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महान गणितज्ञ वशिष्ठ नारायण सिंह का निधन - Sabguru News
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महान गणितज्ञ वशिष्ठ नारायण सिंह का निधन

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महान गणितज्ञ वशिष्ठ नारायण सिंह का निधन
The great mathematician Vashishtha Narayan Singh passed away
The great mathematician Vashishtha Narayan Singh passed away
The great mathematician Vashishtha Narayan Singh passed away

पटना। आइंस्टीन के सापेक्षता के सिद्धांत को चुनौती देने वाले महान गणितज्ञ वशिष्ठ नारायण सिंह का आज सुबह बिहार के पटना चिकित्सा महाविद्यालय एवं अस्पताल (पीएमसीएच), पटना में निधन हो गया वह 74 वर्ष के थे।

परिजनों ने यहां बताया कि सिजोफ्रेनिया से पीड़ित सिंह के मुंह से आज सुबह खून निकलने लगा। इसके बाद आनन-फानन में उन्हें तुरंत पीएमसीएच में भर्ती कराया गया, जहां चिकित्सकों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया।

सिंह पिछले कई वर्षों से बीमार चल रहे थे। उनके शरीर में सोडियम की मात्रा काफी कम हो जाने के बाद उन्हें पीएमसीएच में भर्ती कराया था। हालांकि, सोडियम चढ़ाये जाने के बाद वह बातचीत करने लगे थे और ठीक होने पर चिकित्सकों उन्हें छुट्टी दे दी थी। गुरुवार को परिजन उन्हें दुबारा अस्पताल ले गए, जहां चिकित्सकों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया।

बिहार के भोजपुर जिले में 02 अप्रैल 1942 को श्री लाल बहादुर सिंह (पिता) और श्रीमती लहासो देवी (माता) के घर जन्मे श्री वशिष्ठ नारायण सिंह ने प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा नेतरहाट आवासीय विद्यालय से प्राप्त की। अपने शैक्षणिक जीवनकाल से ही कुशाग्र रहे श्री सिंह पटना साइंस कॉलेज में पढ़ाई के दौरान गलत पढ़ाने पर गणित के अध्यापक को बीच में ही टोक दिया करते थे। घटना की सूचना मिलने पर जब कॉलेज के प्रधानाचार्य ने उन्हें अलग बुला कर परीक्षा ली, तो उन्होंने सारे अकादमिक रिकाॅर्ड तोड़ दिये।

पटना साइंस कॉलेज में पढ़ाई के दौरान कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय के प्रोफेसर जॉन एल. केली ने उनकी प्रतिभा को पहचाना और उन्हें अमरीका ले गये। कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय से उन्होंने 1969 में श्री केली के मार्गदर्शन में ही ‘साइकल वेक्टर स्पेस थ्योरी’ विषय में अपनी पीएचडी पूरी की। इसके बाद वह वॉशिंगटन विश्वविद्यालय में सहायक प्रोफेसर नियुक्त किए गए। उन्होंने अमेरिका के नेशनल एयरोनॉटिक्स एंड स्पेड एडमिनिस्ट्रेशन (नासा) में भी काम किया।

इसके बाद वह भारत लौट आए और वर्ष 1971 में भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) कानपुर में अध्यापन करने लगे। महज आठ महीने बाद ही उन्होंने इस संस्थान से त्यागपत्र दे दिया और टाटा इंस्टीच्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च (टीआईएफआर), बंबई में काम करने लगे। वर्ष 1974 में उन्हें तत्कालीन कलकत्ता (वर्तमान कोलकाता) के भारतीय सांख्यिकी संस्थान (आईएसआई) में स्थाई प्रोफेसर नियुक्त किया गया। वर्ष 2014 में उन्हें बिहार में मधेपुरा के भूपेंद्र नारायण मंडल विश्वविद्यालय में अतिथि प्रोफेसर नियुक्त किया गया।

सिंह का विवाह वर्ष 1973 में वंदना रानी सिंह के साथ हुआ। करीब एक साल बाद वर्ष 1974 में उन्हें पहला दौरा पड़ा। परिजनों ने उनका इलाज कराया गया लेकिन जब उनकी तबीयत ठीक नहीं हुई, तो उन्हें 1976 में रांची में भर्ती कराया गया। बीमारी के कारण उनके असामान्य व्यवहार से परेशान होकर उनकी पत्नी ने उनसे तलाक तक ले लिया।

निर्धन परिवार से होने और आर्थिक तंगी में जीवन व्यतीत करने वाले श्री सिंह वर्ष 1987 में अपने गांव लौट आए और यहीं रहने लगे। करीब दो साल बाद वर्ष 1989 में वह अचानक लापता हो गये। परिजनों ने उन्हें ढूंढने की काफी कोशिश की लेकिन वह नहीं मिले। करीब चार साल बाद वर्ष 1993 में वह सारण जिले के डोरीगंज में पाये गये थे।

राजधानी पटना के कुल्हड़िया कॉम्पलेक्स में अपने भाई के एक फ्लैट में गुमनामी का जीवन बिताते रहे महान गणितज्ञ के अंतिम समय तक के सबसे अच्छे मित्र किताब, कॉपी और पेंसिल ही रहे। सिंह ने अपने जीवन के 44 साल मानसिक बीमारी सिजेफ्रेनिया में गुजारा। उनके बारे में मशहूर किस्सा है कि नासा में अपोलो की लॉन्चिंग से पहले जब 31 कंप्यूटर कुछ समय के लिए बंद हो गए तो कंप्यूटर ठीक होने पर उनका और कंप्यूटर का कैलकुलेशन एक समान था।

सिंह के निधन के बाद एक अफसोसजनक और शर्मनाक वाकया यह हुआ कि उनके शव को घर ले जाने के लिए पीएमसीएच प्रशासन एंबुलेंस तक उपलब्ध नहीं करा पाया। निधन के बाद अस्पताल प्रबंधन ने केवल मृत्यु प्रमाणा-पत्र देकर पल्ला झाड़ लिया। इस दौरान जब वशिष्ठ नारायण सिंह के छोटे भाई से पूछा गया तो उन्होंने कहा , “हम अपने पैसे से अपने भाई का शव गांव ले जाएंगे। मेरे भाई के निधन की खबर के बाद से न तो कोई अधिकारी आया है और न ही कोई राजनेता।”