विनीत शर्मा
सूरत महानगर पालिका के मंगलवार को जारी हुए परिणाम के बाद यह सवाल वाजिब है कि क्या वाकई में आप की जमीन सूरत में इतनी मजबूत है कि पहली ही बार में सबको धता बताते हुए नए चेहरे अचानक अपनी नई पहचान गढ़ लें? यह उतना सच भी नहीं है, जितना फौरी तौर पर दिखता है।
दरअसल आम आदमी पार्टी ने उसी नाव पर सवार होकर वैतरणी पार की है, जिसके सहारे लंबे समय तक कांग्रेस फिर भाजपा और गत चुनावों में एक बार फिर कांग्रेस ने जीत के परचम गाड़े थे। पाटीदारों ने बार-बार अपना मिजाज अपनी सहूलियत के हिसाब से बदला है। इस मिजाज ने भारतीय राजनीति में जातीय आधार को और मजबूत किया है। साथ ही पाटीदार समाज ने यह भी साफ कर दिया कि अब लंबे वक्त तक उनकी अनदेखी नहीं की जा सकती।
पाटीदारों के सहारे राजनीति आम आदमी पार्टी के लिए भी तलवार की धार पर चलने जैसा ही है। आप के केंद्रीय नेतृत्व को भी समझना होगा कि सिर्फ पाटीदारों के भरोसे तात्कालिक सफलता तो हासिल की जा सकती है, लेकिन सत्ता की दहलीज तक पहुंचने के लिए पाटीदार समाज के साथ होने भर से काम नहीं चलने वाला।
यह कांग्रेस और भाजपा के लिए भी सबक है कि समय रहते पाटीदारों को साधा नहीं गया तो जिस तरह कांग्रेस गुजरात की राजनीति में अप्रासंगिक हो चुकी है, भाजपा को भी हाशिए पर जाते वक्त नहीं लगेगा। जिस हार्दिक को पर्दे के पीछे से तैयार कर पाटीदार समाज को राजनीति के दूसरे क्षितिज पर खड़ा करने की कोशिश की गई थी, 2015 के निकाय चुनावों में उसका खामियाजा भाजपा को भुगतना पड़ा था।
उस वक्त पाटीदार भाजपा से छिटके तो कांग्रेस ने बरसों बाद उन सीटों पर जीत का स्वाद चखा था, जहां जीत बस ख्वाब में ही संभव थी। इस बार कांग्रेस को सबक सिखाने के लिए पाटीदारों ने आप के साथ गलबहियां कीं और नतीजा सबके सामने है। आप के प्रत्याशियों ने उन्हीं सीटों पर जीत दर्ज की, जहां पाटीदार निर्णायक थे।
इससे पहले पाटीदारों का साथ जब तक कांग्रेस के साथ रहा, गुजरात में कांग्रेस ने निष्कंटक राज किया। पाटीदारों की नाराजगी का खामियाजा कांग्रेस ने प्रदेश की सत्ता गंवा कर चुकाया और वह सिलसिला अब तक जारी है। एक साल बाद गुजरात में विधानसभा चुनाव होने हैं। भाजपा को सत्ता में बने रहना है तो उनके मिजाज को समझना होगा।
पाटीदार आंदोलन के दौरान हिंसा के करीब ढाई सौ मामले दर्ज हैं। इनमें अकेले सूरत से ही डेढ़ सौ से अधिक मामले हैं। पाटीदार आंदोलन तो समाप्त हो गया, लेकिन इन मामलों को अब तक वापस नहीं लिया गया है। इसे लेकर समाज के लोगों में गुस्सा है जिसकी परिणति इस बार के मनपा चुनाव में देखने को मिली। समय रहते इसका निपटारा नहीं हुआ तो विधानसभा चुनाव के परिणाम भी भाजपा और कांग्रेस की उम्मीद से परे हो सकते हैं।