कोलंबो। श्रीलंका के उच्चतम न्यायालय ने गुरुवार को राष्ट्रपति मैत्रिपाल सिरीसेना के संसद भंग करने के निर्णय को असंवैधानिक करार दे दिया।
मुख्य न्यायाधीश नलीन परेरा की अध्यक्षता में उच्चतम न्यायालय की सात सदस्यीय पीठ ने एकमत से अपना निर्णय देते हुए कहा कि राष्ट्रपति का संसद को भंग करने का निर्णय अवैध है। संसद भंग करने के जारी राजपत्रित अधिसूचना संविधान सम्मत नहीं है।
उच्चतम न्यायालय ने अंतरिम आदेश जारी करके संसद भंग की राजपत्रित अधिसूचना का स्थगित कर दिया था और इस मामले में अंतिम आदेश आने तक संसद का कार्यकाल बढ़ा दिया गया है।
उच्चतम न्यायालय ने राष्ट्रपति के संसद भंग करने की राजपत्रित अधिसूचना को चुनौती देने के लिए दायर याचिका की लगातार चार दिनों तक चली सुनवायी सात दिसंबर को पूरी कर ली थी। राष्ट्रपति के आदेश के खिलाफ कुल 13 याचिकाएं दायर की गई थी।
राष्ट्रपति सिरीसेना ने नौ नवंबर को 225 सदस्यीय संसद को कार्यकाल समाप्त होने से पहले ही भंग करके पांच जनवरी को चुनाव करवाने का आदेश दिया था। इससे पहले उच्चतम न्यायालय ने 13 नवंबर को आदेश जारी करके राष्ट्रपति के अधिसूचना को अस्थायी रूप से अवैध घोषित कर दिया था और चुनाव तैयारियों पर रोक लगा दी थी। उच्चतम न्यायालय ने मामले की सुनवायी पिछले सप्ताह पूरी करते हुए अपने आदेश को सुुरक्षित रख लिया था।
श्रीलंका के पूर्व प्रधानमंत्री रानिल विक्रमसिंघे ने उच्चतम न्यायालय के आदेश का स्वागत किया है। श्री विक्रमसिंघे ने ट्वीट किया कि हमें विश्वास है कि राष्ट्रपति न्यायालय के आदेश का सम्मान करेंगे। विधानपालिका, न्यायपालिका और कार्यपालिका समान रूप से लोकतंत्र के महत्वपूर्ण स्तंभ हैं। नागरिकों की सत्ता सुनिश्चित करने के लिए ये तीनों स्तंभ एक दूसरे की शक्तियों पर अंकुश लगाने का काम करते हैं।
राष्ट्रपति सिरिसेना ने रविवार को ट्वीट किया था कि वह उच्चतम न्यायालय के निर्णय को स्वीकार करेंगे। उन्होंने ट्वीट किया कि मुझे उच्चतम न्यायालय की संवैधानिक व्याख्या का इंतजार है। मातृभूमि के हित में मैं इसी व्याख्या के अनुसार ही मैं भविष्य के राजनीतिक निर्णय लूंगा न कि किसी व्यक्ति, समूह या पार्टी को हितों को देखते हुए।