नई दिल्ली। विश्व हिन्दू परिषद ने उत्तर प्रदेश के उन्नाव में एक सड़क दुर्घटना में जगद्गुरू रामानंदाचार्य स्वामी हंसदेवाचार्य के निधन को संपूर्ण हिन्दू समाज के लिए अपूरणीय क्षति बताया है और कहा है कि देश एवं समाज को उनका बहुआयामी, आध्यात्मिक एवं सामाजिक व्यक्तित्व सदैव प्रेरणा देता रहेगा।
विहिप के अंतरराष्ट्रीय कार्याध्यक्ष आलोक कुमार ने एक वक्तव्य में कहा कि जगद्गुरू रामानंदाचार्य स्वामी हंसदेवाचार्य का महाप्रयाण न सिर्फ संत समाज बल्कि विश्व हिन्दू परिषद् सहित सम्पूर्ण हिन्दू समाज के लिए एक अपूरणीय क्षति है। हिन्दू समाज एवं सम्पूर्ण देश को उनका बहु आयामी अध्यात्मिक ,सामाजिक एवं जुझारू व्यक्तित्व सदैव प्रेरणादायी रहेगा।
उन्होंने कहा कि स्वामी हंसदेवाचार्य भारत के उन गिनती के संतों में से थे जो आध्यात्मिक एवं सामाजिक दोनों प्रकार के सरोकारों पर न सिर्फ अधिकार रखते थे बल्कि परिवर्तन लाने के लिए परिणाम आने तक संघर्ष करते थे। वह अनेक वर्षों तक अखिल भारतीय संत समिति के महामंत्री एवं अध्यक्ष पद पर सुशोभित रहे और वर्तमान में उसके संरक्षक के तौर पर देशभर की संत शक्ति को दिशा देने का प्रयास कर रहे थे। वह पंचनद स्मारक ट्रष्ट के भी मुख्य संरक्षक थे।
कुमार ने कहा कि जब न्यायालय के अनिर्णय के कारण देश में असमंजस की स्थिति बनी, तब स्वामी हंसदेवाचार्य ने ही देशभर में धर्म-सभाएं करके श्रीराम जन्म भूमि के लिए व्यापक जन-जागरण किया। उन सभाओं के बाद आगे का मार्ग दिखाने के लिए प्रयागराज की धर्म संसद में उनका मार्ग दर्शन बहुत ही सम-सामयिक एवं महत्वपूर्ण था। धर्म संसद से ठीक पूर्व कुम्भ की पावन भूमि पर आयोजित सर्व समावेशी सांस्कृतिक कुम्भ की अध्यक्षता भी उन्हींने की थी और पूरे माघ मास में उनके सेवा कार्य अदभुत् थे।
उन्होंने कहा कि भारत में जन्मी सभी आध्यात्मिक परम्पराओं को एक सूत्र में पिरोने की दिशा में उनका मार्ग दर्शन बड़ा ही प्रेरक था। इन सभी परम्पराओं को एक साथ लेकर चलने के लिए स्वामी हंसदेवाचार्य जी सदैव प्रयासरत रहे।
दिल्ली के तालकटोरा में आयोजित धर्मादेश सभा इसी दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम था। जब जैन समाज को अल्पसंख्यक घोषित कराने के लिए एक वर्ग प्रयासरत था तब, कई जैनाचार्यों से मिलकर उन्होंने दिल्ली में एक सम्मलेन बुलाकर यह प्रस्ताव पारित कराया कि भारत में कोई अल्पसंख्यक नहीं है।
विहिप नेता ने कहा कि जगद्गुरू रामानंदाचार्य जैसे अति महत्वपूर्ण पद पर विराजमान होने पर भी वह हर कार्यकर्ता और संत के लिए सहज रूप से उपलब्ध रहते थे। उनकी यह सहजता एवं सरलता कभी भुलाई नहीं जा सकती। ऐसे महात्मा का असमय महाप्रयाण संत समाज ही नहीं बल्कि विश्व हिन्दू परिषद् सहित सम्पूर्ण हिन्दू समाज के लिए अपूरणीय क्षति है। हम सभी उनके मार्ग पर चलते हुए उनके अधूरे सपनों को साकार करेंगे।