नई दिल्ली। केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली ने सोमवार को कहा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की लोकप्रियता और उनके फिर से सत्ता में आने के भय से हताश लोग इकट्टा हुए हैं, जेटली ने कोलकाता में शनिवार को हुई एक रैली का हवाला देते हुए कहा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र माेदी के प्रति भरोसे का स्तर बहुत ऊंचा है।
यदि ऐसा नहीं होता तो विभिन्न विचारधारा वाले दलों को उनके विरुद्ध एक मंच पर आने की जरूरत ही नहीं होती। सिर्फ प्रधानमंत्री की लोकप्रियता और उनके फिर से सत्ता में आने के भय के कारण ही ये दल एक मंच पर इकट्ठा हुए हैं। केंद्रीय मंत्री ने एक ब्लाॅग में लिखा है कि कोलकाता की रैली मोदी के विरोध में थी, लेकिन यह भी महत्वपूर्ण है कि यह गैर-राहुल गांधी रैली भी थी।
उल्लेखनीय है कि आम चुनाव से पहले कोलकाता में पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी द्वारा आयोजित इस रैली में कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी मौजूद नहीं थे, लेकिन उनकी पार्टी की ओर से मल्लिकार्जुन खड़गे मंच पर उपस्थित थे।
उन्होंने रैली को निराशावादी बताते हुए कहा कि इस रैली में किसी भी नेता ने सकारात्मक भाषण नहीं दिया, जिसमें भविष्य के नेताओं का प्रस्ताव हो। उनका जोर सिर्फ निराशावाद पर था। चार प्रत्याशियों- ममता बनर्जी, राहुल गांधी, मायावती और के. चंद्रशेखर राव की अलग-अलग रणनीति साफ है।
जेटली ने एक-एक नेता को संभावित प्रधानमंत्री उम्मीदवार बताते हुए लिखा कि पश्चिम बंगाल की ‘दीदी’ चाहती हैं कि उन्हें कुछ राजनीतिक उत्साही समर्थन करें। अति उत्साही दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के अलावा कुछ अधिक लोग उनका समर्थन करने वाले नहीं हैं। उन्होंने कहा कि उत्तर प्रदेश की ‘बहनजी’ की स्पष्ट रणनीति है कि किसी भी तरह से इस पद पर पहुंचना है। उनका मानना है कि भारत में सिर्फ जाति का ही मामला है। उनका साफ तौर पर यह मानना है कि उनके लिए यही सिर्फ एक अवसर है।
उन्होंने लिखा कि तेलंगाना के मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव अभी गैर-कांग्रेस और गैर-भाजपा फ्रंट की अगुवाई कर रहे हैं। उन्होंने सवाल किया कि वर्तमान में क्या इस तरह के मंच के लिए कोई स्थान है। उपरोक्ता सभी नेताओं की व्यक्तिगत रणनीति एक है- ‘मोदी को हटाना है और उस सीट पर बैठना है।’ यदि कांग्रेस को वे चुनते हैं तो सिर्फ एक पीछे बैठने वाली सवारी के तौर पर चयन कर सकते हैं।
वित्त मंत्री ने कहा कि भाजपा और राजग 50 प्रतिशत क्षेत्र में सीधी लड़ाई में है। कई राज्यों में अभी भी त्रिपक्षीय मुकाबला होने की संभावना है। यदि मोदी के दूसरे कार्यकाल का मुद्दा है तो इससे भाजपा काे लाभ होगा। उन्होंने कहा कि एक आकांक्षी राष्ट्र में निराशावाद राजनीतिक अभियान है तो यह काम नहीं करेगा। यदि ‘अंकगणित’ ही सिर्फ उम्मीद है तो ‘मोदी कैमिस्ट्री’ इसमें आगे हो सकती है। ज्यादातर राजनेता जितना आम लोगों के बारे में सोचते हैं, लोग उससे अधिक तेज हैं। लोग पंच-वर्षीय सरकार चाहते हैं न:न कि छह महीने वाली सरकार।
उन्होंने कहा कि भारतीय विपक्ष के पास दोहरी रणनीति है, पहला- मोदी विरोधी निराशात्मक माहौल और दूसरा- कई राजनीतिक दल एक मंच पर आकर चुनावी गुणाभाग का लाभ उठाना चाहते हैं।