Warning: Constant WP_MEMORY_LIMIT already defined in /www/wwwroot/sabguru/sabguru.com/18-22/wp-config.php on line 46
दातार की कबूतरा जनजाति में फैला शिक्षा का उजाला - Sabguru News
होम Headlines दातार की कबूतरा जनजाति में फैला शिक्षा का उजाला

दातार की कबूतरा जनजाति में फैला शिक्षा का उजाला

0
दातार की कबूतरा जनजाति में फैला शिक्षा का उजाला

विजयलक्ष्मी सिंह
सबगुरु न्यूज। आज समूचे गांव में सुगंधित सुवासित इत्र छिड़का गया था। गांव की आबोहवा में एक अलग ही स्फूर्ति थी। घर-घर में बड़े जतन से साफ-सफाई की गई थी। मानो जैसे कोई उत्सव हो। वक़्त के पन्नो को थोड़ा पीछे पलटें तो अमूमन आम दिनों में इसके बिल्कुल विपरीत इस गांव में लगभग सभी घरों में कच्ची शराब बनाई जाती थी, जिसके कारण यहां वातावरण में एक अजीब सी कसैली दुर्गंध घुली रहती थी। मगर आज तो गांववालों के लिए बेहद खास दिन था।

झांसी नगर के एसएसपी देवकुमार एंटोनी शहर से 12 किलोमीटर दूर स्थित इस छोटे से गांव दातार में आने वाले थे। अपनी कड़क व ईमानदार छवि के लिए विख्यात एंटोनी आज यहां न तो शराब बेचने वालों को धर-दबोचने के लिए यहां आने वाले थे, न ही किसी अपराधी को सलाखों के पीछे भेजने। वे तो दातार के उन युवकों को सम्मानित करने आ रहे थे, जिन्होंने शराब पीनी और बनानी दोनों छोड़ दी थी।

वास्तव में यह किसी चमत्कार से कम नहीं था। जिस कबूतरा समाज के लोग अपनी अपराधिक छवि व गैरकानूनी शराब के धंधे के लिए कुख्यात थे, आज उसी समाज के कुछ युवकों का सम्मान शराब सेवन और इसका धंधा छोड़ने के लिए किया जा रहा था।

यह हैरतअंगेज़ परिवर्तन संघ के स्वयंसेवकों द्वारा संचालित सेवा समर्पण समिति की वर्षों की अथक मेहनत का नतीजा था। समिति द्वारा 10 वर्षों से संचालित वन टीचर स्कूल ने न सिर्फ कबूतरा समाज के बच्चों में पढ़ने की आदत विकसित की बल्कि उनके माता-पिता को भी समाज की मुख्य धारा का हिस्सा बनाया।

राजकुमार द्वेदी आज भी 10 बरस पहले मई 2007 का वो दिन नहीं भूले हैं, जब वो पहली बार दातार आए थे। तब कबूतरा समाज कोई व्यक्ति उन्हें अपने डेरे पर ले जाने को तैयार नहीं था। वे इन बच्चों को पढ़ाना चाहते थे, पर उनके माता-पिता इसके लिए कतई तैयार नहीं थे। काफी प्रयासों के बाद अंततः उन्होंने इस शर्त पर मंजूरी दी कि राजकुमार जी पढ़ाई के अलावा गांव की किसी अन्य बात से मतलब नहीं रखेंगे।

यहां के लोग कज्जा (कबूतरा समाज से इतर के लोग) लोगों पर भरोसा नहीं करते थे। इसके अलावा कबूतरा जनजाति का अपराधिक इतिहास भी उन्हें बाकी के अन्य समाज से अलग किए हुए था। झांसी व इसके आस-पास के इलाके के लोग कबूतराओं से डरते थे, ऐसी धारणा थी कि जो भी खेत-खलिहान कबूतराओं के इलाकों से सटे हैं वहां लूटपाट व चोरी-चकारी की वारदातें ज़्यादा होती हैं।

