परीक्षित मिश्रा
सबगुरु न्यूज-सिरोही। कांग्रेस के बागी संयम लोढ़ा ने करीब दस हजार समर्थकों के साथ निर्दलीय के रूप में अपना नामांकन पत्र दाखिल किया। इस भीड़ को देखकर लोढ़ा के आलोचक इस भीड़ की तुलना 1998 में ही इसी तरह कांग्रेस से बागी हुए राजेन्द्र गोपालिया की रैली से करते दिखे।
साथ में उन्होंने यह भी जोड़ा कि वैसे इतने लोग उस समय भी नहीं जुड़े थे, लेकिन उस समय वो एक बड़ा जमावड़ा था। साथ ही वर्तमान में एकत्रित लोगों को संयम लोढ़ा की संवेदना से जुड़ी भी बताया।
क्या हुआ था तब
साल 1998 : अशोक गहलोत कांग्रेस के प्रदेशाध्यक्ष हुआ करते थे। प्रदेश में परसराम मदेरणा और गहलोत गुट ठीक उसी तरह से आमने-सामने थे, जैसे वर्तमान अशोक गहलोत और सचिन पायलट। तब राजेन्द्र गोपालिया मदेरणा गुट के करीब माने जाते थे।
राजस्थान की राजनीति में कदम जमाने के लिए गहलोत ने तब उनके चुनाव प्रचार में लगे संमय लोढ़ा पर सिरोही का दांव खेला। तब राजेन्द्र गोपालिया कांग्रेस के टिकिट के प्रबल दावेदार थे। उस समय भी राजेन्द्र गोपालिया के घर भी कांग्रेस के लोगों की भीड़ वैसे ही जुटी थी, जैसे 15 को टिकिट की घोषणा के बाद लोढ़ा के यहां पर एकत्रित हुई थी।
तब राजेन्द्र गोपालिया, जो कि कांग्रेस के सिरोही के जिलाध्यक्ष थे, ने निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर अपना आवेदन कांग्रेस के बागी के रूप में भरा था। उस समय इसी तरह से समर्थकों की जबरदस्त भीड़ के साथ पर्चा दाखिल किया था। बीस साल बाद इतिहास उसी तरह दोहरा रहा है, लेकिन इस बार अशोक गहलोत पर लोढ़ा का टिकिट काटने का आरोप लग रहा है।
यूं उठी बात
सिरोही कलक्टरी में हर कहीं संयम लोढ़ा के साथ उमड़ी समर्थकों की भीड़ की चर्चा थी। इसे देखकर लोढ़ा के आलोचकों का यह कहना था कि तब राजेन्द्र गोपालिया ने समर्थकों की जबरदस्त भीड़ के साथ नामांकन किया था, लेकिन उन्हीं लोगों ने उनसे धोखा कर दिया।
वैसे बीस साल में बहुत पानी बह चुका है। तब और अब की परिस्थितियों और मतदाताओं की पसंद नापसंद में भी अंतर आया गया है। वर्तमान में संयम लोढ़ा के साथ आए लोगों की भीड़ मतों में कितनी परिवर्तित होती है, यह वक्त बताएगा, लेकिन, पूर्व विधायक संयम लोढ़ा द्वारा इतने कम समय में इतने लोगों के साथ नामांकन दाखिल करना शहर में ही नहीं जिले में चर्चा का विषय बना हुआ है।