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Toilets and sulabh complexes should also be done for dogs-कुत्तों के लिए भी होने चाहिएं शौचालय और सुलभ कॉम्प्लेक्स - Sabguru News
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कुत्तों के लिए भी होने चाहिएं शौचालय और सुलभ कॉम्प्लेक्स

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कुत्तों के लिए भी होने चाहिएं शौचालय और सुलभ कॉम्प्लेक्स

सबगुरु न्यूज। स्वच्छ भारत मिशन में इन्सानों के लिए तो खुले में शौच जाने पर करीब-करीब पाबन्दी लग ही गई है लेकिन अभी भी सम्पूर्ण स्वच्छता का हमारा स्वप्न अधूरा ही है। गांवों से लेकर कस्बों, शहरों और महानगरों तक में घरों और प्रतिष्ठानों में सुरक्षा अथवा शौक की दृष्टि से कुत्ते पालने का दौर आजकल परवान पर चढ़ा हुआ है।

शहरों और महानगरों में तो शायद ही कोई सरकारी और गैर सरकारी कॉलोनी बची होगी जहाँ आवासों में पूरी श्रद्धा और आदर-सम्मान के साथ कुत्ते पालने का दिग्दर्शन न हो पाए अन्यथा सभी जगह कुत्ते पालने के प्रति खास आस्था और अनिवार्य आवश्यकता सहजतापूर्वक देखी जा सकती है।

आम इंसान के लिए भले ही कुत्तों की जरूरत न पड़े लेकिन अभिजात्य वर्ग में गिने जाने वाले नायकों, अभिनायकों और धनाढ्यों के घरों के लिए तो कुत्ते वर्तमान युग की सबसे बड़ी और प्राथमिक जरूरत सिद्ध हो चुकी है।

महाभारतकाल में धर्मराज युधिष्ठिर के साथ कुत्ते के भी स्वर्गारोहण से अभिभूत श्वानों की पीढ़ियाँ अपने उस श्वान पूर्वज का बखान करते नहीं थकती। आज भी तमाम प्रजातियों के श्वानों को सदियों पुराने अपने उस पूर्वज पर गर्व बरकरार है। चाहे ये कुत्ते देशी हों या फिर विदेशी, या कि मिक्स प्रजाति के वर्णसंकर।

महाभारतकाल में तो भारत अखण्ड ही था, इसलिए गौरव पूरी दुनिया के कुत्तों को रहा है और तब तक रहेगा जब तक सूरज-चाँद रहेंगे। जितना कुत्तों में गौरव भाव सदैव जागृत रहता है उससे अधिक प्रतिष्ठा कुत्तों के मालिकों की हो जाती है।

कुत्तों को अपने साथ घरों में रखना, पालना, उनकी सेवा करना तथा परिवार के सदस्य की तरह सम्पूर्ण सुख-सुविघाओं के साथ रखना आजकल स्टेटस सिम्बोल हो चला है। हम अपने बड़े-बुजुर्गों और माता-पिता की सेवा करने में भले ही हिचकते और उदासीन बने रहें मगर कुत्तों के मामले में हम नैष्ठिक सेवा के समर्पित आदर्शों पर सौ फीसदी खरे उतरते हैं।

यह कहा जाए कि कुत्तों को घरों में पालना अत्याधुनिक फैशन हो चला है, तब भी कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। जो लोग छोटे-मोटे कमरों से लेकर आलीशान बंगलों तक में वास्तु की बातें करते हैं, वे भी अपने घरों और प्रासादों में अपने साथ कुत्तों को रखकर धन्य मान रहे हैं।

कॉलोनियों में उन लोगों को सर्वोच्च प्रतिष्ठित, लोकप्रिय और अमीर माना जाने लगा है जिनके पास कुत्ते हैं। जिसके पास जितनी अधिक कीमत का कुत्ता होता है उसे उतना अधिक वैभवशाली और आधुनिकतम माना जाता है।

कुत्ते के कारण से इंसानी प्रतिष्ठा का ग्राफ अचानक उछल कर ऊपर चढ़ते चले जाने जैसी मनोवृत्तियां ही वह सबसे बड़ा कारण है कि अभिजात्यों के साथ-साथ आजकल मध्यम और निम्न वर्गीय लोग भी अपने घरों में कुत्तों को पालने में दिलचस्पी दिखा रहे हैं।

परिवेशीय साफ-सफाई और स्वच्छता के लक्ष्य को लेकर संचालित स्वच्छ भारत मिशन की आशातीत सफलता के बावजूद कुत्तों के कारण से हमारी स्वच्छता प्रभावित हो रही है, इस बारे में किसी ने नहीं सोचा। खैर, अब किसी भी प्रकार की प्लानिंग बने, उसमें कुत्तों के बारे में सबसे पहले सोचने और उनके अनुरूप व अनुकूल तमाम प्रकार की सुख-सुविधाओं की उपलब्धता सुनिश्चित करने की आवश्यकता है।

कुत्तों के बारे में उदासीन बने रहना या कुत्तों की जिन्दगी से जुड़ी जरूरतों के प्रति उपेक्षा का हमारा बर्ताव ठीक नहीं है। ऎसा करना पूरी दुनिया के कुत्तों का अपमान है।

