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श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का आध्यात्मिक महत्व, पूजन का समय एवं विधि - Sabguru News
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श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का आध्यात्मिक महत्व, पूजन का समय एवं विधि

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श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का आध्यात्मिक महत्व, पूजन का समय एवं विधि

पूर्णावतार भगवान श्री कृष्ण ने श्रावण कृष्ण पक्ष अष्टमी को पृथ्वी पर जन्म लिया। उन्होंने बाल्यकाल से ही अपने असाधारण क्रियाकलापों के द्वारा भक्तों के संकट दूर किए। हर वर्ष भारत में मंदिरों, धार्मिक संस्थानों में श्री कृष्ण जन्माष्टमी का उत्सव बड़े स्तर पर मनाया जाता है। यह उत्सव प्रत्येक प्रांत में अलग-अलग पद्धति से मनाया जाता है। इस उत्सव के निमित्त बहुत संख्या में लोग एकत्र होकर भक्ति भाव से यह उत्सव मनाते हैं। इस वर्ष श्री कृष्ण जन्माष्टमी 18 अगस्त को है इस लेख में हम श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का महत्व जानने वाले हैं।

महत्व – जन्माष्टमी के दिन श्री कृष्ण तत्व प्रतिदिन की अपेक्षा एक सहस्र गुना अधिक कार्यरत रहता है। इस तिथि को ‘ओम नमो भगवते वासुदेवाय’ यह नाम जप और श्रीकृष्ण की अन्य उपासना भावपूर्ण करने से श्रीकृष्ण तत्व का अधिक लाभ मिलने में सहायता होती है। मासिक धर्म, अशौच और स्पर्श-अस्पर्श इन सभी का स्त्रियों पर जो परिणाम होता है वह इस दिन उपवास करने से और ऋषि पंचमी का व्रत करने से उसका परिणाम कम होता है। (पुरुषों पर होने वाला परिणाम क्षौरादी प्रायश्चित कर्म से, और वास्तु पर होने वाला परिणाम उदक शांति से कम होता है)

उत्सव मनाने की पद्धति – इस दिन पूर्ण दिवस व्रत करके रात को 12:00 बजे बाल कृष्ण का जन्म मनाया जाता है। उसके पश्चात प्रसाद लेकर उपवास पूर्ण करते हैं या दूसरे दिन सुबह दही काला का प्रसाद लेकर उपवास पूर्ण करते हैं।

श्री कृष्ण के पूजन का समय – श्री कृष्ण के जन्म का समय रात को 12:00 बजे होता है। इस कारण इसके पूर्व पूजन की तैयारी करके रखनी चाहिए। रात को 12:00 बजे यदि संभव हो तो श्री कृष्ण जन्म का पालना गीत लगाना चाहिए।

श्री कृष्ण का पूजन (श्री कृष्ण की मूर्ति अथवा चित्र की पूजा) – श्री कृष्ण जन्म का पालना भजन होने के पश्चात श्री कृष्ण की मूर्ति अथवा चित्र की पूजा करनी चाहिए।

षोडशोपचार पूजन : जिनको श्रीकृष्ण जी की षोडशोपचार पूजा करना संभव हो उन्होंने उस प्रकार पूजा करनी चाहिए।

पंचोपचार पूजन : जिनको श्री कृष्ण की षोडशोपचार पूजा करना संभव ना हो उनको ‘पंचोपचार पूजा ‘करनी चाहिए। पूजन करते समय ‘सपरिवाराय श्री कृष्णाय नमः’ यह नाम मंत्र कहते हुए एक-एक सामग्री श्री कृष्ण को अर्पण करना चाहिए। श्री कृष्ण जी को दही ,पोहा और मक्खन का भोग लगाना चाहिए। उसके पश्चात श्री कृष्ण जी की आरती करनी चाहिए। (पंचोपचार पूजा : गंध, हल्दी -कुमकुम, फूल, धूप-दीप और भोग इस क्रम से पूजा करनी चाहिए)

श्री कृष्ण की पूजा कैसे करें ? – भगवान श्री कृष्ण की पूजा के पूर्व उपासक ने स्वयं को मध्यमा से दो खड़ी लाइन में गंध लगाना चाहिए। श्री कृष्ण की पूजा में उनकी प्रतिमा को गोपी चंदन का गंध प्रयोग में लाया जाता है। श्री कृष्ण की पूजा करते समय अनामिका से गंध लगाना चाहिए। श्री कृष्ण जी को हल्दी कुमकुम चढ़ाते समय पहले हल्दी और फिर कुमकुम दाहिने हाथ के अंगूठे और अनामिका मैं लेकर उनके चरणों में अर्पण करना चाहिए। अंगूठा और अनामिका जोड़कर जो मुद्रा तैयार होती है,उससे पूजक का अनाहत चक्र जागृत होता है। उस कारण भक्ति भाव निर्माण होने में सहायता होती है।

श्रीकृष्ण जी को तुलसी क्यों चढ़ाते हैं? – जिस चीज में विशिष्ट देवताओं के पवित्रक (देवताओं के सुक्ष्म से सुक्ष्म कण) को आकर्षित करने की क्षमता अन्य वस्तुओं की अपेक्षा अधिक होती है वह वस्तु देवताओं को अर्पित की जाती है इस कारण देवता की मूर्ति में वह तत्व अधिक प्रभाव में आकर आकर्षित होता है और इस कारण देवता की चैतन्यता का लाभ जल्दी होता है। तुलसी में कृष्ण तत्व प्रचुर मात्रा में होता है। काली तुलसी यह श्री कृष्ण के मारक तत्व और हरी पत्तों वाली तुलसी यह श्री कृष्ण के तारक तत्व का प्रतीक होती है। इसी कारण श्री कृष्ण जी को तुलसी अर्पित की जाती है।

