देहरादून। उत्तराखंड में भारतीय जनता पार्टी के मौजूदा शासनकाल में तीन बार मुख्यमंत्री बनाए जाने से देश-विदेश में पार्टी के बड़े नेताओं की कार्यशैली पर भी उंगली उठने लगी हैं। राज्य में वर्ष 2022 में विधानसभा चुनाव होंगे।
वर्ष 2000 में गठित इस राज्य में अब तक कुल चार आम विधानसभा चुनाव हुए हैं। आम तौर पर प्रत्येक राज्य में एक विधानसभा निर्वाचन के बाद एक मुख्यमंत्री पूरे पांच वर्ष अपना कार्य करता है, लेकिन उत्तराखंड में अभी तक एक ही मुख्यमंत्री ऐसा रहा, जिसने अपने कार्यकाल पूरा किया हो। वह मुख्यमंत्री विकास पुरुष के रूप में विख्यात कांग्रेस के वरिष्ठ नेता नारायण दत्त तिवारी रहे।
इसके विपरीत कांग्रेस की वर्ष 2012 में बनी सरकार में क्रमशः विजय बहुगुणा और हरीश रावत ने यह पद संभाला। भाजपा इनसे दो कदम आगे रही। उसके शासनकाल में हर बार तीन-तीन मुख्यमंत्री बनाए गए।
इस कालखण्ड में रविवार को एक बार फिर भाजपा के प्रचंड बहुमत वाली राज्य सरकार में पुष्कर सिंह धामी ने 11वें मुख्यमंत्री के तौर पर पद संभाला है। वह मात्र 45 वर्ष के हैं, साथ ही राज्य में अब तक बने सभी मुख्यमंत्रियों में सबसे कम आयु के हैं। बस यही बात भाजपा के राज्य स्तरीय बड़े और कद्दावर नेताओं को रास नहीं आ रही है।
धामी का नाम विधान मंडल दल के नेता के रूप में जब शनिवार को तय हुआ तब किसी भी स्थानीय बड़े नेता ने खुलकर उनके नाम पर आपत्ति नहीं की। इसके बावजूद दिन निकलते-निकलते निवर्तमान मन्त्रिमण्डल के सदस्य बिशन सिंह चुफाल ने धामी के नाम पर अपनी खिन्नता पार्टी अध्यक्ष से व्यक्त कर दी।
विश्वस्त सूत्रों के अनुसार चुफाल ने प्रदेश अध्यक्ष मदन कौशिक को फोन कर धामी के नाम पर अपनी नाराजगी व्यक्त की। उनके अलावा, कभी कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल होने वाले निवर्तमान कैबिनेट मंत्री हरक सिंह और सतपाल महाराज के भी नाखुश होने की अटकलें चलती रहीं।
इसके बाद, धामी द्वारा निवर्तमान मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत, पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत और भुवन चंद खण्डूरी के साथ सतपाल महाराज के घर जाकर उनसे आशीर्वाद लेने के साथ सभी अटकलों पर विराम लग गया। शाम को शपथ ग्रहण कार्यक्रम में मंत्रिमण्डल में सभी कथित असंतुष्टों के शपथ लेने के साथ सुबह से चल रही सभी आशंकाएं निर्मूल साबित हो गईं।