नयी दिल्ली । उच्चतम न्यायालय ने बुधवार को एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा कि अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति (एससी/एसटी) के सरकारी कर्मचारियों को पदोन्नति में आरक्षण के मामले में 12 साल पुराने ‘नागराज’ फैसले पर फिर से विचार करने की आवश्यकता नहीं है।
मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा, न्यायमूर्ति कुरियन जोसेफ, न्यायमूर्ति रोहिंगटन एफ नरीमन, न्यायमूर्ति संजय किशन कौल और न्यायमूर्ति इंदु मल्होत्रा की संविधान पीठ ने एम नागराज बनाम भारत सरकार मामले में 2006 के पांच-सदस्यीय संविधान पीठ के फैसले को सात-सदस्यीय पीठ के सुपुर्द करने से इन्कार कर दिया। इस फैसले में एससी-एसटी कर्मियों को पदोन्नति देने के लिए कुछ शर्तें रखी गई हैं।
न्यायालय ने स्पष्ट किया कि पदोन्नति में आरक्षण के लिए एससी/एसटी से संबंधित संख्यात्मक आंकड़ा संग्रह करने की आवश्यकता नहीं है। उल्लेखनीय है कि 2006 में पांच न्यायाधीशों की संवैधानिक पीठ ने अपने फैसले में कहा था कि राज्य एससी/एसटी के पिछड़ेपन पर संख्यात्मक आंकड़ा देने के लिए बाध्य हैं। न्यायालय ने कहा था कि इन समुदायों के कर्मचारियों को पदोन्नत में आरक्षण देने से पहले राज्य सरकारी नौकरियों में उनके अपर्याप्त प्रतिनिधित्व एवं प्रशासनिक कार्यकुशलता के बारे में तथ्य पेश करेंगे।