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जिन्हें इस देश में रहने में कष्ट होता है, वे देश छोड़कर जा सकते हैं : प्रतापचंद्र सारंगी - Sabguru News
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जिन्हें इस देश में रहने में कष्ट होता है, वे देश छोड़कर जा सकते हैं : प्रतापचंद्र सारंगी

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जिन्हें इस देश में रहने में कष्ट होता है, वे देश छोड़कर जा सकते हैं : प्रतापचंद्र सारंगी

आबूरोड। केंद्रीय राज्यमंत्री प्रतापचंद्र सारंगी ने आज कहा है कि जिनको इस देश में रहने में कष्ट होता है, वे देश छोड़कर जा सकते हैं, लेकिन उन्हें देश को विभाजित करने का हक नहीं है।

राजस्थान में सिरोही जिले के आबू रोड में ब्रह्माकुमारीज संस्थान के अध्यात्म द्वारा एकता, शांति और समृद्धि विषय पर आयोजित वैश्विक शिखर सम्मेलन में भाग लेने आए सारंगी ने आज पत्रकारों के सवालों के जवाब में कहा कि जिनको वंदे मातरम् नहीं कहना है, उन्हें दूसरा रास्ता खोज लेना चाहिए। वंदे मातरम् का मतलब है भारत माता की जय। हिंदुस्तान का विभाजन साम्प्रदायिक आधार पर हुआ है। हमने कहीं नहीं बोला कि मुसलमान हमारे साथ नहीं रह सकते, लेकिन हम और विभाजन नहीं होने देंगे। हालांकि उन्होंने इसे अपना व्यक्तिगत मत बताया।

भारत और पाकिस्तान सरकारों के बीच तनाव कम करने के लिए भारत पाकिस्तान में बातचीत की संभावना को नकारते हुए उन्होंने कहा कि पाकिस्तान से बातचीत कैसे होगी। एक हाथ में बंदूक हो तो बातचीत कैसे होगी। पाकिस्तान के विषय में सबकुछ भगवान की कृपा से हो रहा है। जिस अनुच्छेद 370 को हटाना असंभव लगता था, वह आसानी से हट गया। लोग सोचा करते थे कि रक्त की नदियां बहेंगी, पर ऐसा कुछ नहीं हुआ।

सारंगी ने कहा कि मानवाधिकारवादियों को देश की आम जनता की तकलीफ दिखाई नहीं देती, लेकिन एक पुलिसवाले की गोली से एक आतंकवादी मर जाता है तो आकाश-पाताल एक कर देते हैं। लाखों कश्मीरी पंडितों, बहू-बेटियों के साथ अत्याचार हुआ तो कोई आगे नहीं आया। जवानों के मरने से उनकी बहू-बेटी विधवा होते हैं तो उनका दर्द भी मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को नहीं दिखता। इन्होंने सिर्फ आतंकियों के मानवाधिकार के लिए ठेका ले रखा है। उन्होंने कहा कि देश की सुरक्षा के लिए अवांछनीय होते हुए भी थोड़ा बल प्रयोग करना चाहिए।

इससे पहले केंद्रीय राज्यमंत्री सारंगी ने शिखर सम्मेलन के सत्र को संबोधित करते हुए वैज्ञानिकों को सलाह दी कि वे मंगल में जीवन पर अनुसंधान करने की बजाय जीवन में मंगल है कि नहीं इस पर अनुसंधान करें। दुनिया में आज सबसे ज्यादा सदभावना, शांति और प्रेम की जरूरत है जो आध्यात्म से ही आएगी। यूरोप में विज्ञान और आध्यात्म में प्रतिस्पर्धा है। हमारे देश में विज्ञान और अध्यात्म साथ चलता है, एक-दूसरे के पूरक हैं। विज्ञान बहुत गहरा है, इससे हम भौतिक तरक्की कर रहे हैं पर खुद को जानना अध्यात्म है। हम दुनिया को तो जान रहें हैं पर खुद को नहीं जान रहे हैं।