नई दिल्ली। वायु सेना ने कहा कि देश में ही बने हल्के लडाकू विमान तेजस सहित उन्नत मिग-29 और मिराज-2000 लड़ाकू विमान युद्ध की कसौटी पर पूरी तरह खरे उतरे हैं और उनमें दुश्मन को धूल चटाने का दमखम है।
वायु सेना के सूत्रों के अनुसार सेना और नौसेना के साथ मिलकर लगातार 15 दिनों तक पाकिस्तान और चीन की सीमाओं से लगते क्षेत्रों में दिन-रात युद्ध जैसी परिस्थितियों में किए गए इस अभ्यास को गगन शक्ति नाम दिया गया था।
आठ अप्रैल से 22 अप्रेल तक चले इस अभ्यास में वायु सेना ने अपने तमाम संसाधनों को झाेंक दिया और उसके विमानों ने देश भर में अलग अलग ठिकानों से 11 हजार से अधिक उडान भरी जिनमें से अकेले लड़ाकू विमानों ने 9 हजार बार आकाश का सीना चीरते हुए अपने दमखम का जौहर दिखाया।
सूत्रों ने बताया कि 8 तेजस विमानों ने अभ्यास में हिस्सा लिया और सभी ने उन्हें दिये गये मिशनों को सफलतापूर्वक अंजाम दिया। इन मिशनों में जमीनी हमला भी शामिल था जिसे तेजस विमानों ने बखूबी अंजाम दिया। तेजस ने दिन में छह बार उडान भरकर अपना दम खम दिखाया।
हालांकि 6 विमानों में पहले दिन ‘स्नैग’ आया लेकिन उन्हें कुछ ही घंटों में दुरूस्त कर दिया गया। ये स्नैग अलग अलग तरह के थे और सभी विमानों में देखने को मिलते हैं। उन्होंने कहा कि तेजस अच्छा विमान है और वायु सेना इनको बडी संख्या में बेडे में शामिल करना चाहती है लेकिन इसके लिए इनका उत्पादन बढाए जाने की जरूरत है।
वायु सेना ने लड़ाकू बेडे के मुख्य विमानों मिग-29 और मिराज-2000 को हाल में उन्नत बनाया है और इसके बाद पहली बार इन विमानों ने अभ्यास में अपना दम खम दिखाया। सूत्रों के अनुसार ये दोनों विमान भी इस कसौटी पर खरे उतरे। अभ्यास में आकाश मिसाइल सहित लगभग सभी हवाई हथियारों को परखा गया। इस दौरान अचूक हमला करने वाले हथियारों पर विशेष जोर दिया गया था।
सूत्रों ने कहा कि वायु सेना ने अपने मौजूदा संसाधनों के साथ पहली बार इतने बडे अभ्यास को अंजाम दिया है और प्रारंभिक आकलन में इसके बडे सुखद परिणाम सामने आए हैं। उन्होंने कहा कि वायु सेना अभ्यास के लिए पिछले नौ महीने से जुटी हुई थी और 300 विशेषज्ञों की टीम इसके विभिन्न पहलुओं का विस्तार से विश्लेषण करने में जुटी है जिससे कमियों और अभ्यास से लिए गए सबकों का पता चलेगा।
उन्होंने कहा कि अभ्यास की सबसे बडी सफलता यह रही कि सभी लड़ाकू संसाधनों जैसे विमान, मिसाइल प्रणाली और रडार प्रणाली की उपलब्धता में कोई दिक्कत नहीं आई। विभिन्न अभियानों के तहत विमानों की उपलब्धता 80 प्रतिशत और सतह से हवा में मार करने वाले हथियारों की उपलब्धता 97 फीसदी रही।
इस दौरान कॉम्बेट स्पोर्ट सिस्टम की उपलब्धता लगभग 100 फीसदी रही। ये सभी अभियान नेटवर्क आधारित प्रणाली के तहत किए गए जिसमें सारा दारोमदार संचार प्रणाली की विश्वसनीयता पर टिका था। अभ्यास में 1400 अधिकारियों और 14 हजार वायु सैनिकों ने हिस्सा लिया। वायु सेना ने 48 वर्ष की उम्र तक के अपने प्रवीण तथा पूरी तरह से फिट सभी पायलटों को अभ्यास में उतार दिया। इसके लिए उन्हें गहन परीक्षण भी दिया गया था।
सूत्रों ने कहा कि इस अभ्यास का मुख्य उद्देश्य अचानक उत्पन्न किसी भी आकस्मिक स्थिति के लिए तैयारियों को पुख्ता करना और कमियों का पता लगाना था जिससे अभियानों की योजनाओं और युद्ध क्षमता को अलग अलग कसौटियों पर परखना था।
अभ्यास के दौरान टैंकों और मिसाइलों सहित सभी तरह के सैन्य साजो सामान को 48 घंटे के अंदर एक मोर्चे से दूसरे मोर्चे पर ले जाने तथा बड़ी संख्या में जवानों को तैनात करने के अभियानों को सफलतापूर्वक पूरा किया गया।
लंबी उडान भरने के लिए लड़ाकू विमानों में हवा में ही ईंधन भरने का भी अभ्यास किया गया। रणक्षेत्र में दबे पांव हमला करने, बम हमले में क्षतिग्रस्त रनवे की जल्द से जल्द मरम्मत, रसायनिक, जैविक, परमाणु तथा रेडियोधर्मी तत्वों के हमले से उत्पन्न स्थिति से निपटने तथा युद्ध की स्थिति में आवश्यक सेवाओं की आपूर्ति बनाए रखने तथा हताहतों को अस्पतालों में पहुंचाने का भी अभ्यास किया गया।