नई दिल्ली। उच्चतम न्यायालय ने अस्पष्ट और बगैर पर्याप्त तर्क के जमानत देने की अदालतों की हालिया प्रवृत्ति पर मंगलवार को चिंता प्रकट की।
मुख्य न्यायाधीश एनवी रमना की अध्यक्षता वाली पीठ ने बलात्कार के आरोपी एक व्यक्ति को राजस्थान उच्च न्यायालय से मिली जमानत के खिलाफ दायर विशेष अनुमति याचिका पर सुनवाई के दौरान यह चिंता प्रकट की।
शीर्ष अदालत ने संबंधित पक्षों की दलीलें सुनने के बाद सीकर की एक लड़की की आपराधिक अपील स्वीकार कर ली और राजस्थान उच्च न्यायालय के उस आदेश को रद्द कर दिया, जिसमें उसके चाचा को जमानत दी गई थी। अपील करने वाली लड़की ने अपने चाचा पर तीन-चार साल तक (उसके साथ) बलात्कार करने आरोप लगाया था।
पीठ ने कहा कि उच्च न्यायालय इस तथ्य पर विचार करने में विफल रहा कि उस आरोपी व्यक्ति पर उसकी 19 साल की भतीजी ने वर्षों तक बलात्कार का जघन्य अपराध करने का आरोप लगाया गया था।
पीठ ने कहा कि उच्च न्यायालय ने अपने आदेश में आरोपी के आदतन अपराधी और उसके खिलाफ लगभग 20 मामले दर्ज होने के तथ्य को भी नजरअंदाज किया है। उच्च न्यायालय उस प्रभाव पर विचार करने में विफल रहा है जो आरोपी के पीड़ित परिवार के एक बड़े सदस्य के रूप में हो सकता है।
शीर्ष अदालत ने आरोपी को कारावास की केवल तीन महीने की अवधि में जमानत देने पर हैरानी व्यक्त की। शीर्ष अदालत ने कहा कि जमानत के ऐसे आदेश पारित करने की एक हालिया प्रवृत्ति है, जहां अदालतें एक सामान्य अवलोकन करती हैं कि तथ्यों और परिस्थितियों पर विचार किया गया है। शीर्ष अदालत ने कहा कि विभिन्न निर्णयों को अस्वीकार करने के बावजूद ऐसी स्थिति जारी है।