नई दिल्ली। उच्चतम न्यायालय ने शाहीन बाग इलाके में अतिक्रमण हटाने के मामले में निर्देश देने संबंधी याचिकाओं पर हस्तक्षेप करने से सोमवार को इनकार कर दिया।
शीर्ष अदालत ने मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी और अन्य की ओर से दायर याचिकाओं पर हस्तक्षेप करने से इनकार करते हुए कहा कि किसी भी प्रभावित पक्ष ने अदालत से गुहार नहीं लगाई है और याचिका एक राजनीतिक दल की ओर से दायर की गई है।
न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव और न्यायमूर्ति बीआर गवई की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने याचिकाकर्ताओं से कहा कि इस न्यायालय को इस सबके लिए एक मंच न बनाएं।
न्यायालय ने कहा कि यह बहुत हो गया है। न्यायालय ने इस टिप्पणी के साथ शाहीन बाग और दिल्ली के अन्य हिस्सों में अतिक्रमण विरोधी अभियान के खिलाफ माकपा की याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया।
उच्चतम न्यायालय ने ऐसे सभी याचिकाकर्ताओं को राहत के लिए दिल्ली उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाने को कहा। शीर्ष अदालत ने वरिष्ठ वकील पीवी सुरेंद्रनाथ से पूछा कि माकपा क्यों याचिका दायर कर रही है? अनुच्छेद 32 के तहत मौलिक अधिकार का उल्लंघन क्या है?
इस पर सुरेंद्रनाथ ने जवाब दिया कि यह याचिका जनहित में है, न कि कोई पार्टी हित में। इस पर न्यायमूर्ति राव ने पूछा कि आपको बेहतर सलाह दी जाएगी कि आप उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाएं। इसे ऐसा मंच न बनाएं और किसी राजनीतिक दल की ओर से न आएं।
सुरेंद्रनाथ ने जवाब दिया कि प्रभावित पक्षों को कोई नोटिस जारी नहीं किया गया या सांस लेने का समय भी नहीं दिया गया है। वे इमारतों को ध्वस्त कर रहे हैं। उन्होंने इस मुद्दे पर न्यायालय से तत्काल निर्देश देने की मांग की।
नई दिल्ली नगर परिषद (एनडीएमसी) की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि कृपया देखें कि किस तरह की गलत बयानी राजनीतिक प्रचार पैदा करने वाली है। सार्वजनिक सड़क से अतिक्रमण हटाना नियमित है और नोटिस की आवश्यकता नहीं है।
मेहता ने कहा कि यह स्क्रैप-होल्डिंग को हटाना है, जैसे कि सड़क पर बाहर टेबल कुर्सियों को दुकान मालिक खुद हटा देते हैं लेकिन उन्हें जानकारी कहां से मिल रही है कि इमारतें गिराई जा रही हैं? उच्चतम न्यायालय ने याचिकाकर्ता को उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाने के लिए कहा। न्यायालय ने कहा कि जो लोग पीड़ित हैं, वे उचित मंच से संपर्क कर सकते हैं।