शिक्षा की राह में अकसर गरीबी सबसे बड़ा रोड़ा होती है। मगर यहां न ही गरीबी थी, न भूख, फिर भी इनके बच्चे कहीं पढ़ने नहीं जाते थे। यहां की समस्या कुछ और ही थी। परन्तु ज्यों ही इनकी बस्ती में शिक्षा के सूरज का उदय हुआ, पिछड़ी सामाजिक सोच का अंधेरा मुंह छिपा कर भागने लगा और गांव का बचपन सुनहरे भविष्य की ओर बढ़ चला। इन चंद बरसों में दातार में सब कुछ बदल गया है।

बीएससी द्वतीय वर्ष में पढ़ रहे आशीष मनोरिया अब अपने नाम के साथ कबूतरा उपनाम नही लगाना चाहते। उनका परिवार कबूतरा समाज के उस वर्ग से है जिसने न सिर्फ शराब पीना बल्कि बेचना भी बंद कर दिया है। गांव में ही हार्डवेयर की दुकान चलाने वाले अनिल मनोरिया कहते हैं हमने स्वप्न में भी नहीं सोचा था कि कभी हम ये धंधा छोड़ पाएंगे।

इतिहास पर नजर डालें तो कबूतराओं ने बहुत बुरे दिन देखे हैं। एक समय था जब उन्हें देखते ही लोग पीटने लगते थे। किसी भंडारे में भी उन्हें सबके साथ बैठने नहीं दिया जाता था। पेट भरने के लिए चोरी व डकैती के अलावा इन लोगों के पास कोई उपाय नहीं था। बाद में तत्कालीन गृहराज्यमंत्री बलवंत नागेश दातार ने इन्हें संगठित कर फरवरी 1958 में दातार गांव बसाया था।

परंतु 40 बरस बाद भी कबूतरा समाज के लोग मुख्यधारा का हिस्सा न बन सके। वर्ष 2005 में संघ की महानगर बैठक में पहली बार कबूतरा समाज की सामाजिक स्थिति पर चर्चा हुई, जिसके बाद स्वयंसेवको ने इस समाज के बीच जाकर कार्य करने का निर्णय लिया। एकल विद्यालय इसी संकल्प का पहला चरण था। यह विद्यालय अब सेवा समर्पण समिति के माध्यम से चलता है।

आज दातार से 450 बच्चे झांसी के विभिन्न स्कूलों में पढ़ने जाते हैं। ये वो बच्चे हैं जो पूर्व में स्कूल जाने के बजाए घर में रहकर शराब की पैकेजिंग में मदद करते थे और अक्सर माता- पिता से छुपकर शराब पी भी लेते थे। पश्चिमी उत्तरप्रदेश के क्षेत्र सेवाप्रमुख नवलकिशोर जी की मानें तो लड़कियों को पढ़ाने के लिए कबूतरा समाज कतई तैयार नहीं था 11 से 14 बरस की आयु में ही वे इनकी शादी कर देते थे। पर अब यहां की 80 बच्चियां झांसी पढ़ने जाती हैं।

यहां तक कि अब कबूतराओं ने कज्जाओं (अपने समाज से इतर के लोगों) के लिए भी हाथ आगे बढ़ाए हैं। समिति ने जब झांसी के सीपरी बाजार बस्ती (यहां भी समिति का बालसंस्कार केंद्र चलता है) की 2 गरीब लडकियों की शादी करवाई, तो दातार से ही इन बेटियों के विवाह के लिए सारा धन दिया गया।

आइए अब बात करते हैं, एसएसपी देवकुमार जी की। सम्मान समारोह के बाद कबूतरा समाज में आए परिवर्तन को देख इस समाज के प्रति उनकी सम्पूर्ण सोच ही बदल गई। यहां आने से पूर्व वे यह मानने को तैयार ही नहीं थे, कि कबूतरा लोग अपराध की राह कभी छोड़ भी सकते हैं। परंतु कार्यक्रम के बाद न सिर्फ उनका नज़रिया बदला बल्कि उन्होंने स्वयं यहां के कुछ युवकों को पुलिस में भर्ती होने की प्रेरणा भी दी।