नई दिल्ली। उच्चतम न्यायालय पांच विधानसभाओं के चुनाव प्रचार में राजनीतिक दलों और उम्मीदवारों के कथित खोखले वादों के खिलाफ दायर याचिका पर गुरुवार को सुनवाई करेगा।
मुख्य न्यायाधीश एनवी रमना की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने बुधवार को अधिवक्ता बरुन कुमार सिन्हा की गुहार पर सुनवाई के लिए सहमति दी। विशेष उल्लेख के दौरान याचिकाकर्ता द्वारा इस याचिका को अति आवश्यक बताया गया। खंडपीठ ने गुजारिश स्वीकार करते हुए इस पर सुनवाई 3 मार्च के लिए सूचीबद्ध करने का निर्देश दिया।
याचिका में पांच राज्यों में विधानसभा चुनावों के दौरान कथित तौर पर मतदाताओं को मुफ्त उपहार देने के लिए विभिन्न राजनीतिक दलों के उम्मीदवारों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करने तथा उन्हें अयोग्य ठहराए जाने का निर्देश देने की मांग की गई है।
याचिका में दावा किया गया है कि किसी राजनीतिक दल, उसके नेता और चुनाव में खड़े उम्मीदवारों द्वारा इस तरह के प्रस्ताव या वादे को जनप्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 की धारा 123 (1) (बी) के प्रावधानों के तहत भ्रष्ट आचरण और रिश्वतखोरी में लिप्त घोषित किया जा सकता है।
याचिका पर सुनवाई के लिए सहमति देने से पहले पीठ ने कहा कि चुनावी रिश्वत हर जगह हो रही है। यह किसी विशेष राज्य का मामला नहीं है। याचिका स्वयंसेवी संस्था (एनजीओ) हिंदू सेना के उपाध्यक्ष सुरजीत सिंह यादव द्वारा दायर याचिका की गई है।
याचिकाकर्ता ने उत्तर प्रदेश में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस एवं समाजवादी पार्टी और पंजाब में आम आदमी पार्टी द्वारा 2022 के विधानसभा चुनाव मैदान में उतारे गए उम्मीदवारों को अयोग्य घोषित करने का निर्देश देने की मांग की है।
उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब, गोवा और मणिपुर में संबंधित राजनीतिक दलों के सत्ता में आने पर मतदाताओं को सरकारी खजाने से उपहार, सामान, धन की पेशकश किया जाना जनप्रतिनिधित्व कानून के उल्लंघन की श्रेणी में आएगा। मतदाताओं को लुभावने वादे कर अपने पक्ष में वोट देने के लिए प्रेरित करने को अपराध मानते हुए राजनीतिक दलों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करने की मांग की गई है।
याचिकाकर्ता का दावा है राजनीतिक दल मतदाताओं को अपने पक्ष में करने के लिए मुफ्त पानी, बिजली और वाईफाई, साइकिल, लैपटॉप, मोबाइल फोन आदि जैसे लुभावने पेशकश या वादा कर रहे हैं।
याचिका में सवाल किया गया है कि क्या कोई राजनीतिक दल, उसके नेता चुनाव प्रचार के दौरान या उससे पहले लुभावने वादे के संबंध में सार्वजनिक घोषणा कर सकते हैं। वे बिना किसी बजटीय प्रावधान के जनता की गाढ़ी कमाई के पैसे की कीमत पर प्रस्ताव और वादा कैसे कर सकते हैं। याचिकाकर्ता का कहना है कि इन सवालों पर आगे विचार करने की आवश्यकता है।