जयपुर। राजस्थान में कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी के प्रभुत्व के कारण तीसरा मोर्चा खड़ा करने के प्रयास आज तक सफल नहीं हो पाए हैं वहीं कई राजनीतिक दल उभर नहीं पा रहे हैं।
हालांकि इस बार नागौर जिले के खींवसर से निर्दलीय हनुमान बेनीवाल ने राष्ट्रीय जनता पार्टी के नेता किरोड़ी लाल मीणा के साथ मिलकर राज्य में तीसरे मोर्चा खड़ा करने के काफी प्रयास किए लेकिन मीणा के राजपा छोड़कर भाजपा में आ जाने से तीसरे मोर्चे को लेकर किए जा रहे प्रयास कमजोर पड़ गए। हालांकि चुनाव के मद्देनजर बेनीवाल के साथ भाजपा छोड़कर भारत वाहिनी पार्टी बनाने वाले घनश्याम तिवाड़ी जरुर साथ में खड़े हैं लेकिन अन्य दलों का साथ नहीं मिल पाने से फिलहाल तीसरा मोर्चा बनाने का सपना अधूरा रह गया।
बेनीवाल ने अपनी पार्टी रालोपा के 58 उम्मीदवार खड़े किए हैं और उनका कहना हैं कि भले फिलहाल तीसरा मोर्चा नहीं बन पाया हैं लेकिन एक बार भाजपा और एक बार कांग्रेस के शासन से लोग त्रस्त हैं और इस बार लोगों का तीसरी ताकत को समर्थन मिलेगा।
विधानसभा के पहले चुनाव वर्ष 1952 से लेकर 1972 तक कांग्रेस का शासन रहा और आपातकाल के बाद हुए वर्ष 1977 में राज्य में हुए विधानसभा चुनाव में भैरों सिंह शेखावत के नेत़ृत्व में भारी बहुमत के साथ पहली बार जनता पार्टी की गैर कांग्रेसी सरकार बनी। हालांकि इससे पहले वर्ष 1967 में स्वतंत्र पार्टी के विधायक महारावल लक्ष्मण सिंह ने अन्य दलों एवं निर्दलीयों को साथ लेकर गैर कांग्रेसी सरकार बनाने का प्रयास किया था लेकिन वह असफल रहे।
उस दौरान कांग्रेस ने पूर्ण बहुमत हासिल नहीं किया था और 184 सीटों की विधानसभा में वह 89 सीटे ही जीत पाई और स्वतंत्र पार्टी 49 सीटें जीतकर दूसरी सबसे बड़ी पार्टी बनी थी और डूंगरपुर से उसके विधायक महारावल लक्ष्मण सिंह ने संयुक्त सोशियलिस्ट पार्टी, मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी एवं निर्दलीयों सहित संयुक्त विधायक दल बनाया लेकिन कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी होने के कारण राज्यपाल ने संयुक्त दल को मौका नहीं दिया। बाद में राष्ट्रपति शासन लग गया और उसके हटने के बाद जोड़तोड़ करके कांग्रेस ने सरकार बना ली।
वर्ष 1980 में अस्तित्व में आई भाजपा ने पहली बार वर्ष 1990 में भैरों सिंह शेखावत के नेतृत्व में 85 सीटें जीतकर सबसे बड़े दल के रुप में उभरी लेकिन पूर्ण बहुमत से दूर रहने के कारण उसने चुनाव में 55 सीटें जीतकर दूसरी सबसे बड़ी पार्टी रही जनता दल के साथ गठबंधन करके पहली बार सरकार बनाई और शेखावत दूसरी बार मुख्यमंत्री बने।
