-परीक्षित मिश्रा
सबगुरु न्यूज-सिरोही। करीब एक दशक से सिरोही का राजनीतिक अखाड़ा कांग्रेस के संयम लोढ़ा और नीरज डांगी गुट के सिपाहियों के धोबी पछाड़ दांवपेचों का गवाह रहा। सिपाही दोनों सेनापतियों के लिए लड़ते रहे और सवा दशक बाद दोनों सेनापतियों को ‘एकजुटता में शक्ति’ का बोधिसत्व प्राप्त हुआ। ये बात अलग है कि इनके सिपाही पिछले एक दशक से जहां एकसाथ एकत्रित हुए वहां अमूमन नारेबाजियो के शोर से शांति भंग जरूर हुई है।
फिलहाल इस मिलाप का असर सिरोही जिले में देखने को भी मिला। राज्यसभा सांसद बनने के बाद नीरज डांगी पहली बार सिरोही पहुंचे तो उनके साथ संयम लोढ़ा भी थे। इतना ही नहीं सिरोही की सक्रिय राजनीति में एक साल से पूरी तरह सक्रिय भूमिका निभा रहे रतन देवासी भी उनके साथ थे।
इस भरत मिलाप में डांगी को राज्यसभा में जगह मिली तो संयम लोढ़ा को भविष्य की संभावनाएं। खाली हाथ रहे तो इनके वो समर्थक जिन्होंने इन नेताओं के समर्थन में गुटबाजी को व्यक्तिगत कटुता का विषय बना दिया था। सबगुरु न्यूज के सवाल पर डाँगी ने पत्रकार वार्ता के माध्यम से जिला कांग्रेस को एकजुटता से भाजपा के सामने खड़े होने का सन्देश दे दिया।
-जबरदस्त जमावड़ा
कोरोना काल में धार्मिक और शैक्षणिक गतिविधियों और बहके ही पाबंदी हो लेकिन राजनीतिक जमावड़े पर कोई बंदिश नहीं है। भाजपा कांग्रेस विरोधी कार्यक्रमों के लिए तो कांग्रेस भाजपा विरोधी आन्दोल के लिये जमावड़ा करके सोशल डिस्टेंसिंग की धज्जियां उड़ाती रही। यहां भी उसी की पुनरावृत्ति हुई, लेकिन ‘समरथ को नहीं दोष गुसाईं’।
डाँगी और लोढ़ा शिवगंज से ही साथ थे। इनके जो समर्थक एक दूसरे को देखकर जिंदाबाद मुर्दाबाद के नारे लगाते थे वो हाथों में फूलों की माला लिए खड़े थे। कांग्रेस के राजनीतिक कार्यक्रम और सोशल मीडिया पर इनके जो समर्थक एक दूसरे पर व्यंग्य कसते थे वो आज पलक पावड़े बिछाकर इनका इंतजार कर रहे थे।
जो समर्थक एक दूसरे का सिर फुटव्वल जितने उत्साहित हो जाते थे वो आज प्रतिद्वंद्वी नेताओं के सिर और साफे पहना रहे थे। पहले अपने नेता के लिए प्रतिद्वंद्वी नेता के समर्थक से भिड़ लेते थे आज कोरोना को चुनौति देने से बाज नहीं आये। यहाँ जो भीड़ थी वो इन नेताओं के मिलने पर कांग्रेस में फैले उत्साह को जरूर प्रदर्शित कर रही थी। स्वागत का गए उत्साह पूरी सिरोही विधानसभा में दिखा।
-यूँ मिटी रिश्तों की खटास
नीरज डांगी और संयम लोढ़ा के बीच शीत युद्ध का दौर डांगी के पहली बार रेवदर विधानसभा सीट से नामांकन के बाद से ही शुरू हो गया था। एक वक्त था जब संयम लोढ़ा अशोक गहलोत के करीबी माने जाते थे। राजनीतिक गलियारों में बाद में चर्चा ये रही कि लोढ़ा और गहलोत के बीच दुराव हो गया है। उसका असर सिरोही कांग्रेस में नजर आया।
डांगी अशोक गहलोत के करीबी रहे हैं। ऐसे में डांगी और लोढ़ा का द्वंद्व सिरोही में शुरू हो गया। संयम लोढ़ा पर रेवदर विधानसभा में और नीरज डांगी पर सिरोही में हस्तक्षेप करने और एक दूसरे को हराने के आरोप लगते रहे। अब निर्दलीय विधायक के रूप में जीतकर आने पर लोढ़ा गहलोत के लिए संकटमोचक बने और पायलट के साथ गहलोत के मतभेद के बीच नीरज डाँगी को राज्य सभा में पहुंचने में संयम लोढ़ा का वोट मिला तो दोनों के बीच की खाई भी पट गई। कभी सिरोही को राजनीति का कुरुक्षेत्र बनाये हुए दोनों नेता आज जय-वीरू की तरह साथ नजर आए। वैसे डाँगी और लोढ़ा दोनों ने इनकी निकटता से सिरोही में विकास के नए आयाम स्थापित होने की बात कही है।
-इंतजार में फूल भी झड़ गए
नीरज डाँगी को सिरोही सर्किट हाउस में 3 बजे पहुंचना था। लेकिन वो करीब साढ़े पांच बजे पहुंचे। इंतजार में लोग थक गए। स्वागत के लिए आई महिला पदाधिकारी थक कर बैठ गई। दोनों की पुनरमित्रता की खुशबू को गुलाब से यादगार बनाने के इच्छुक कार्यकर्ताओं की माला से गुलाब की पंखुड़ियां झड़कर गिर गई।
– अब इनका क्या होगा?
जिले में संयम लोढ़ा से नाराज कांग्रेसियों को नीरज डांगी का और नीरज डांगी से रूठे लोगों को लोढ़ा की छत्रछाया मिल जाती थी। लेकिन, अब जो लोग इन दोनों के विवादों को स्थायी और व्यक्तिगत विवाद मानकर सामने वाले गुट में चले गए थे और इनके लिए जहर उगलते थे वो पसोपेश में आ गए हैं।
– तो जिले में सिर्फ गहलोत गुट का राज?
संयम लोढ़ा के गहलोत के करीबी हो जाने से अब जिले में डाँगी गुट और लोढ़ा गुट के विवाद अगले विवाद तक अतीत का विषय हो गया है। ऐसे में राज्य स्तरीय गहलोत और पायलट खेमे के बीच जिले में सिर्फ गहलोत खेमे का वर्चस्व कायम हो चुका है।
ये भविष्य के गर्भ में है कि ये स्थिति स्थाई रूप से ऐसी ही रहेगी या जिले में ही इसे कोई चुनौती देने वाला मिल जाएगा। लेकिन, इन दो गुटों के एकसाथ आ जाने के बाद जिले में कांग्रेस में इन्हें चुनौति देकर पायलट खेमे को मजबूत होने की निकट भविष्य में आशा कुछ कम ही नजर आ रही है।