श्रीकृष्ण जी को कौन से फूल चढ़ाने चाहिए? कृष्ण कमल के फूल में श्री कृष्ण के पवित्रको को आकर्षित करने की क्षमता सबसे अधिक होने के कारण यह फूल श्री कृष्ण जी को चढ़ाना चाहिए। देवताओं के चरणों में फूल विशिष्ट संख्या में और विशिष्ट आकार में चढ़ाने से फूलों की ओर देवताओं का तत्व जल्दी आकर्षित होता है। उस अनुसार श्री कृष्ण को फूल चढ़ाते समय तीन या तीन तीन गुणा लंबा गोलाकार आकार में चढ़ाने चाहिए श्री कृष्ण जी को चंदन का इत्र लगाना चाहिए। श्री कृष्ण जी की पूजा करते समय उनका तारक तत्व ज्यादा अधिक प्रमाण में आकर्षित करने के लिए चंदन, केवड़ा, चंपा, चमेली, जाई, खस और अंबर इनमें से किसी भी प्रकार की उदबती प्रयोग में लानी चाहिए और श्रीकृष्ण के मारक तत्व को अधिक प्रमाण में आकृष्ट करने के लिए हिना या दरबार इस सुगंध वाली अगरबत्ती प्रयोग में लानी चाहिए।

श्री कृष्ण की मानस पूजा – यदि कोई किसी कारणवश श्रीकृष्ण की प्रत्यक्ष पूजा नहीं कर सकता है तो उन्होंने । श्रीकृष्ण की मानस पूजा करनी चाहिए। (मानस पूजा अर्थात प्रत्यक्ष पूजा करना संभव न हो तो पूजन की सभी सामग्री मानस रूप से श्रीकृष्ण को अर्पित करनी चाहिए)

पूजा के पश्चात नाम जप करना– पूजा होने के पश्चात कुछ समय श्री कृष्ण का ‘ओम नमो भगवते वासुदेवाय’ यह नाम जप करना चाहिए।

‘अर्जुन के समान असीम भक्ति निर्माण होने के लिए श्रीकृष्ण को मनोभाव से प्रार्थना करना – श्रीकृष्ण जी द्वारा भगवद्गीता में यह वचन ‘मेरे भक्त का नाश नही होता ‘ का स्मरण करके हममे अर्जुन के समान असीम भक्ति निर्माण हो इसके लिए मनोभाव से प्रार्थना करनी चाहिए।

दही काला – अनेक खाद्य पदार्थ दही ,दूध ,मक्खन इन सब को एकत्र करके जो खाद्य पदार्थ बनता है वह है काला।

श्री कृष्ण जी ने ब्रजभूमि में गायों को चराते समय स्वयं का और सभी ग्वालो के भोजन को एकत्र करके खाद्य पदार्थ काला बनाया और सभी लोगों ने एक साथ ग्रहण किया इसी का अनुसरण करते हुए गोकुलाष्टमी के दूसरे दिन काला बनाने की और दही हांडी फोड़ने की प्रथा प्रारंभ हुई। आजकल दही काला के निमित्त लूटपाट, अश्लील नृत्य, महिलाओं के साथ छेड़छाड़ आदि अपप्रकार सरेआम होते हैं। इस अपप्रकार के कारण उत्सवों की पवित्रता नष्ट होकर उत्सव से देवताओं के तत्वों का जो लाभ होना चाहिए वह तो होता ही नहीं है अपितु धर्म की हानि होती है। उपरोक्त अनैतिक कार्य रोकने के लिए प्रयत्न करने से उत्सव की पवित्रता टिकेगी व उत्सव का सही अर्थ में लाभ सभी को होगा इस प्रकार की कृति करना श्रीकृष्ण की समष्टी उपासना ही है।

आज के समय में विविध प्रकार से धर्म हानि हो रही है धर्म हानि रोक कर धर्म संस्थापना के कार्य में सहभागी होकर श्री कृष्ण की कृपा संपादन करें! (हे अर्जुन उठो और लड़ने के लिए तैयार हो ) कृष्ण की आज्ञा के अनुसार अर्जुन ने धर्म रक्षण किया और वह श्री कृष्ण के प्रिय बने इसी प्रकार देवताओं का अपमान, धर्मांतरण, लव जिहाद, मंदिरों से होने वाली चोरी, गौ हत्या, मूर्तियों को तोड़ना इस माध्यम से धर्म पर होने वाले आघातो के विरुद्ध अपनी क्षमता के अनुसार वैद्य तरीके से कार्य करना चाहिए।

भगवान श्री कृष्ण धर्म संस्थापना के आराध्य देवता है। आज के समय धर्म की स्थापना का कार्य करना यह सबसे महत्वपूर्ण समष्टि साधना है। धर्म संस्थापना अर्थात समाज व्यवस्था और राष्ट्र रचना आदर्श करने का प्रयत्न करना। धर्म स्थापना के लिए अर्थात् हिंदू राष्ट्र की स्थापना के लिए सभी लोगों ने प्रयत्न करना चाहिए।

संदर्भ : सनातन संस्था का लघु ग्रंथ ‘श्री कृष्ण’