हालांकि केन्द्र में भाजपा के वी पी सिंह सरकार से समर्थन वापस ले लेने पर राजस्थान में भी जनता दल ने भाजपा से गठबंधन तोड़ लिया। हालांकि वर्ष 1993 में हुए विधानसभा चुनाव में जनता दल केवल छह सीट ही जीत पाई और उस समय 96 सीटे जीतने वाली भाजपा निर्दलीयों के सहारे लगातार दूसरी बार सरकार बनाने में कामयाब रही।
इसके बाद वर्ष 1998 में भारी बहुमत 150 सदस्यों के साथ कांग्रेस,वर्ष 2003 में 124 सदस्यों के साथ भाजपा, वर्ष 2008 में 96 सीटे जीतने के बाद जोड़तोड़ करके कांग्रेस और इसके बाद पिछले चुनाव में फिर भाजपा ने भारी बहुमत 163 सीटों के साथ सरकार बनाई।
विधानसभा के इतिहास में अब तक कांग्रेस ने नौ बार जबकि भाजपा ने चार एवं एक बार जनता पार्टी ने सरकार बनाई हैं। इस दौरान किसी तीसरी ताकत को सत्ता तक पहुंचने का मौका नहीं मिला।
दोनों प्रमुख दलों के दबदबे के कारण प्रदेश में अन्य दल उभर नहीं पा रहे हैं और राज्य में 1990 में 55 सीटें जीतने वाला जनता दल इसके अगले चुनाव वर्ष 1993 में केवल छह सीट एवं 1998 में 69 उम्मीदवारों में से केवल तीन प्रत्याशी ही जनता दल के चुनाव जीतकर विधानसभा पहुंचे। इसके बाद वर्ष 2008 में जनता यू का एक प्रत्याशी चुनाव जीत पाया।
इसी तरह बहुजन समाज पार्टी वर्ष 1998 में पहली बार दो सीटें जीती। इसके बाद उसने वर्ष 2003 में दो तथा वर्ष 2008 के चुनाव में छह सीटे जीती लेकिन उसके उम्मीदवार कांग्रेस में शामिल हो गए। इसके बाद पिछले चुनाव में बसपा के केवल तीन उम्मीदवार चुनाव जीत पाए हैं। बसपा के इन छह सदस्यों ने कांग्रेस में जाकर अशोक गहलोत की सरकार बनाने में मदद की थी। उस समय कांग्रेस ने 96 सीटें जीती थी और बहुमत साबित करने के लिए पांच सदस्य कम पड़ रहे थे।
इसी तरह दूसरी विधानसभा 1957 से वर्ष 2008 तक भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी एवं भारतीय मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के कभी एक या इससे अधिक सदस्य जीतकर अपना राजनीतिक प्रभुत्व रखा लेकिन वर्ष 2008 में तीन सीट जीतने वाली माकपा पिछले चुनाव में एक भी सीट नहीं जीत पाई। इसी तरह वर्ष 2013 में चार सीटे जीतने वाली राष्ट्रीय जनता पार्टी के नेता एवं उसके विधायक किरोड़ी लाल मीणा पार्टी छोड़कर तीन विधायकों के साथ भाजपा में आ गए।
इसके बाद शेष बचे राजपा विधायक नवीन पिलानिया भी पार्टी छोड़कर बसपा में शामिल हो गए और आमरे से चुनाव लड़ रहे हैं। इसके अलावा वर्ष 2008 एक सीट जीतने वाली लोकतांत्रिक समाजवादी पार्टी पिछले चुनाव में कुछ नहीं कर पाई। इसी तरह हर चुनाव में कई नई पार्टियां चुनाव में जुड़ती हैं लेकिन चुनाव जीतने में सफल कम ही होती हैं।
इस बार चुनाव में आम आदमी पार्टी, रालोपा, भारत वाहिनी सहित कई नई पार्टिया चुनाव लड़ रही हैं लेकिन इनमें ज्यादा सीटे जीतकर उभरने की आसार नहीं हैं और अधिकत्तर मुकाबला दोनों प्रमुख दल कांग्रेस एवं भाजपा में ही होने की संभावना हैं।