कोलंबो। श्रीलंका के राष्ट्रपति मैत्रीपाला सिरीसेना ने संसद को भंग कर दिया है। सिरीसेना ने शुक्रवार मध्यरात्रि से देश की संसद को भंग करने का आदेश जारी किया है।
सूत्रों के मुताबिक सिरीसेना के इस फैसले से देश में मौजूदा राजनीतिक संकट और गहरा गया है। राष्ट्रपति के एक निकट सहयोगी ने बताया कि संसद भंग होने के बाद अब जनवरी अथवा फरवरी में नए संसदीय चुनाव कराए जा सकते हैं। श्रीलंका में सत्ता को लेकर पिछले दो सप्ताह से जारी संघर्ष के बाद राष्ट्रपति द्वारा संसद को भंग करने का फैसला लिया गया है।
इससे पहले 26 अक्टूबर को एक महत्वपूर्ण नाटकीय राजनीतिक घटनाक्रम में सिरीसेना ने प्रधानमंत्री रानिल विक्रमसिंघे को बर्खास्त कर पूर्व राष्ट्रपति महिंदा राजपक्षे को प्रधानमंत्री के तौर पर शपथ दिलाई थी जिसके बाद से ही श्रीलंका में राजनीतिक संकट गहरा गया था। इसके बाद राष्ट्रपति मैत्रीपाला सिरीसेना ने संसद सत्र को 16 नवंबर तक नहीं बुलाए जाने का आदेश जारी किया।
पूर्व प्रधानमंत्री रानिल विक्रमसिंघे ने अपना बहुमत साबित करने के लिए संसद का आपातकालीन सत्र बुलाए जाने की मांग की थी जिसके कुछ घंटे बाद ही राष्ट्रपति सिरीसेना ने एक आदेश जारी कर 225 सदस्यों वाली संसद के सत्र को 16 नवंबर तक स्थगित कर दिया था। इसके बाद सिरीसेना 14 नवंबर को संसद का सत्र बुलाए जाने पर सहमत हुए थे लेकिन अब संसद भंग करने के साथ ही यह उम्मीद भी खत्म हो गई है।
विक्रमसिंघे का कहना है कि संसद में उनके पास बहुमत है और उन्हें पद से हटाया जाना असंवैधानिक है। राष्ट्रपति सिरीसेना और विक्रमसिंघे में आर्थिक और सुरक्षा के मुद्दों पर बढ़ते मतभेदों के कारण यह घटनाक्रम सामने आया था। सिरीसेना के यूनाइटेड पीपुल्स फ्रीडम गठबंधन (यूपीएफए) ने विक्रमसिंघे की यूनाइटेड नेशनल पार्टी से अलग होने की घोषणा की थी।
यूपीएफए के मुख्य घटक दल श्रीलंका फ्रीडम पार्टी के अध्यक्ष मैत्रीपाला सिरीसेना और श्री विक्रमसिंघे की यूनाइटेड नेशनल पार्टी ने आम चुनाव के बाद अगस्त 2015 में गठबंंधन की मिलीजुली सरकार बनायी थी। गौरतलब है कि वर्ष 2015 में विक्रमसिंघे की यूनाइटेड नेशनल पार्टी के समर्थन के बाद ही सिरीसेना श्रीलंका के राष्ट्रपति चुने गए थे।