नई दिल्ली। सुप्रीमकोर्ट ने अयोध्या के राम जन्म भूमि बाबरी मस्जिद जमीन विवाद को मध्यस्थता के जरिये सुलझाने का आदेश दिया तथा एक कमेटी का गठन भी किया।
मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने अपने आदेश में कहा कि हमें इस मसले को सुलझाने के लिए मध्यस्थता का रास्ता अपनाने में कोई कानूनी बाधा नजर नहीं आती है।
संविधान पीठ ने शीर्ष अदालत के पूर्व न्यायाधीश एफ एम कलिफुल्ल के नेतृत्व में तीन सदस्यी मध्यस्थता समिति गठित की है। समिति में सामाजिक कार्यकर्ता और आर्ट ऑफ लिविंग के संस्थापक श्रीश्री रविशंकर और वरिष्ठ अधिवक्ता राम पंचू शामिल हैं।
मध्यस्थता की प्रक्रिया फैजाबाद में होगी, जिसकी रिपोर्टिंग मीडिया नहीं कर सकेगा। संविधान पीठ में न्यायमूर्ति गोगोई के अलावा एसए बाेबडे, न्यायमूर्ति अशोक भूषण, न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति एस अब्दुल नजीर शामिल हैं।
उल्लेखनीय है कि शीर्ष अदालत ने गत बुधवार को मध्यस्थता के मसले पर सुनवाई पूरी करके फैसला सुरक्षित रख लिया था और बीते कल एक नोटिस के जरिये मामले पर आदेश सुनाने के वास्ते आज की तारीख मुकर्रर की थी।
संविधान पीठ के समक्ष मध्यस्थता के मसले पर बुधवार को हुई सुनवाई के दौरान रामलला विराजमान के वकील ने इस विवाद को मध्यस्थता के जरिये सुलझाए जाने के प्रयास का विरोध किया था। उनका कहना था कि यह मसला पूरी तरह भूमि विवाद का है और इसे मध्यस्थता के जरिये नहीं सुलझाया जाना चाहिए।
मुस्लिम पक्षकार की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता राजीव धवन ने हालांकि मध्यस्थता का विरोध नहीं किया था। शीर्ष अदालत ने हिन्दू पक्षकारों की ओर से मध्यस्थता से इन्कार किए जाने पर आश्चर्य जताया था। न्यायालय ने कहा था कि अतीत पर उसका कोई वश नहीं, लेकिन वह बेहतर भविष्य की कोशिश जरूर कर सकता है।
न्यायमूर्ति बोबडे ने कहा था कि हमने इतिहास पढ़ा है। हम इतिहास जानते हैं। अतीत में जो हो चुका है, उस पर हमारा कोई नियंत्रण नहीं है। उन्होंने कहा था कि एक बार मध्यस्थता प्रक्रिया शुरू होने के बाद इसकी रिपोर्टिंग नहीं की जानी चाहिए, जबकि न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ का मानना था कि एक बार मध्यस्थता शुरू हो जाती है तो इसके बाद किसी चीज को बांधा नहीं जा सकता।
इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने इस जमीन विवाद में फैसला सुनाते हुए विवादित भूमि तीन बराबर हिस्सों में बांटकर तीनों पक्षकारों को देने का आदेश दिया था, जिसके खिलाफ कई अपील शीर्ष अदालत में दायर की गई हैं। लंबे समय से ये अपील शीर्ष अदालत में लंबित हैं।