नई दिल्ली। भारत रत्न भूतपूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी भूतपूर्व प्रधानमंत्री नहीं थे बल्कि वे अभूतपूर्व प्रधानमंत्री थे। ये बात राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के राष्ट्रीय कार्यकारिणी सदस्य एवं प्रचारक इंद्रेश कुमार ने एनडीएमसी कंवेन्शन सेंटर में अंतरराष्ट्रीय बौद्ध समुदाय की ओर से आयोजित सार्वजनिक श्रद्धांजलि सभा के दौरान कही।
उन्होंने कहा कि वैसे भारत में ढाई हजार साल पहले ओम नमो बुद्धाय मंत्र की शुरुआत हुई। इस धर्म का मुख्य उद्देश्य था कि आत्मनो दीपो भव आज यहां पर म्यांमार, नेपाल, श्रीलंका, भूटान देशों से बौद्ध प्रतिनिधि आए हैं और भारत के हिमालय क्षेत्र के राज्यों हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, सिक्किम, अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर और अन्य राज्यों के प्रतिनिधि आए हुए हैं।
इसका प्रमुख कारण अटलजी ने कभी किसी धर्म का विरोध नहीं किया उनका ध्येय था की स्वयं को सुगंधित करो और स्वयं को प्रकाशित करो। आत्मनो दीपो भव के भाव से आगे बढ़ो जब तक अटल जी जीये तब तक सभी धर्मों के लोगों ने उनको पसंद किया और मरने के बाद दुनिया के सभी देशों और लोगों ने उनको याद किया। उन्होंने सही मायने में लोगों के दिलों पर राज किया।
बौद्ध धर्म के अंदर करुणा और मैत्री का बहुत महत्व है उन्होंने इसमें सफलता भी प्राप्त की।वह करुणा और मैत्रिक की भावना से बोलते थे। उन्होने कभी किसी धर्म की आलोचना नहीं की वे सभी धर्मों के लोगों से मिलते थे।
इंद्रेश ने अपने बारे में बताते हुए कहा कि मैंने इंजीनियरिंग करने के बाद आईएएस का फॉर्म भरा और परीक्षा देने के बाद एक कंपनी ने मुझे काम पर बुला लिया। घर में भी पिताजी पहले से ही उद्योगपति थे। उन्होंने मुझ पर काम करने का दबाव बनाया, लेकिन मैने संघ का प्रचारक जीवन चुना। बीते 48 साल से प्रचारक जीवन व्यतीत करने के बाद आज भी आपके सामने प्रचारक के रुप में खड़ा हूं।
मैं जब जम्मू और कश्मीर, हिमाचल प्रदेश और दिल्ली का प्रभारी था तब 1971 में मै अटल बिहारी वाजपेयी के संपर्क में आया जब वह नई दिल्ली से चुनाव लड़ रहे थे। मेरा बुद्धिस्टो से संपर्क था यह संपर्क नेपाल से शुरू हुए तिब्बती आंदोलन से आया। यह आंदोलन चाय की प्याली में आए तूफान जैसे ही था। जब करमापा जी भारत आए, उनको शरण देने की बात पर अटल जी यह जानते हुए भी कि उन्हें शरण देने का मतलब चीन से विरोध लेना है। अटल जी ने करमापा जी का सहयोग किया। उन्होंने कहा कि वी कांट कन्फ्यूशड वीद आवर मदरलैंड।
दुनिया में लगभग 600 धर्म है, उनमें 5 या 7 धर्म प्रमुख है। क्रिश्चियन धर्म में लगभग 200 सब रिलिजन है, इस्लाम में 72 सब रिलिजन है और किसी भी धर्म में इतने सब रिलिजन नहीं है। दुनिया के सब धर्मों के सबसे ज्यादा धार्मिक स्थल भारत में है इसलिए भारत को ही सभी धर्मों के तीर्थों का जन्मस्थली कहा जाता है।
इसीलिए अगर किसी का भारत में दम घुटता है तो वह इंसान नहीं अपितु शैतान है। भारत के भूतपूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने 50 साल तक की राजनीति सभी धर्मो के साथ की।
इंद्रेश कुमार ने बताया कि सिंगापुर में world With Peace, World Without Peace, World With Conflict और World Without Conflict विषयों पर कान्फ्रेंस हुई वहां से मैने दुनिया को करुणा, शांति और मैत्री का संदेश दिया। अटलजी को श्रद्धांजलि देते हुए उन्होंने कहा कि जिन्होंने 50 साल का राजनीतिक जीवन जीकर दुनिया को संदेश दिया हो उसको हम श्रद्धांजलि देकर भी कुछ न कुछ सीखेंगे। आप जिस देश से आते हैं उसी देश के नाम से जाने जाते है चाहे आप बौद्ध धर्म को मानने क्यों ना हो।
श्रद्धांजलि कार्यक्रम में अंतरराष्ट्रीय बौद्ध समुदाय से भंते धर्मकीर्ति नागपुर से, लामा करमा हिमालयन बुद्धिस्ट, लामा ज्योतपा, निर्वासित तिब्बत सरकार की पूर्व गृहमंत्री गैरी डोलमा, महाबोधि सोसायटी से सुमितानंद भैरव भंते आनंद मिश्र, यूपी हाथरस से भंते धम्म रतन, दावो फुन्की, धम्म पाला म्यामार,परम पूज्य दलाई लामा के प्रतिनिधि तेन्पा शिरिंग, संत मोहन प्रिय, आचार्य प्रणामी समुदाय, भारतीय जनता पार्टी से आनंद साहू, भारत तिब्बत सहयोग मंच के राष्ट्रीय महामंत्री पंकज गोयल, एडवोकेट रवीन्द्र गुप्ता, अनिल मोंगा, डॉ. शशि चौहान, सरिता तोमर, विवेक मिश्रा, धर्म संस्कृति संगम से राजेश लाम्बा, महीपाल, सुखबीर बौद्ध, नेपाली संस्कृति परिषद से अशोक चौरसिया ने श्रद्धांजलि अर्पित की।
कार्यक्रम का संचालन हिमालय परिवार के राष्ट्रीय महामंत्री भूपेंद्र कंसल ने किया। कार्यक्रम के अंत में केरल बाढ़ पीड़ितों के लिए धन का भी संग्रह किया गया। भारत तिब्बत सहयोग मंच के अशोक जैन, वीरेंद्र अग्रवाल, अनिल खेड़ा, जयकमल अग्रवाल, नीरज सिसोदिया, हिमालय परिवार से मीरा, जयकिशन गुप्ता, सोमेश लिलोठिया एवं हजारों की संख्या में बौद्धिस्ट और अन्य गणमान्यजनों ने श्रद्धांजलि अर्पित की।