नई दिल्ली। उच्चतम न्यायालय पांच विधानसभाओं के चुनाव प्रचार में कुछ राजनीतिक दलों और उम्मीदवारों के कथित खोखले वादों के खिलाफ दायर याचिका गुरुवार को खारिज कर दी।
मुख्य न्यायाधीश एनवी रमना की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने सुरजीत सिंह यादव की याचिका सख्त टिप्पणियों और अदालत का समय बर्बाद करने की कीमत चुकाने की चेतावनी के साथ खारिज की। खंडपीठ ने कहा कि याचिका का उद्देश्य कुछ खास दलों को कोई छुपे इरादे की वजह से निशाना बनाने तथा खुद प्रचार पाने का माध्यम लगता है।
मुख्य न्यायाधीश ने सुनवाई करते हुए याचिकाकर्ता के वकील बरुण कुमार सिन्हा से कहा, “ यह किसी खास उद्देश्य एक प्रेरित याचिका लगता है। हमें एक छिपा हुआ कोई मकसद दिखाई देता है। आखिर आप विशेष दलों को ही क्यों निशाना बना रहे हैं ।”
पीठ ने याचिकाकर्ता से पूछा कि आपने अपनी याचिका में कुछ खास पार्टी का ही जिक्र क्यों किया? आमतौर पर ऐसा कोई और नहीं करता है। शीर्ष न्यायालय ने याचिकाकर्ता द्वारा एक एनजीओ के उपाध्यक्ष होने के दावे के संबंध में भी जानकारी मांगी है।
उच्च्तम न्यायालय ने बुधवार को अधिवक्ता श्री सिन्हा की गुहार पर इस याचिका पर सुनवाई के लिए सहमति दी थी। ‘विशेष उल्लेख’ के दौरान वकील सिन्हा द्वारा इस मामले को अति आवश्यक बताया गया था।
याचिका में पांच राज्यों में विधानसभा चुनावों के दौरान कथित तौर पर मतदाताओं को मुफ्त उपहार देने के लिए विभिन्न राजनीतिक दलों के उम्मीदवारों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करने तथा उन्हें अयोग्य ठहराए जाने का निर्देश देने की मांग की गई थी।
याचिका में दावा किया गया है कि किसी राजनीतिक दल, उसके नेता और चुनाव में खड़े उम्मीदवारों द्वारा इस तरह के प्रस्ताव या वादे को जनप्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 की धारा 123 (1) (बी) के प्रावधानों के तहत भ्रष्ट आचरण और रिश्वतखोरी में लिप्त घोषित किया जा सकता है। याचिका पर सुनवाई के लिए सहमति देने से पहले पीठ ने कहा था कि चुनावी रिश्वत हर जगह चल रही है। यह किसी विशेष राज्य का मामला नहीं है।
याचिका स्वयंसेवी संस्था (एनजीओ) हिंदू सेना का उपाध्यक्ष होने का दावा करते हुए यादव द्वारा दायर याचिका की गई थी। याचिकाकर्ता ने उत्तर प्रदेश में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस एवं समाजवादी पार्टी और पंजाब में आम आदमी पार्टी द्वारा 2022 के विधानसभा चुनाव उम्मीदवारों को अयोग्य घोषित करने का निर्देश देने की मांग की थी।
उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब, गोवा और मणिपुर में संबंधित राजनीतिक दलों के सत्ता में आने पर मतदाताओं को सरकारी खजाने से उपहार, सामान, एक निश्चित रकम की पेशकश करना जनप्रतिनिधित्व कानून के उल्लंघन की श्रेणी में आएगा।
मतदाताओं को लुभावने वादे कर अपने पक्ष में वोट देने के लिए प्रेरित करने को अपराध मानते हुए राजनीतिक दलों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करने की मांग की गई थी। याचिकाकर्ता का दावा है राजनीतिक दल मतदाताओं को अपने पक्ष में करने के लिए मुफ्त पानी, बिजली और वाईफाई, और साइकिल, लैपटॉप, मोबाइल फोन आदि लुभावने पेशकश या वादे कर रहे हैं।
याचिका में सवाल किया गया था कि क्या राजनीतिक दल, उसके नेता चुनाव प्रचार के दौरान या उससे पहले सत्ता में आने के लिए लुभावने वादे के संबंध में सार्वजनिक घोषणा कर सकते हैं। क्या वे बिना किसी बजटीय प्रावधान के जनता की गाढ़ी कमाई के पैसे की कीमत पर प्रस्ताव और वादे चुनाव जीतने के लिए कर सकते हैं। याचिकाकर्ता का कहना था कि इन सवालों पर आगे विचार करने की आवश्यकता है।