नई दिल्ली। सुप्रीमकोर्ट ने व्यवस्था दी कि संसदीय समिति की रिपोर्ट को न तो अदालत में चुनौती दी जा सकती है, न ही इसकी वैधता पर सवाल खड़े किये जा सकते हैं।
मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पांच-सदस्यीय संविधान पीठ ने कल्पना मेहता की जनहित याचिका पर बुधवार को अपना फैसला सुनाया। संविधान पीठ ने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 32 और 136 के तहत दायर मामलों में संसद की स्थायी समिति की रिपोर्ट पर भरोसा किया जा सकता है।
पीठ में न्यायाधीश ए के सिकरी, न्यायाधीश एएम खानविलकर, न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ और न्यायाधीश अशोक भूषण भी शामिल हैं। इस मामले में पीठ के तीन न्यायाधीशों मिश्रा, चंद्रचूड़ और भूषण ने अपना फैसला लिखा, हालांकि तीनों फैसला सहमति वाला था।
न्यायालय ने कहा है कि संसद की स्थायी समिति की रिपोर्ट को न्यायिक प्रक्रिया से बाहर रखने का कोई कारण नहीं बनता और अदालत इस पर भरोसा कर सकती है। ऐसी रिपोर्टों को न्यायिक प्रक्रिया का हिस्सा बनाना संसदीय विशेषाधिकार का हनन कतई नहीं होगा।
शीर्ष अदालत ने हालांकि स्पष्ट किया कि संसदीय समिति की रिपोर्ट को अदालत में चुनौती नहीं दी जा सकती। यह मामला सर्वाइकल कैंसर के इलाज से संबंधित दो टीके का इस्तेमाल आंध्र प्रदेश और गुजरात में आदिवासी महिलाओं पर किये जाने से जुड़ा है।
इस मामले की सुनवाई कर रही खंडपीठ ने संविधान पीठ गठित करने का आग्रह किया था। संविधान पीठ को इस बात पर विचार करना था कि क्या अदालत संसदीय समिति की रिपोर्ट पर भरोसा कर सकती है या नहीं तथा रिपोर्ट को अदालत में चुनौती दी जा सकती है या नहीं।