नई दिल्ली। सर्वाेच्च अदालत ने भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड और राज्य क्रिकेट संघों को बड़ी राहत देते हुए गुरूवार को ‘एक राज्य एक मत’ के नियम को खारिज कर दिया, इसके अलावा लोढा समिति के भारतीय बोर्ड के लिए बनाए गए संविधान के मसौदे को भी कुछ सुधारों के साथ अपनी मंजूरी दे दी।
सर्वाेच्च अदालत ने बीसीसीआई में संवैधानिक और आधारभूत सुधारों के लिये लोढा समिति का गठन किया था जिसने अदालत के सामने अपनी सिफारिशें रखी थीं। मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने बोर्ड के लिए तैयार किए गए संविधान के मसौदे को कुछ बदलावों के साथ मंजूरी दे दी।
अदालत ने साथ ही बीसीसीआई के राज्य सदस्यों को बड़ी राहत देते हुए एक राज्य एक मत के नियम को रद्द कर दिया है और मुंबई, सौराष्ट्र, वडोदरा और विदर्भ क्रिकेट संघों को स्थायी सदस्यता प्रदान कर दी है। मुख्य न्यायाधीश ने तमिलनाडु सोसायटी के रजिस्ट्रार जनरल को चार सप्ताह के भीतर नए संशोधित बीसीसीआई संविधान मसौदे को रिकार्ड करने के लिए निर्देश भी दिए हैं।
खंडपीठ में न्यायाधीश एएम खानविलकर और डीवाई चंद्रचूण भी शामिल थे। उन्होंने रेलवे, सेना और यूनिर्वसिटीज की स्थायी सदस्यता को भी बरकरार रखने का फैसला किया जिसे पहले सर्वाेच्च अदालत द्वारा गठित लोढा समिति की सिफारिश पर रद्द कर दिया गया था।
सर्वाेच्च अदालत ने बीसीसीआई के पदाधिकारियों के लिए ‘कूलिंग ऑफ’ या दो कार्यकालों के बीच में अंतर की समयावधि के नियम में भी बदलाव किये हैं। संशाेधित नियम के अनुसार बोर्ड का कोई शीर्ष पदाधिकारी अब एक के बजाय लगातार दो कार्यकाल तक पद पर बना रह सकता है।
अदालत ने साथ ही क्रिकेट संघों को आदेश दिये हैं कि वे 30 दिनों के भीतर बीसीसीआई के संविधान को लागू करें। इसके लिए अदालत ने स्वयं गठित प्रशासकों की समिति(सीओए) को भी निर्देश दिए हैं कि वह इस प्रक्रिया की निगरानी करे। राज्य संघों को नियम उल्लंघन करने की स्थिति में सज़ा के लिए भी चेताया गया है।
उल्लेखनीय है कि पांच जुलाई को अपने फैसले में सभी राज्य क्रिकेट संघों को शीर्ष अदालत ने अगले आदेश तक चुनाव कराने से रोक लगायी थी।
वहीं पिछली सुनवाई मेंं तमिलनाडु क्रिकेट संघ(टीएनसीए) ने बीसीसीआई एवं राज्य सघों के पदाधिकारियों के लिये कूलिंग आॅफ का विरोध किया था। टीएनसीए ने साथ ही आर एम लोढा समिति के पदाधिकारियों के लिए 70 वर्ष की आयु तक पद पर रहने की सिफारिश का भी विरोध किया था। हालांकि अदालत ने पदाधिकारियों के लिए 70 वर्ष की आयु निर्धारित करने के नियम को बरकरार रखा है।