कोलंबो। श्रीलंका में नाटकीय राजनीतिक घटनाक्रम के बाद राष्ट्रपति मैत्रीपाला सिरीसेना ने संसद सत्र को 16 नवंबर तक नहीं बुलाए जाने का आदेश जारी किया है।
श्रीलंका की संसद के सदस्यों ने बताया कि पूर्व प्रधानमंत्री रानिल विक्रमसिंघे ने अपना बहुमत साबित करने के लिए शनिवार को संसद का आपातकालीन सत्र बुलाए जाने की मांग की थी जिसके कुछ घंटे बाद ही राष्ट्रपति सिरीसेना ने एक आदेश जारी कर 225 सदस्यों वाली संसद के सत्र को 16 नवंबर तक स्थगित कर दिया।
श्रीलंका के आम बजट-2019 पर चर्चा करने के लिए पांच नवंबर को संसद का सत्र बुलाया जाना था। विक्रमसिंघे का कहना है कि संसद में उनके पास बहुमत है और उन्हें पद से हटाया जाना असंवैधानिक है।
इससे पहले शुक्रवार को एक महत्वपूर्ण राजनीतिक घटनाक्रम में सिरीसेना ने प्रधानमंत्री विक्रमसिंघे को बर्खास्त कर पूर्व राष्ट्रपति महिंदा राजपक्षे को प्रधानमंत्री के तौर पर शपथ दिलाई जिसके बाद श्रीलंका में राजनीतिक संकट गहरा गया है।
विक्रमसिंघे ने बहुमत साबित करने के लिए संसद का सत्र बुलाया था। उनका कहना है कि वह अब भी श्रीलंका के प्रधानमंत्री हैं और उनके पास बहुमत है।
राष्ट्रपति सिरीसेना और विक्रमसिंघे में आर्थिक और सुरक्षा के मुद्दों पर बढ़ते मतभेदों के कारण यह घटनाक्रम सामने आया है। सिरीसेना के यूनाइटेड पीपुल्स फ्रीडम गठबंधन (यूपीएफए) ने विक्रमसिंघे की यूनाइटेड नेशनल पार्टी (यूएनपी) से अलग होने की घोषणा की है।
यूपीएफए के मुख्य घटक दल श्रीलंका फ्रीडम पार्टी (एसएलएफपी) के अध्यक्ष मैत्रीपाला सिरीसेना और विक्रमसिंघे की यूनाइटेड नेशनल पार्टी (यूएनपी) ने आम चुनाव के बाद अगस्त 2015 में गठबंंधन की मिलीजुली सरकार बनाई थी।
गौरतलब है कि वर्ष 2015 में विक्रमसिंघे की यूनाइटेड नेशनल पार्टी के समर्थन के बाद ही सिरीसेना श्रीलंका के राष्ट्रपति चुने गए थे।