जयपुर। सुविधा तथा शांति में भेद को समझना चाहिए। शांति का संबंध भीतर से है। भौतिक संसाधन सुविधा दे सकते हैं किंतु भीतर की शांति के लिए साधना व आध्यात्म की शरण में आना होगा।
ये वचन बालिका आदर्श विद्यामंदिर अंबाबाडी में चल रहे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्राथमिक वर्ग में जैन तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें महाशास्ता आचार्य महाश्रमण द्वारा मार्गदर्शन के रूप में कहे गए।
उन्होंने जैन आगम तथा गीता के उदाहरण से आत्मा की नश्वरता, पुनर्जन्म, मोक्ष, सत्कर्म, शांति व आध्यात्म को सरल शब्दों में समझाया। उत्तम कर्मों की प्राप्ति के लिए राग, द्वेष, क्रोध जैसी वृत्तियों पर नियंत्रण तथा इसके लिए सन्मार्गदर्शन व भारत की विशाल ग्रन्थसंपदा के अध्ययन का महत्व बताया।
स्वयंसेवकों को कार्यकर्ता का अर्थ बताते हुए उन्होंने कहा कि जो परहित के लिए कार्य करता है वह कार्यकर्ता है। सुख-दुःख, मान-अपमान की चिंता किए बिना साधनापूर्वक कार्य करने से जीवन सफल होता है। साधना और त्याग से कार्य में सफलता मिलती है।
आचार्य ने अहिंसा यात्रा का उद्देश्य बताते हुए सदभावना, नैतिकता व नशा मुक्ति पर बल दिया। प्रबोधन के अंत में उन्होंने विश्व कल्याण हेतु मंगलपाठ किया।
इससे पूर्व उन्होंने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्यालय ‘स्वस्तिक भवन’ में मंगलाचरण व पदार्पण किया। समारोह में संघ की अखिल भारतीय कार्यकारिणी के विशेष आमंत्रित सदस्य और वरिष्ठ प्रचारक हस्तीमल जैन, शंकर लाल, क्षेत्र प्रचारक निम्बाराम, राजस्थान क्षेत्र संघचालक डॉ. रमेश अग्रवाल उपस्थित रहे।
सर्वे भवन्तु सुखिनः की मंगलकामना के साथ यज्ञ
एकादशी के पावन अवसर पर बालिका आदर्श विद्या मंदिर अंबाबाड़ी के विशाल सभागार में सभी के अच्छे स्वास्थ्य की कामना के लिए महामृत्युंज्य यज्ञका आयोजन किया गया।
यज्ञ में पूज्य संत राघवाचार्य महाराज, योगी रमण नाथ महाराज आश्रम सुख सागर सांभर लेक, भावनाथ महाराज विनाथ कुंज आश्रम हरमाड़ा, नरेंद्रानंद महाराज, मुकेशानंद जसरापुर, राजेंद्र दास महाराज ने आहुति दी।