नई दिल्ली। उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश न्यायमूर्ति ए. एम. खानविलकर शुक्रवार को सेवानिवृत्त हो गए। न्यायमूर्ति खानविलकर ने सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश, आधार, व्यभिचार के आपराधिक प्रावधान और समलैंगिक यौन संबंध को अपराध से मुक्त करने सहित कई ऐतिहासिक फैसला करने वाली शीर्ष न्यायालय की पीठ में शामिल रहे।
न्यायमूर्ति खानविलकर की अध्यक्षता वाली पीठ ने पिछले दिनों प्रिवेंशन ऑफ मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट के प्रावधानों को बरकरार रखने वाला फैसला सुनाया था। न्यायमूर्ति खानविलकर ने उस पीठ की भी अध्यक्षता की थी, जिसने 2002 के दंगों में गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी और 63 अन्य को क्लीन चिट की पुष्टि की थी।
छह साल से अधिक समय के अपने कार्यकाल की समाप्ति पर न्यायमूर्ति खानविलकर ने मुख्य न्यायाधीश एनवी रमना और दो अन्य न्यायाधीशों के साथ औपचारिक पीठ पर बैठे हुए कहा कि विदाई के रूप में मैं केवल सभी को प्यार और स्नेह के लिए धन्यवाद कहूंगा। बहुत-बहुत धन्यवाद। भगवान आपका भला करे।
न्यायमूर्ति खानविलकर को मई 2016 में शीर्ष अदालत के न्यायाधीश के रूप में पदोन्नत किया गया था। उनका जन्म 30 जुलाई, 1957 को पुणे में हुआ था। उन्होंने मुंबई के एक लॉ कॉलेज से एलएलबी की पढ़ाई की थी। उन्हें 4 अप्रैल 2013 को हिमाचल प्रदेश के उच्च न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश और बाद में 24 नवंबर 2013 को मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश नियुक्त किया गया था।