सबगुरु न्यूज। भारत देश में व्रत, त्योहार आदि मनाए जाने के कई मत और मतान्तर हैं। एक मत चन्द्रमा की गति और तिथि के आधार पर धार्मिक मान्यताओं को मानता है तो अन्य मत अपने सम्प्रदाय की मान्यता के अनुसार चलता है। इसी वजह से कलेण्डर व पंचांग में एक ही व्रत, त्योहार को अलग अलग दिन दिखाया जाता है। एक स्मार्त जन के लिए और दूसरा वैष्णव जन के लिए। शास्त्रीय मान्यताओं में इन के बारे में बताया गया है–
स्मार्त जन
सभी गृहस्थी जन जो वेद श्रुति-स्मृति आदि ग्रंथों को मानने वाले तथा धर्म परायण हैं वे सब “स्मार्त” कहलाते हैं। अर्थात सभी आस्तिक जन स्मार्त है। वेद, पुराण, गायत्री के उपासक तथा धर्मशास्त्र स्मृति को मानने वाले पंच देवोपासक भी स्मार्त हैं। इन सभी को स्मार्त व्रत ही करना चाहिए।
वैष्णव जन
ऐसे धर्म परायण लोग जिन्होंने प्रतिष्ठित वैष्णव सम्प्रदाय के गुरू से दीक्षा ग्रहण की हो, गले में श्री गुरु द्वारा दी गई कंठी धारण की हो तथा मस्तक और गले पर श्रीखंड चंदन या गोपी चंदन के तिलक, त्रिपुंड आदि के चिन्ह को धारण करते हैं। ऐसे भक्तजन “वैष्णव” कहलाते हैं। ऐसी शास्त्रीय मान्यता है।
भगवान श्रीकृष्ण का जन्म भाद्रपद मास की कृष्ण पक्ष की अष्टमी की अर्ध रात्रि को हुआ था। उस रात रोहिणी नक्षत्र था। इसी मान्यताओं के आधार पर कृष्ण जन्माष्टमी का पर्व मनाया जाता है। कई बार रोहिणी नक्षत्र अष्टमी की रात नहीं होता है तो भी तिथि की प्रधानता के कारण जन्माष्टमी पर्व मनाया जाता है।
दिनांक 2 सितम्बर 2018 को अष्टमी तिथि रात्रि में 8 बजकर 46 मिनट पर शुरू हो जाएगी तथा उसी के साथ रोहिणी नक्षत्र भी प्रारंभ हो जाएगा। अतः जयोतिष शास्त्र की गणित मान्यता के अनुसार जन्माष्टमी पर्व 2 सितम्बर को ही होगा और शैव व स्मार्त जन इस दिन जनमाष्टमी पर्व मनाएंगे।
दिनांक 3 सितम्बर को भी सूर्य के उदय काल में अष्टमी तिथि है जो शाम 7 बजकर 19 मिनट तक रहेगी तथा रोहिणी नक्षत्र भी रात 8 बजकर 4 मिनट तक रहेगा उसके बाद मृगशिरा नक्षत्र शुरू हो जाएगा। वैष्णव जन सूर्य की उदय तिथि मे दिनांक 3 सितम्बर को ही जनमाष्टमी पर्व मनाएंगे।
कुल मिलाकर इस वर्ष जन्माष्टमी दो दिन मनाई जाएगी। 2 सितम्बर को स्मार्त जन तथा 3 सितम्बर को वैष्णव जन जन्माष्टमी मनाएंगे।
सौजन्य : ज्योतिषाचार्य भंवरलाल, जोगणियाधाम पुष्कर।