सिरोही। सिरोही, पाली, उदयपुर के आदिवासी बहुत क्षेत्रों में इन दिनों परिणय-संस्कार आयोजन की रस्में चरमोत्कर्ष पर है। प्रकृति की गोद में दूर-दूर आशियनों में रहने वाले गरासिया-गमेती वनवासियों के अपने अलग रिवाज प्रचलित है।
गांव की पंचायत में तय होती है विवाह की तिथि
आदिवासी लोक संस्कृति के जानकारो के अनुसार इनके अपने संस्कारों के आयोजन की तिथियां ब्राह्मणों और पंडितों के बगैर गांव के पटेल और कबीले के लोग तय करते हैं जिसमें चन्द्र कलाओं की तिथियों को आधार माना जाता है। चूंकि गांव में एक ही कार्यक्रम होने का विशेष ध्यान रखा जाता है।
निरक्षर आदिवासी आधुनिक जमाना
अभी सिरोही जिले के आदिवासी बहुल भाखर क्षेत्र की तरफ नजर डाले तो अधिकांश आबादी निरक्षर होने से कंकुपत्री, वाट्स एप्प आदि को नहीं समझ पाने से परंम्परागत तोर तरीका ही अपनाते हैं।
परिणय संस्कार की वेला पर नृत्य गान
यूं तो आदिवासी बाहुल्य क्षेत्रों में अधिकांश रस्म जोशीले कदमों की शानो-शोकत से भरपूर होती है। लेकिन जब परिणय संस्कार की वेला पर नृत्य गान की धुन अलग की रंग बिखेरती है।
ये बोल सुरीले और अलबेले
निचलागढ़ चौराहे पर ये युवतियां कुछ अपने अन्दाज में ये कह रही है कि जीवन में शहद का मिठास कितनी मधुमखियों के परीश्रम का छत्ता होता है जो मधुरस की धारा बहाता है। उसी प्रकार नव जोड़ा भी जीवन में एकसूत्र में बंध कर जीवन को मधुमय बनाइएं।
ये लाजवाब नजारा
आबूरोड के आस-पास वनवासी बस्तियों में पर कोई बाहरी पर्यटक की नजर पड़ जाए तो यहां की अनुठी संस्कृति देख दांतों तले उंगली दबाते दिखाई पड़ रहे है।