नई दिल्ली। सुप्रीमकोर्ट ने अनुसूचित जाति/ अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) संशोधन कानून पर रोक लगाने से बुधवार को एक बार फिर इन्कार कर दिया।
न्यायमूर्ति उदय उमेश ललित और न्यायमूर्ति इंदु मल्होत्रा की पीठ ने एससी/एसटी अत्याचार निवारण कानून को मूल स्वरूप में लाए जाने के लिए किए गए संशोधन को चुनौती देने वाली याचिकाओं की अंतिम सुनवाई के लिए 19 फरवरी की तारीख मुकर्रर की।
केंद्र सरकार ने जहां गत वर्ष 20 मार्च के इस फैसले की समीक्षा के लिए पुनर्विचार याचिका दायर की हुई है, वहीं कुछ अन्य याचिकाकर्ताओं ने इस संशोधन कानून की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी है।
गत 24 जनवरी को भी न्यायालय ने संशोधन कानून के विरुद्ध कोई अंतरिम आदेश जारी करने से यह कहते हुए इन्कार कर दिया था कि वह इस तरह के मामले में कोई भी अंतरिम आदेश जारी नहीं करता। केंद्र सरकार की मांग थी कि उच्चतम न्यायालय के 20 मार्च 2018 के फैसले के खिलाफ जो पुनरीक्षण याचिकाएं आई हैं, उन पर पहले सुनवाई हो।
न्यायालय ने 2018 में एक महत्वपूर्ण फैसले में संबंधित अधिनियम के उस प्रावधान को खत्म कर दिया था, जिसमें मामला सामने आते ही गिरफ्तार करने का अधिकार था। न्यायालय ने अधिनियम के कुछ प्रावधानों को निरस्त करते हुए आरोपी की गिरफ्तारी से पहले प्रारंभिक जांच किए जाने और ऐसे मामले में अग्रिम जमानत दिए जाने का प्रावधान भी किया था।
केंद्र सरकार ने भारी राजनीतिक दबाव के बाद फैसले पर पुनर्विचार याचिका दायर की थी। साथ ही, उसने कानून को मूल स्वरूप में लाने के लिए संसद में विधेयक पेश किया था, जिसे दोनों सदनों ने पारित करके शीर्ष अदालत के फैसले को पलट दिया था। इस संशोधित अधिनियम के खिलाफ भी कई याचिकाएं दायर की गई हैं।