पुरी। ओडिशा के पुरी से नौ दिवसीय भगवान श्री जगन्नाथ रथ यात्रा शनिवार को कड़ी सुरक्षा के बीच शुरू हो गई। ढोल, मंजीरे और हरिबोल के जयकारों के बीच अलग-अलग रथ पर सवार भगवान जगन्नाथ, भगवान बलभद्र और देवी सुभद्रा के रथों ने चलना शुरू किया।
इस यात्रा में भाग लेने के लिए देशभर से लाखों श्रद्धालुओं ने यहां आना शुरू कर दिया है। भगवान श्री जगन्नाथ मंदिर से गुंडिचा मंदिर की ओर जाने वाली तीन किलोमीटर लंबे मार्ग पर आज सुबह हजारों श्रद्धालु इस विश्व प्रसिद्ध वार्षिक रथ यात्रा को देखने के लिए वहां एकत्र हुए।
भगवान जगन्नाथ उनके बड़े भाई बलभद्र और बहन देवी सुभद्रा को मंदिर के गर्भ गृह की ‘रत्नवेदी’ से बाहर निकालने से पहले आज सुबह वैदिक रीतियों के बाद सबसे पहले ‘गोपाल भाेग’ लगाया गया।
मंदिर के सेवादार शंख ध्वनि और हरिबोल के जयकारों तथा कड़ी सुरक्षा के बीच भगवान जगन्नाथ, भगवान बलभद्र और देवी सुभद्रा को अपने कंधों पर उठाकर आनंद बाजार से होते हुए मंदिर के मुख्य द्वार तक ले गए। मुख्य द्वार के पास तीन रथ खड़े थे।
भगवान जगन्नाथ का 16 पहियों वाला रथ ‘नंदीघोष’ लाल और पीले रंग से सजा हुआ था। भगवान बलभद्र का 14 पहियों वाला रथ ‘तलध्वज’ लाल और हरे रंग से सजा हुआ था। इसके अलावा देवी सुभद्रा का 12 पहियों वाला रथ ‘देवदलान’ लाल और काले रंग से सजा हुआ था।
पहंडी बिजे रीति के अनुसार भगवान बलभद्र को सबसे पहले रत्नवेदी से बाहर निकाला गया और उनके रथ ‘तलध्वज’ पर विराजमान किया गया है। इसके बाद देवी सुभद्रा को भी उनके रथ पर बैठाया गया। अंत में श्रद्धालु के बीच ‘कालिया’ के नाम से प्रसिद्ध भगवान श्री जगन्नाथ को उनके रथ ‘नंदीघोष’ पर विराजमान किया गया।
सबसे पहले भगवान बलभद्र जी के रथ ने प्रस्थान किया, इसके बाद बहन सुभद्रा जी का रथ चलना शुरू हुआ और अंत में भगवान श्री जगन्नाथ जी के रथ ने यात्रा शुरू की। कई पारंपरिक वाद्ययंत्रों की ध्वनि के बीच बड़े-बड़े रथों को सैकड़ों लोगों ने मोटे-मोटे रस्सों की मदद से खींचना शुरू किया। यह रथ यात्रा गुंडिचा मंदिर तक जाएगी। माना जाता है कि गुंडिचा मंदिर भगवान श्री जगन्नाथ की मौसी का घर है।
यह वही मंदिर है, जहां भगवान विश्वकर्मा ने तीनों देव प्रतिमाओं का निर्माण किया था। मान्यता है कि पुरी में भगवान जगन्नाथ शहर में घूमने के लिए निकलते हैं।
संस्कृत में जगन्नाथ का अर्थ है जग यानी दुनिया और नाथ का अर्थ है भगवान। भगवान जगन्नाथ श्रीकृष्ण भगवान विष्णु का अवतार माने जाते हैं, जो 16 कलाओं से परिपूर्ण हैं। पुराणों में जगन्नाथ धाम की काफी महिमा है, इसे धरती का बैकुंठ भी कहा गया है। यह हिन्दू धर्म के पवित्र चार धाम बद्रीनाथ, द्वारिका, रामेश्वरम और जगन्नाथ पुरी में से एक है।