मध्य प्रदेश। आज मध्य प्रदेश में आखिरकार मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने अपने पांच मंत्रियों को शपथ दिला दी है। 1 महीने से राज्य में अकेले ही मुख्यमंत्री की कुर्सी पर विराजमान चौहान पर कई आरोप भी लग रहे थे। राज्य में कोरोना से हालात दिनोंदिन बेकाबू होते जा रहे थे ऐसे में मुख्यमंत्री के द्वारा मंत्रिमंडल का गठन न करना विपक्ष के निशाने पर था। आज आनन-फानन में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने 5 मंत्रियों शपथ तो दिला दी है लेकिन भाजपा के ही बड़े दिग्गज नेता इस बार साइड में कर दिए गए हैं।
शपथ लेने वाले मंत्रियों में से दो मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया के समर्थक हैं। हालांकि अभी जा यह कैबिनेट बहुत ही छोटा है लेकिन अभी से ही भाजपा के दिग्गज नेताओं को दरकिनार करना मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को महंगा भी पड़ सकता है। इस बार मुख्यमंत्री चौहान का फ्री होकर राज्य में सरकार चलाना आसान नहीं होगा। इसका सबसे बड़ा कारण यह है कि एक गुट ज्योतिरादित्य सिंधिया का दूसरा भाजपा के वरिष्ठ नेताओं की नाराजगी भी सरकार चलाने में रोड़ा अटका सकती है।
ये भाजपा के वरिष्ठ नेता जो कैबिनेट में जगह नहीं पा सके हैं
बीजेपी के वरिष्ठ विधायक नरोत्तम मिश्रा, मीना सिंह और कमल पटेल मंत्री बनाए गए हैं और साथ ही ज्योतिरादित्य सिंधिया के करीबी तुलसी सिलावट और गोविंद सिंह राजपूत ने भी मंत्री पद की शपथ ली। वहीं छोटा मंत्रिमंडल होने की वजह से कई बीजेपी के वरिष्ठ नेता पहले चरण की कैबिनेट में जगह नहीं पा सके। मध्य प्रदेश में शिवराज सिंह चौहान की पिछली सरकार में मंत्री रहे दिग्गज नेताओं को इस बार कैबिनेट के पहले विस्तार में शामिल नहीं किया है।
इनमें विधायक गोपाल भार्गव, भूपेंद्र सिंह, गौरीशंकर बिसेन, विजय शाह, यशोधरा राजे सिंधिया, राजेंद्र शुक्ला और रामपाल सिंह जैसे नेताओं के नाम शामिल हैं। ऐसे ही कांग्रेस से बीजेपी में आए बिसाहूलाल सिंह, महेंद्र सिंह सिसोदिया और प्रभुराम चौधरी को भी फिलहाल प्रतीक्षा में डाल दिया है। गोपाल भार्गव तो कमलनाथ सरकार के दौरान प्रतिपक्ष के नेता थे।मध्य प्रदेश में उमा भारती की सरकार से लेकर बाबू लाल गौर और शिवराज सिंह चौहान की सभी सरकारों में गोपाल भार्गव मंत्रिमंडल में शामिल रहे थे।
राज्य में मंत्रिमंडल का गठन करने में शिवराज सिंह को लगा एक माह
मुख्यमंत्री पद की शपथ लिए शिवराज सिंह चौहान चौहान को पूरा एक महीना हो गया था लेकिन वह मंत्रिमंडल का विस्तार नहीं कर पा रहे थे, कई विभागों और कई विधायकों को लेकर मंत्रिपरिषद देने में भी एक राय नहीं बन पा रही थी। कमलनाथ के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार से सत्ता छीनने के लिए बीजेपी ने जिस तरह एड़ी-चोटी का जोर लगाया था, अलग-अलग गुटों को साथ लेकर चलना उसकी मजबूरी थी। सरकार बन जाने के बाद ये सभी गुट सत्ता में अपने प्रतिनिधित्व को लेकर उतावले हो रहे थे, लेकिन सीएम शिवराज चाहकर भी सभी गुटों को संतुष्ट नहीं कर सकते।
ऐसे में पार्टी आलाकमान ने बीच का रास्ता निकाला, जिसमें सभी गुटों को सांकेतिक प्रतिनिधित्व देकर उन्हें साधने की कोशिश की गई है। विपक्षी पार्टियां ही नहीं, बीजेपी के अपने विधायक भी मंत्रिमंडल के गठन में देरी से खुश नहीं थे। विपक्षी पार्टियां आरोप लगा रही थीं कि सत्ता में आने की जल्दी में भाजपा ने कमलनाथ की सरकार तो गिरा दी, लेकिन अब कैबिनेट का गठन तक नहीं कर पा रही। कोरोना संकट के दौर में प्रदेश में स्वास्थ्य और गृह जैसे महत्वपूर्ण विभागों का मंत्री नहीं होने को लेकर आपत्ति जता रहे थे।
शंभू नाथ गौतम, वरिष्ठ पत्रकार