नई दिल्ली। सुप्रीमकोर्ट ने बिहार के एक जिला एवं सत्र न्यायाधीश के निलंबन आदेश के खिलाफ दायर याचिका पर शुक्रवार को राज्य सरकार और पटना उच्च न्यायालय को नोटिस जारी कर जवाब तलब किया।
न्यायमूर्ति यूयू ललित और न्यायमूर्ति एस रवींद्र भट की पीठ ने न्यायिक अधिकारी शशि कांत राय द्वारा उच्च न्यायालय के आदेश को चुनौती देने वाली याचिका पर बिहार सरकार और उच्च न्यायालय के रजिस्ट्रार जनरल को नोटिस जारी कर अपना पक्ष रखने को कहा।
न्यायाधीश राय ने बाल उत्पीड़न के एक मामले में चार दिनों के भीतर दोषी को मौत की सजा दी थी। इसी प्रकार एक अन्य सामूहिक बलात्कार के मामले में न्यायाधीश ने एक दिन में दोषी को आजीवन कारावास की सजा दी थी।
पीठ ने उच्च न्यायालय एवं राज्य सरकार को नोटिस जारी किया और साथ ही कहा कि संबंधित जिला एवं सत्र न्यायाधीश के फैसले लेने की अवधि संबंधी दृष्टिकोण को सराहनीय नहीं कहा जा सकता।
न्यायाधीश की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता विकास सिंह ने दलील दी कि नई मूल्यांकन प्रणाली के आधार पर वरिष्ठता की मांग करने वाले याचिकाकर्ता न्यायाधीश को उच्च न्यायालय से फोन आया और बाद में बिना किसी कारण के निलंबित कर दिया गया।
याचिकाकर्ता न्यायाधीश के दो फैसलों के संदर्भ में पीठ ने कहा कि केवल इसलिए कि चार दिनों में कुछ किया जाता है, इसका मतलब यह नहीं है कि निर्णय को रद्द करना होगा। लेकिन हम यह नहीं कह सकते कि ऐसा दृष्टिकोण सराहनीय है।
पीठ ने यह भी बताया कि उच्चतम न्यायालय के कई फैसले हैं, जिनमें कहा गया है कि सजा देने संबंधी कार्यवाही एक ही दिन में नहीं किए जाने चाहिए।
पीठ ने वकील श्री सिंह (याचिकाकर्ता न्यायाधीश) से कहा कि आपने एक ही दिन में आरोपी को सुना और आजीवन कारावास की सजा सुनाई है। ऐसा नहीं होता है। मुकदमों की पेंडेंसी एक मुद्दा है। इन मामलों के प्रति दृष्टिकोण एक अलग मुद्दा है।
वरिष्ठ वकील सिंह ने कहा कि एक न्यायाधीश को गलत निर्णय के लिए आगे नहीं बढ़ाया जा सकता है। इस पर अदालत ने कहा कि शीर्ष अदालत ने कुछ दिन पहले एक हत्या के मामले में पांच साल की जेल की अवैध सजा सुनाने के लिए परिवीक्षा स्तर पर एक महिला न्यायाधीश की सेवा समाप्त करने में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया था।