Warning: Constant WP_MEMORY_LIMIT already defined in /www/wwwroot/sabguru/sabguru.com/18-22/wp-config.php on line 46
माया की खीर ने ज्ञान का द्वार खोला
होम Religion माया की खीर ने ज्ञान का द्वार खोला

माया की खीर ने ज्ञान का द्वार खोला

0
माया की खीर ने ज्ञान का द्वार खोला

सबगुरु न्यूज। वह दिल से संत था और माया के मंच पर पर आसीन होकर माया के कई रूप देख कर घबरा गया। मुक्ति के लिए वह माया के भारी मंच को छोड़ निकला और अंतत उसी माया ने अपने अलग रूप दिखा उसके ज्ञान के द्वार खुलवा दिए। वह जीते जी मोक्ष पाकर मानव सभ्यता और संस्कृति में अमर हो गया तथा महात्मा बुद्ध बना।

आज माया के मंच पर बैठा मानव अहंकार के द्वार खोल अहंकारी शक्तियों को ग्रहण कर अहंकार के ज्ञान का उदय करता है। वह मानव धर्म और कर्म के अखाडे में कूद कर कल्याण कारी होने का खिताब लेता है और एक दिन माया उसे अमृत रूपी जहर देकर उसका पतन कर देती है। यही माया की जमीनी हकीकत है। वो विरक्ति चाहने वाले को ज्ञान और लोभी को लोभ लालच में फंसा ऐशो आराम देकर अचानक उसे जमीदोज कर देती है।

वह नहीं जानता था कि सत्य क्या है, वह तो सिर्फ यही जानता था कि वह मायावी दुनिया के झूठे बाजार में खडा था और यहां सभी अपने आप को सत्य के पुजारी होने का दावा कर रहे थे तथा संतरंगी दुनिया के सतरंगे दावे करने वालों से उसका जी उचट गया था। वह अपनों के बीच में भी पराया महसूस करने लगा। सतरंगी दुनिया की सत्यता क्या है इसे जानने के लिए वह बहुत दूर निकल गया।

कई साल तक भटकते भटकते रहने के बाद एक तरुणी युवती ने उसका भाग्य और मार्ग दोनों ही बदल डाले। वह तरुणी की श्रद्धा व भावभरी मनवार को रोक नहीं पाए। तरुणी की इस मनवार को उसी भाव से स्वीकार कर लिया और इस जगत में वह महान कल्याण कारी काम कर गया। एक माया को जिस रूप में छोड़कर आया दूसरी माया ने दूसरे रूप में उसे पूजवाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

इस मायावी जगत में ही जीवन का सत्य छिपा हुआ है, इस बात को अब वह जान गया था। चकमक की चिनगारी जब आग लगा देती है तो तमाम अंधेरा दूर हो जाता है ठीक उसी तरह उस तरुणी की मनवार ने उसके वर्षों से भटके जीवन में सत्य के ज्ञान की ज्योति जला दी।

पुनर्जन्म की सत्यता को जैसे व्यवहार में स्वीकारा नही जाता है उसी तरह से भूत प्रेत व आत्मा जैसे विषयों पर उसका सदा ही मौन रहता था। विभिन्न धर्मो के बारे में उससे जब पूछा जाता था तो सभी का सार एक जैसा ही बताता था।

सत्य को खोजने के लिए उसने धन, दौलत, राजपाट, पत्नी और बच्चे सभी छोड दिए। बचपन में जब उसकी माताजी ने उसका भाग्य जानना चाहा तो उसके शरीर पर “बतीस राज योग” के लक्षण देख ज्योतिषी रानी साहिबा ये बोला कि यह बालक या तो चक्रवर्ती शासक बनेगा या महान संत।

भाग्य ने उसे चक्रवर्ती सम्राट नहीं बनने दिया और वह सत्य की खोज में एक रात घर छोड़कर निकल गया। वर्षों तक वह भटकता रहा। एक दिन जब वह बट वृक्ष के नीचे बैठा था कुछ महिलाओं का झुंड गीत गाते हुए जा रहा था। उसका सार था कि सदा मध्यम मार्ग अपनाना। ना ज्यादा सिद्धांत वाला और ना ही बिल्कुल ढीला।

घर में जब व्यक्ति कोई पूजा पाठ कर रहा हो और उस समय अचानक आग लग जाती है तो व्यवहार में एक व्यक्ति क्या करेगा बस वही बात है कि सिद्धांत से समझौता करना ही पड़ेगा।

गीत सुनते सुनते उसने देखा कि एक एक युवती जो तरूण अवस्था में थी वह बट वृक्ष के पास आई ओर उसके नीचे कमजोर शरीर वाले व्यक्ति को बैठा हुआ देखा। उसने सोचा ये बट वृक्ष का भगवान है। तरुणी ने खीर उस व्यक्ति को दी ओर बोली इसे ग्रहण करें। उस दिन वैशाख मास की पूर्णिमा थी।

तरुणी की मनवार से उसने खीर खा ली ओर उसे जगत के सत्य का भान हो गया। वह दुनिया में एक महान संत गौतम बुद्ध के नाम से प्रसिद्ध हुआ। तरुणी की आस्था ने उसे भगवान समझा और वह भगवान बुद्ध के नाम से प्रसिद्ध हुए। मानव कल्याण के लिए ही कार्य करते रहे।

संत जन कहते हैं कि हे मानव व्यक्ति के सिद्धांत आखिर टूट जाते हैं। आपातकाल बीमारी या कोई भी स्थिति हो। अत: अपने सिद्धांतों को जटिल मत बनाओ, नहीं तो वह किसी भी कारण वश टूट जाएंगे आपके सामने ही। इसलिए सिद्धांतों को जितना भी हो सके निभाओ केवल मध्यम मार्ग को निभाते। इसलिए हे मानव तू जीवन मे उन मार्गों का अनुसरण कर जो जमीनी स्तर पर निभाए जा सकें।

सौजन्य : भंवरलाल