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Tribute: How Kader Khan changed the way Hindi film dialogue was written-कादर खान के डायलॉग, जो फिल्मों की ‘जान’ बने - Sabguru News
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कादर खान के डायलॉग, जो फिल्मों की ‘जान’ बने

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कादर खान के डायलॉग, जो फिल्मों की ‘जान’ बने

मुंबई। बहुमुखी प्रतिभा के धनी दिग्गज कलाकार कादर खान अब हमारे बीच नहीं रहे लेकिन 300 से अधिक फिल्मों में उनके दिए गए डायलॉग प्रशंसकों के दिलो-दिमाग में हमेशा जिंदा रहेंगे। कादर खान के डायलॉग का ही कमाल था कि महानायक अमिताभ के किरदार वाली कई फिल्मों ने नई ऊंचाइयों को छुआ।

कादर खान का 81 वर्ष की आयु में मंगलवार को कनाडा में निधन हो गया। वर्ष 1978 में अमिताभ बच्चन अभिनीत फिल्म ‘मुकद्दर का सिकन्दर’ में कादर खान का डायलॉग ‘जिंदा हैं वो लोग जो मौत से टकराते हैं। मुर्दों से बदतर हैं वो लोग जो मौत से घबराते हैं। आज भी लोगों की जुबां पर गाहे-बगाहे आ जाते हैं।

फिल्म में फकीर बाबा का रोल निभाने वाले कादर खान का यह डायलॉग सुख तो बेवफा है, आता है जाता है, दुख ही अपना साथी है, अपने साथ रहता है। दुख को अपना ले तब तकदीर तेरे कदमों में होगी और तू मुकद्दर का बादशाह होगा।” खूब प्रचलित हुआ।

अमिताभ के साथ 1979 में ‘मिस्टर नटवरलाल’ का कादर खान का लिखा डायलॉग आप हैं किस मर्ज की दवा, घर में बैठे रहते हैं, ये शेर मारना मेरा काम है, कोई मवाली स्मगलर हो तो मारुं मैं शेर क्यों मारुं, मैं तो खिसक रहा हूं और आपमें चमत्कार नहीं है तो आप भी खिसक लो। खूब पसंद किया गया था।

वर्ष 1983 में ‘कुली’ फिल्म जिसमें महानायक को गंभीर चोट भी लगी थी, कादर खान के उनके लिए लिखे डायलॉग ने फिल्म को नई ऊंचाइयों पर पहुंचाया। इस फिल्म में अमिताभ ने कुली का अभिनय किया था और कादर खान का यह डायलॉग बचपन से सर पर अल्लाह का हाथ और अल्लाहरक्खा है अपने साथ, बाजू पर 786 का है बिल्ला, 20 नंबर की बीड़ी पीता हूं और नाम है ‘इकबाल’। खूब गूंजा था।

महान अभिनेता की 1983 में ‘हिम्मतवाला’ फिल्म आई। इस फिल्म में कादर खान दिवंगत अमजद खान के हंसोड़ मुंशी का किरदार निभाया। कादर खान को इस फिल्म में सर्वश्रेष्ठ हास्य अभिनेता के लिए फिल्मफेयर पुरस्कार भी मिला। फिल्म में उनका डायलॉग मालिक मुझे नहीं पता था कि बंदूक लगाए आप मेरे पीछे खड़े हैं। मुझे लगा कि कोई जानवर अपने सींग से मेरे पीछे खटबल्लू बना रहा है। लोगों की जुबां पर लंबे समय तक बना रहा।

कादर खान की 1989 में आई फिल्म ‘जैसी करनी, वैसी भरनी’ के कई डायलॉग खूब प्रचलित और मशहूर हुए। फिल्म में उनका डायलॉग हराम की दौलत इंसान को शुरू शुरू में सुख जरूर देती है। मगर बाद में ले जाकर एक ऐसे दुख: के सागर में धकेल देती है, जहां मरते दम तक सुख का किनारा कभी नजर नहीं आता।

इसी फिल्म में महान अभिनेता का यह डायलॉग सुख तो बेवफा तवायफ की तरह है जो आज इसके पास कल उसके पास। अगर इंसान दुख से दोस्ती कर ले तो फिर जिंदगी में कभी उसको सुख की तमन्ना ही नहीं रहेगी।

वर्ष 1989 में ही कानून अपना-अपना फिल्म में हम का है मालूम। आरडीयू यानी रिक्शा ड्राइवर यूनियन का लीडर हूं, इसे अलावा एचजीयू मतलब हाथ्र गाड़ी की जो यूनियन है, उसका भी लीडर हूं। कोई मामूली आदमी नहीं हूं। खूब चला।

अमिताभ बच्चन के अभिनय वाली 1990 में आई ‘अग्निपथ’ को राष्ट्रीय पुरस्कार दिलाने में कादर खान के लिखे डायलॉग का प्रमुख योगदान रहा। फिल्म का डायलॉग विजय दीनानाथ चौहान, पूरा नाम, बाप का नाम दीनानाथ चौहान, मां का नाम सुहासिनी चौहान, गांव मांडवा, उम्र 36 साल नौ महीना आठ दिन और ये सोलहवां घंटा चालू है। ने जमकर धाक जमाई।

वर्ष 1990 की ‘बाप नंबरी बेटा-दस नंबरी’ में चालाक ठग का अभिनय करने वाले कादर खान के डायलॉग तुम्हें बख्शीश कहां से दूं, मेरी गरीबी का तो ये हाल है कि किसी फकीर की अर्थी को कंधा दूं तो वो उसे अपनी इंसल्ट मान कर अर्थी से कूद जाता है। ने खूब सुर्खियां बटोरी।

वर्ष 1992 में अंगार में लिखे डायलॉग के लिए कादर खान को सर्वश्रेष्ठ संवाद का फिल्मफेयर पुरस्कार मिला था। इस फिल्म का डायलॉग ऐसे तोहफे देने वाला दोस्ता नहीं होता है, तेरे बाप ने 40 साल मुंबई पर हुकूमत की है, इन खिलौनों के बल पर नहीं, अपने दम पर।

वर्ष 1994 में आतिश फिल्म का डायलॉग “जब जिंदगी की गाड़ी इश्क के पेट्रोल पर अटक जाए तो उस गाड़ी में थोड़ा सा शादी का पेट्रोल डाल देना चाहिए तो गाड़ी आगे बढ़ जाती है।” उनके प्रशंसकों की जुबां पर वर्षों तक छाया रहा।

वर्ष 1996 में कादर खान की सपूत के डायलॉग‘ कितना फर्क है तुम में और मुझ में। तुम दुश्मन को ताने मारते हो और मैं दुश्मन को गोली मारता हूं। कादर खान की 1991 में आई ‘हम’ 1997 की जुदाई और कई अन्य फिल्मों के डायलॉग भी संजीदा हैं।