियों, मारवाड़ियों और दक्षिण भारतीय लोगों के बढ़ते प्रभाव के खिलाफ मुहिम चलाई थी।

1966 में शिवसेना का गठन किया

बालासाहेब ठाकरे को उसके बाद मराठी  हितों की चिंता होने लगी। उनके अधिकारों और उनके सम्मान के लिए वर्ष 1966 में ठाकरे ने ‘शिवसेना’ की स्थापना की। बाल ठाकरे ने मुंबई के राजनीतिक और आर्थिक परिदृष्‍य पर महाराष्‍ट्र के लोगों के अधिकार के लिए शिवसेना गठित की।

वामपंथी पार्टियों के खिलाफ खड़ी की गई शिवसेना ने मुंबई में मजदूर आंदोलनों को कमजोर करने में अहम भूमिका निभाई। पूरे महाराष्ट्र में बालासाहेब को लोग इतना आदर और सम्मान करते थे कि उनके एक फरमान पर मुंबई में कर्फ्यू लग जाता था।

‘हिंदू सम्राट’ बनकर उभरे

बाल ठाकरे के राजनीतिक विचार अपने पिता से ही प्रेरित रहे हैं, जो युनाइटेड महाराष्ट्र मूवमेंट के एक बड़े नेता थे। इस मूवमेंट के जरिए भाषाई तौर पर अलग महाराष्ट्र राज्य बनाने की मांग हो रही थी। सही मायनों में देखा जाए तो उनकी इमेज एक कट्टर हिंदू नेता के तौर पर रही और शायद इसी वजह से उन्हें ‘हिंदू सम्राट’ का तमगा भी दिया गया। बाल ठाकरे भारतीय राजनीति का वह चेहरा रहे हैं, जिन्होंने सत्ता के लिए कभी समझौता नहीं किया था। किसी के लिए नायक तो किसी के लिए खलनायक रहे बाल ठाकरे जब तक जिंदा रहे, अपनी शर्तों पर जीते रहे।

दशहरा पर होने वाली रैली रही खास

शिवसेना के संस्थापक बालासाहेब ठाकरे हर वर्ष मुंबई में दशहरा पर रैली करते थे। इस रैली का मुंबई ही नहीं पूरी महाराष्ट्र की जनता को इंतजार रहता था। साल भर में होने वाली इस रैली में बाल ठाकरे अपनी राजनीति की दिशा और दशा तय करते हुए गरजते थे। उन्हीं का भाषण सुनने के लिए लाखों की भीड़ जुटी थी। इस रैली में बाल ठाकरे के परिवार के सभी सदस्य शामिल होते थे।

ठाकरे की जिंदगी का विवादों से रहा नाता

बाल ठाकरे और विवाद जिंदगी की आखिरी समय तक साथ-साथ चलते रहे। बाहरी दुनिया के लिए कट्टर आदर्शवादी राजनेता बाल ठाकरे पूर्णरूप से फैमिली मैन भी थे। बालासाहेब ने भले ही भाषाई और क्षेत्रीयता के आधार पर राजनीति की लेकिन उनकी शख्सियत ऐसी थी कि दक्षिण भारत के राजनेता से लेकर अभिनेता तक उनसे मिलने को आतुर रहते थे। बतौर आर्टिस्ट और जनसमुदाय के नेता के तौर पर हिटलर की तारीफ कर उन्होंने जबर्दस्त विवाद पैदा किया था। इसके अलावा लिट्टे का समर्थन, वैलंटाइंस डे जैसी चीजों का जबर्दस्त विरोध उनके विवादों की लिस्ट बढ़ाती रहीं।

1989 में शिवसेना-भाजपा से हुई दोस्ती

बाला साहेब ठाकरे राजनीति में पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी से जबरदस्त दोस्ती थी। दोनों ने अपना करियर अखबार से ही शुरू किया था। धीरे धीरे शिवसेना महाराष्ट्र में राजनीति में कदम बढ़ाने लगी थी। बाल ठाकरे ने अटल जी के साथ वर्ष 1989 में दोस्ती को आगे बढ़ाते हुए भाजपा के साथ गठबंधन किया और यहां से दोनों पार्टियों की दोस्ती शुरू हुई। 30 साल भाजपा और शिवसेना की चली दोस्ती में इन दिनों दरार पड़ चुकी है। वर्ष 1995 में भाजपा और शिवसेना ने मिलकर महाराष्ट्र में पहली बार सरकार भी बनाई थी।

1996 में पारिवारिक क्षति होने के बावजूद भी हार नहीं मानी

1996 में बाला साहेब ठाकरे के लिए दुखद रहा, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी और आगे बढ़ते रहें। इसी वर्ष उनकी पत्नी मीताबाई और बेटे बिंदा ठाकरे की मौत का गहरा सदमा लगा। दाे जबरदस्त झटकों के बावजूद भी मजबूती से खड़े रहे। राजनीति में उनका कद बढ़ता गया। शुरू में बाल ठाकरे की सियासी विरासत के वारिस उनके भतीजे राज ठाकरे माने जाते थे।

लेकिन बाद में बाल ठाकरे के बेटे उद्धव ठाकरे द्वारा दरकिनार किए जाने पर 9 मार्च 2006 को राज ठाकरे ने महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (एमएनएस) नाम से अलग पार्टी बना ली। निजी और राजनीतिक रूप से बाल ठाकरे के लिए यह बहुत बड़ क्षति थी।

नरेंद्र मोदी के साथ अकेले खड़े हुए थे

वर्ष 2002 में गोधरा दंगों के बाद जब गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी काे भारतीय जनता पार्टी में भी नसीहत दी जा रही थी। तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने मोदी से ‘राजधर्म’ पालन करने के लिए कहा था। अटल जी के आदेश के बाद मोदी विचलित हो गए थे। चारों तरफ आलोचना झेल रहे मोदी के लिए बाल ठाकरे का साथ वरदान बन गया था। उस समय बालासाहेब ही थे जिन्होंने नरेंद्र मोदी का खुलकर साथ दिया था। आज भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का ठाकरे के प्रति भरपूर सम्मान देखा जा सकता है।

विरोध के बावजूद कांग्रेस का समर्थन

आपको बता दें कि बाल ठाकरे की कांग्रेस पार्टी से कभी नहीं बनी। ठाकरे कांग्रेस के कट्टर आलोचक थे। इसके बावजूद उन्होंने 2012 के राष्ट्रपति चुनाव में कांग्रेस उम्मीदवार प्रणब मुखर्जी का समर्थन किया था। इसके पहले भी उन्होंने राष्ट्रपति के चुनाव में प्रतिभा पाटिल का महाराष्ट्र से होने के नाम पर समर्थन किया था।

शंभू नाथ गौतम, वरिष्ठ पत्रकार