झुंझुनूं। राजस्थान में सीकर जिले के खाटू में श्याम बाबा का वार्षिक खाटू मेला शुरू हो गया है। खाटू मेले में लाखों की संख्या में निशान आते हैं, लेकिन जिस निशान का खाटू भी इंतजार करता है वह झुंझुनू के सूरजगढ़ से जाने वाला निशान है।
यह निशान सोमवार को गाजे-बाजे के साथ रवाना हुआ। इस निशान पदयात्रा में करीब 15 हजार श्रद्धालु शामिल हैं। जो बाबा के दर पर पहुंचने वाला सबसे बड़ा निशान भी कहा जा सकता है। इसकी मान्यता ऐसी है कि न केवल देश, बल्कि विदेशों से भी श्रद्धालु पहुंचकर इसमें शामिल होते हैं।
बाबा श्याम का विश्व प्रसिद्ध सूरजगढ़ का निशान सोमवार को सप्तमी के दिन पूजा अर्चना के बाद सूरजगढ़ से रवाना हुआ जो रात को सुलताना, मंगलवार को गुढ़ा, बुधवार को गुरारा में रात्रि विश्राम करेगा और चौथे दिन खाटू पहुंचेगा। जहां पर कोसी टीबी में विश्राम के बाद द्वादशी के दिन इसे खाटू श्याम के मंदिर के शिखरबंद पर धूमधाम से चढ़ाया जाएगा।
सूरजगढ़ का निशान ही एक मात्र ऐसा निशान है जिसका इंतजार खाटू भी करता है और बाबा का शिखरबंद भी। इसके अलावा किसी भी निशान को शिखरबंद पर जगह नहीं मिलती है।
मेला आयोजकों ने बताया कि कोलकाता, आसाम, चैन्नई, नेपाल, काठमांडू एवं विश्व के कोने-कोने से श्याम भक्त इस निशान के दर्शन करने और इस पदयात्रा में शामिल होने के लिए पहुंचते है। क्योंकि इस निशान का ही अपना अलग और बड़ा महत्व है।
यह निशान करीब 324 साल पहले विक्रम संवत 1752 में अमरचंद भोजराजका परिवार ने शुरू किया था। तब से अब तक यह लगातार फाल्गुन में खाटू जाता है। भोजराजका परिवार के नागेंद्र भोजराजका ने बताया कि करीब सवा सौ साल पहले अंग्रेजों ने बाबा के मंदिर में ताला लगा दिया था। तब इसी निशान के अगुवाई कर रहे सांवलराम के कहने पर मंगलाराम ने मोरपंखी से ताला तोड़ दिया था। उस दिन के बाद से इस निशान की मान्यता सबसे ज्यादा बढ़ गई और केवल ये ही निशान है जो बाबा के मंदिर के शिखरबंद पर चढ़ता है।
उन्होंने बताया कि पदयात्रा के आगे बढ़ने के साथ ही पदयात्रियों की संख्या में इजाफा हो जाता है। रास्ते में पदयात्रियों की सेवा करने वालों में भी होड़ मची रहती है।
नागेंद्र भोजराजका बताते है कि श्रद्धालुओं में इस बात को लेकर मान्यता है कि इस निशान के साथ खुद बाबा श्याम चलते है। वहीं कोसी टीबी पर पहुंचने के बाद जब विश्राम होता है तो वहां कई लोगों को बाबा श्याम के दर्शन होते है। उन्होंने उदाहरण देते हुए बताया कि उनके पड़दादा को एक बार सांड ने घायल कर दिया था, लेकिन जब उनके पड़दादा कोसी टीबी पहुंचे तो उन्हें बाबा श्याम के दर्शन हुए और सारा का सारा दर्द चला गया।
यही कारण है कि अब भी कई श्रद्धालु ऐसे है जो कोसी टीबी तक पहुंचकर ही बाबा श्याम के दर्शन कर लेते हैं और वापिस लौट आते है। वे मंदिर तक भी नहीं जाते। इस निशान के साथ खुद बाबा श्याम चलते हैं। इसी धारणा को बाबा श्याम की मंदिर कमेटी भी मानती है। जिसके चलते मंढा मोड़ तथा कोसी टीबी में इस पदयात्रा का स्वागत करने के लिए कमेटी के पदाधिकारी आते हैं और गाजे-बाजे के साथ इसे मंदिर तक ले जाते है।
इस निशान के साथ महिलाएं भी अपने सिर पर सिगड़ी रखकर जाती है। जिसके पीछे मान्यता है कि जिस महिला ने बाबा के सामने अपनी मुराद रखी और वह पूरी हो गई तो वह पदयात्रा में पूरे रास्ते सिर सिगड़ी रखकर पहुंचती है और वह बाबा को अर्पित करती है। यही नहीं ये महिलाएं पूरे रास्ते बाबा के भजनों पर नाचते-गाते हुए पूरे श्रद्धाभाव के साथ पहुंचती है। वहीं आज भी इनकी पदयात्रा में ऊंट लड्ढे साथ चलते है।