नई दिल्ली। उच्चतम न्यायालय ने पूर्व केंद्रीय मंत्री शरद यादव को आवंटित सरकारी बंगला खाली करने के मामले में मानवीय आधार पर राहत देने का सोमवार को संकेत दिया।
लंबे समय से बीमार चल रहे 75 वर्षीय यादव ने दिल्ली उच्च न्यायालय से राहत की उम्मीद टूटने के बाद शीर्ष न्यायालय का दरवाजा खटखटाया था। वर्ष 2017 में राज्यसभा की सदस्यता से अयोग्य घोषित किए जाने के बाद सरकार ने यादव को तुगलक रोड स्थित बंगला खाली करने का आदेश दिया था।
न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने याचिकाकर्ता का पक्ष रख रहे वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल और केंद्र की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल संजय जैन की दलीलें सुनने के बाद इस मामले में मानवीय आधार पर राहत देने का संकेत दिया।
पीठ ने कहा कि हम इस मामले में राजनीति या व्हिप आदि के उल्लंघन पर नहीं हैं, बल्कि पूरी तरह से मानवीय आधार पर उनकी (शरद यादव) की चिकित्सा स्थिति के आधार पर कोई रास्ता निकालने के बारे में सोच रहे हैं। पीठ की अध्यक्षता कर रहे न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने सिब्बल से कहा कि हमें एक उचित समय बताएं, जब तक आप खाली कर सकते हैं। हम सुनवाई स्थगित कर देंगे।
सिब्बल ने कहा कि वैसे भी मेरा (राज्यसभा सदस्य के तौर पर यादव) कार्यकाल जुलाई में समाप्त हो रहा है। इसलिए, मैं एक लिखित वचन दूंगा कि कार्यकाल समाप्त होने के बाद सरकारी बंगला खाली हो जाएगा। सिब्बल ने यादव के बीमारी की स्थिति का जिक्र करते हुए कहा कि याचिकाकर्ता वेंटिलेटर पर थे। उन्हें रोजाना डायलिसिस के लिए जाना पड़ता था। वह हिल भी नहीं सकते थे।
उन्होंने पीठ के समक्ष कहा कि याचिकाकर्ता की राज्यसभा की सदस्यता से संबंधित अपील अभी भी उच्च न्यायालय के समक्ष लंबित है। यादव ने कहा कि उनकी अनुचित और गलत अयोग्यता को चुनौती देने वाली याचिका पर उच्च न्यायालय में मामला लंबित है। उन्होंने उच्चतम न्यायालय से गुहार लगाते हुए कहा कि वह अपनी खराब स्वास्थ्य के कारण सहानुभूतिपूर्ण उपचार का हकदार थे।
पीठ ने याचिकाकर्ता के वकील सिब्बल की दलीलें सुनने के बाद जैन से सरकार से निर्देश लेने और मानवीय आधार पर इस मामले पर विचार करने को भी कहा। शीर्ष न्यायालय ने इस मामले पर सुनवाई अगले सप्ताह करेगी।
उच्च न्यायालय ने 15 मार्च को अपने फैसले में कहा था कि याचिकाकर्ता को 2017 में राज्यसभा सांसद के रूप में अयोग्य घोषित कर दिया गया था। इसलिए नई दिल्ली के 7, तुगलक रोड पर उनके आधिकारिक निवास बनाए रखने का कोई औचित्य नहीं हो सकता। सरकार ने यादव को 15 दिनों में सरकारी बंगला खाली करने को कहा था इसके बाद उन्होंने उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया था।