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पुराने सिलिंग एक्ट के रिओपन किए गए प्रकरणों को ड्राप कर राहत दिलाने की मांग - Sabguru News
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पुराने सिलिंग एक्ट के रिओपन किए गए प्रकरणों को ड्राप कर राहत दिलाने की मांग

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पुराने सिलिंग एक्ट के रिओपन किए गए प्रकरणों को ड्राप कर राहत दिलाने की मांग

तखतगढ़ (पाली)। दो दिवसीय पाली दौरे पर आए मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को ज्ञापन सौंपकर सुमेरपुर सरपंच संघ के पूर्व अध्यक्ष सुमेर सिंह मनवार ने पुराने सिलिंग एक्ट में भाजपा सरकार द्वारा धारा 15/ (2) के तहत रीओपन किए गए प्रकरणों को ड्राप कर किसानों को राहत दिलाने की मांग की है।

ज्ञापन में बताया गया है कि सिलिंग एक्ट लागू होने पर जमीदारों, राजाओं ठाकुरों एवं बड़े-बड़े किसानों ने स्थिति को मापते हुए अपनी अतिरिक्त जमीने किसानों को बेच दी थी एवं सिलिंग एक्ट के प्रावधानों से अनभिज्ञ किसानों ने उक्त जमीनों को बाजार दर पर खरीद कर अपने नाम से रजिस्ट्ररी कर नामान्तरण करण भी करा ली।

परन्तु सिलिंग प्रावधानों के तहत उक्त भू मालिकों के खिलाफ मुकदमे दर्ज हुए, सुनवाई के बाद उक्त प्रकरण ड्राप कर दिए थे एवं नए सिलिंग एक्ट में भी प्रकरणों को सदभावी कृषक एवं क्रेता मानते हुए किसानों के हित में प्रकरण का फैसला हुआ था। जिस पर वे आज भी उक्त जमीनों पर खरीरदार किसानों का ही कबजा काश्त चला आ रहा है।

1977 से 1980 के दौरान भाजपा की सरकार बनी उस वक्त तत्कालीन मुख्यमंत्री के निर्देश पर राजस्व मंत्री के आदेश से राजस्व ग्रुप के द्वारा पुराने सिलिंग एक्ट धारा 15/ (2) के तहत उक्त ड्राप किए गए प्रकरणों को पुनः री ओपन करने के आदेश दिए गए। जिस पर सैकड़ों प्रकरण प्रदेश भर में पुनः अदालतों में दर्ज किए गए जो आज भी विभिन्न अदालतों में भिन्न-भिन्न स्तर पर विचाराधीन चल रहे हैं।

किसानों ने जमीनें तत्कालीन बाजार दर से पूरी कीमत चुका कर खरीद की थी। परन्तु वर्तमान में कई जगह उक्त जमीनों को सिवाय चक दर्ज कर ली गई। उक्त प्रकरणों में क्रेता किसानों की पक्षकार नहीं बनाया जाता हैं। पैरवी के लिए सम्बनिधत भू मालिकों के पास जाना पड़ता हैं एवं उनके वकालत नामे के आधार पर ही मुकदमा लडा जाता है। परन्तु वे लोग हस्ताक्षर करने में आनाकानी करते है। जिससे मुकदमों की पैरवी सही ढंग से नहीं हो पाती।

इन हालात के चलते सैकड़ों किसानों को परेशानी का सामना करना पड़ रहा हैं। उक्त जमीन बेचने वाले लोग इस वक्त स्वर्गवासी हो गए हैं एवं उतराधिकारी का कहना है कि हमारे पूर्वजों ने जमीने बेच दी थी। अब हम इसके लिए जिम्मेवार नहीं है। ऐसी सूरत में किसान कहां जाएं। यदि वे हस्ताक्षर करते भी है तो उसकी भारी कीमत चुकानी पड़ रही है। उनकी जी हुजूरी और गाडियों की व्यवस्था करके कोर्ट तक ले जाना होता है। ऐसी परिस्थिति मे किसान का श्रम समय व धन बर्बाद हो रहा है।