हम अपने क्षेत्र में कितनी की स्वच्छता की बातें करते रहें, अलसुबह या प्रभातकालीन अरुणिम सूरज की अगवानी के समय जिस तरह से कुत्ता मालिक, पालक या साहबों-रईसों के नौकर अपने-अपने कुत्ता महाराजों और कुतिया महारानियों को लघु और दीर्घ शंका के लिए निकलकर इधर-उधर डोलते रहकर उन्हें प्रातःकालीन भ्रमण कराते हुए नज़र आते हैं, उसे देखकर तो यही लगता है कि जैसे चरवाहा कल्चर के अंश आज भी देश और दुनिया में देखने को मिल ही जाते हैं।

अपने श्वान महाशय और श्वानी महारानी को हघवाने निकले लोग जिस तरह विदेशियों के अन्दाज में बरमूड़ा पहने में हाथ में पट्टा लेकर हौले-हौले परिभ्रमण करते हुए गुजरते हैं तब लगता है कि जैसे एलिजाबेथ साम्राज्य के सारे के सारे वंशज निकल पड़े हों अपने-अपने उपनिवेशों में साम्राज्यवादी मानसिकता के साथ।

अपने घरों के आस-पास साफ-सफाई पसंद ये लोग दूसरों के घरों के आस-पास जाकर जिस तरह से श्वान उत्सर्जन के दैनन्दिन प्रभातकालीन अनुष्ठान की पूर्णाहुति करवाते हैं, तब लगता है कि वाकई ये स्वच्छता के ब्राण्ड एम्बेसेडर ही हैं। इन श्वान संरक्षकों के जाने के बाद जब लोग जगते हैं तब जगह-जगह पड़ी श्वान विष्ठा के नजारों को देख कर पता चलता है कि श्वानों की प्रभातफेरी अभी-अभी निपट चुकी है।

कुत्तों की भी अपनी कोई इज्जत है कि नहीं। कुत्तों को परिवार के सदस्य के रूप में साथ रखकर श्रद्धा और आदर-सम्मान देने वालों का भी दायित्व है कि वे कुत्तों की इज्जत के बारे में सोचें ताकि नंग-धडंग कुत्तों और कुतियाओं को खुले में शौच जाने में शर्म महसूस न हो। इनकी आबरू के बारे में दूसरा कोई सोचने वाला नहीं, यह काम हम ही को करना है।

घर-घर बनाने होंगे कुत्तों के लिए इज्जत घर। जिस तरह से कुत्तों को घरों में प्रश्रय और सम्मानजनक स्थान मिल रहा है, उसे देख कर कोई आश्चर्य नहीं कि श्वानों को पालने वाले बड़े घरानों, साहबों और वैभवशाली समुदाय द्वारा श्वान प्रासाद की कोई नई योजना ही लागू न करवा दी जाए।

स्वच्छता की बुनियाद पर इन श्वानों के मल उत्सर्जन का सवेरे-सवेरे बना रहने वाला बेशर्म नैसर्गिक दौर हमारी स्वच्छता को चिढ़ाता हुआ ही नज़र आता है। देश के लिए यह भी एक ऎसा ज्वलन्त मुद्दा है जिस पर हमारे नीतिकारों की नज़र नहीं पड़ पाई है।

अब भी समय है कि हम देश के कुत्तों और कुतियाओं के हितों के बारे में सोचे-समझे और कुछ ऎसा करें कि कुत्तों को शौच के लिए बाहर नहीं जाना पड़े और वे यह सहूलियत घर में ही प्राप्त कर सकें। अन्यथा सर्दी और बरसात के दिनों में प्रभातकालीन दौरा कितना अधिक कष्टसाध्य होता होगा, यह तो मिस्टर कुत्ते और मिसेज कुतियाएं ही बयाँ कर सकती हैं।

क्यों न जो लोग कुत्ता पालते हैं उनके लिए घर में ही कुत्ता-शौचालय स्थापित किया जाए ताकि कुत्तों के कारण से फैलने वाली गंदगी भी समाप्त हो जाए और कुत्तों की आरामतलब जिन्दगी में कोई खलल भी नहीं पड़े। फिर साहबों, सेठों और नौकरों की रोजाना की कुत्ता-चाकरी से भी मुक्ति प्राप्त हो सके।

शहरों और महानगरों की प्रभात तो कुत्तों और कुतियाओं को दीर्घ शंका निवारण कराने निकले अभिजात्यों से भरी ही दिखती है। कितना अच्छा होता यदि ये कुत्ता पालक लोग अपने घरों की स्वच्छता की तरह परिवेश की स्वच्छता के प्रति भी गंभीर होते।

कुत्तों को घरों से बाहर ले जाकर परिवेशीय गन्दगी करना भी तो स्वच्छ भारत मिशन की तोहीन ही होगी न। जो समय गुजर गया, उसकी चिन्ता छोड़ें। आज भी समय है कि हम अपने कुत्तों और कुतियाओं के लिए घरों में भी शौचालय बनवाएं।

और ऎसा करना व्यय साध्य हो तो कॉलोनियों में जगह-जगह श्वानों के लिए सामुदायिक शौचालय या सुलभ कॉम्प्लेक्स का निर्माण कराया जाना वर्तमान की सर्वोच्च प्राथमिक आवश्यकता है। सम्पूर्ण प्रकार की स्वच्छता के लिए हम इतना तो कर ही सकते हैं। इन्सान से ज्यादा जरूरी हो चला है कुत्तों के बारे में सोचना और उनके लिए सभी प्रकार के प्रबन्ध करना। कुत्तों के गौरव को बनाए रखना हम सभी का फर्ज है।

डॉ. दीपक आचार्य
www.drdeepakacharya.com