अजमेर। भारत की प्रथम महिला शिक्षिका सावित्री बाई फूले की 122वीं पुण्यतिथि पर आदर्श नगर स्थित मनवार समारोह स्थल परिसर में रविवार को सावित्री बाई फुले जाग्रति संस्थान के तत्वावधान में फूले सेवा संस्थान के तत्वावधान में पुष्पांजलि कार्यक्रम आयोजित किया गया।
संस्थान अध्यक्षा सुनीता चौहान ने भारत की प्रथम महिला शिक्षिका महानायिका सावित्री बाई फूले के आलौकिक जीवन दर्शन से अवगत कराया। उन्होंने कहा कि सावित्री बाई फुले की पुण्यतिथि पर सच्ची श्रद्धांजलि यही होगी कि हम उनके बताते समाज सेवा के रास्तों को सदैव स्मरण रखें तथा उन पर चलने का संकल्प लें।
पति ज्योतिबा फुले ने अनपढ़ पत्नी सावित्रीबाई फुले को शिक्षित किया। इसके बाद वहीं सावित्री बाई फुले देश की प्रथम महिला शिक्षिका बनीं। सामाजिक कुरुतियों के खिलाफ आवाज उठाई। समाज के दबे कुचले वर्ग का सहारा बनकर उनमें शिक्षा की अलग जगाकर जाग्रति लाने का बीडा उठाया।
माखनलाल मारोठिया ने कहा कि महाराष्ट्र में ज्योतिबा फुले और सावित्री बाई फुले का नाम बडे सम्मान के साथ लिया जाता है, लेकिन माली बहुल होने के बाद भी राजस्थान में समाज के फुले दंपती को उतना सम्मान नहीं मिल पाया। ऐसे बिरले महापुरुषों की जीवन स्कूली पाठयक्रम में शामिल की जानी चाहिए।
कांग्रेस पिछडा वर्ग प्रकोष्ठ के अध्यक्ष महेश चौहान ने कहा कि यह माली सैनी समाज का सौभाग्य है कि सावित्री बाई फुले जैसी समाजसेविका इस समाज में जन्म लिया। अब हमारी जिम्मेदारी बनती है कि उनके बताए मार्ग तथा उनके अधूरे रहे सपनों को साकार रूप दें।
महापौर धर्मेन्द्र गहलोत ने कहा कि ऐसा समय जब समाज का वंचित वर्ग असहायों की भांति जीवन यापन करने को मजबूर था, सावित्री बाई फुले एक दीपक की लौ की भांति प्रकट हुई और विषम परिस्थितियों में न केवल खुद शिक्षा ग्रहण की बल्कि समस्त समाज को शिक्षित करने का बीडा उठाया।
सावित्री बाई फुले का जीवन दर्शन इस बात का गवाह है कि अच्छा काम करने के लिए भीड या अधिक संख्या की जरूरत नहीं बल्कि इच्छा शक्ति की आवश्यकता है। अच्छा काम है तो उसे करना चाहिए, लोग अपने आप जुडते जाएंगे। यह सावित्री बाई फुले के कार्यों का ही फल है कि उन्हें 122 साल बाद भी न समाज भूला और न ही यह देश।
पुष्पांजलि में मौजूद कई अन्य वक्ताओं ने भी सावित्री बाई फले के व्यक्तित्व और कृतित्व को याद किया। इस मौके पर बडगांव स्थित बाल प्रकाश आश्रम में विद्यार्थियों को फल भी वितरित किए गए।
इस अवसर पर राजेंद्र मौर्य, घीसूलाल गढ़वाल, सबा खान, एडवोकेट धर्मेन्द्र चौहान, सेवाराम चौहान, रमेश कच्छावा, मोहनलाल सांखला, नेमीचंद बेबरवाल, प्रतीक सैनी, किशन सैनी, प्रदीप कछवा, हेमराज सिसोदिया, पूनमचंद मारोठिया, मामराज सैन, अंकुर त्यागी, हनिष मारोठिया, सुभाष गहलोत, गजेन्द्रदत्त मोर्य, सतीश सैनी, सोभागमल पालडिया, सूरजमल गहलोत, राजू सांखला, राम कन्या गहलोत, महेन्द्र चौहान, अजय तुनवाल, यशोनंदन चौहान, राजेन्द्र दत्त मौर्य, सतीश सांखला, रमेश चौहान, किशन सैनी, सतीश सैनी, रमेश सतरावला, आशा सांखला, उर्मिला मारोठिया, गीता कच्छावा, उर्मिला कच्छावा, उषा चौहान, अभिलाषा विश्नोई, मीरा मारोठिया, नरेन्द्र टांक, शिव प्रताप इंदौरा, विजय लक्ष्मी सिसोदिया, सुशीला चौहान, संदीप तंवर, विजय मौर्य समेत बडी संख्या में माली सैनी समाज तथा गणमान्यजन मौजूद रहे।
कौन थीं सावित्री बाई फुले
सावित्रीबाई फुले का निधन 10 मार्च 1897 के दिन हुआ था। उन्हें महिलाओं के लिए काम करने के लिए जाना जाता है। उनका जन्म एक दलित परिवार में 3 जनवरी, 1831 में महाराष्ट्र के सतारा में एक छोटा से गांव नायगांव में हुआ था। सिर्फ 9 साल की उम्र में उनकी शादी 13 साल के ज्योतिराव फुले से कर दी गई थी।
सावित्रीबाई फुले ने सामाजिक भेदभाव और कई रुकावटों के बावजूद उन्होंने अपनी शिक्षा पूरी की और बाकी महिलाओं को भी शिक्षित करने का बीड़ा उठाया। सावित्रीबाई फुले को भारत की पहली महिला अध्यापिका और नारी मुक्ति आंदोलन की पहली नेता कहा जाता है।
सावित्री बाई फुले ने अपने पति क्रांतिकारी नेता ज्योतिराव फुले के साथ मिलकर लड़कियों के लिए 18 स्कूल खोले थे। पहला स्कूल 1848 में पुणे बालिका विद्यालय खोला था। उन्होंने समाज में प्रचलित ऐसी कुप्रथाओं का विरोध किया जो खासतौर से महिलाओं के विरूद्ध थी। उन्होंने सतीप्रथा, बाल-विवाह और विधवा विवाह निषेध के खिलाफ आवाज उठाई और जीवनपर्यंत उसी के लिए लड़ती रहीं।
उन्होंने एक विधवा ब्राह्मण महिला को आत्महत्या करने से रोका और उसके नवजात बेटे को गोद लिया। उसका नाम यशवंत राव रखा, पढ़ा-लिखाकर उसे डॉक्टर बनाया। सन 1897 में बेटे यशवंत राव के साथ मिलकर प्लेग के मरीजों के इलाज के लिए अस्पताल खोला।
उन्होंने 28 जनवरी 1853 को गर्भवती बलात्कार पीडि़तों के लिए बाल हत्या प्रतिबंधक गृह की स्थापना की। सावित्रीबाई ने उन्नीसवीं सदी में छुआ-छूत, सतीप्रथा, बाल-विवाह और विधवा विवाह निषेध जैसी कुरीतियां के विरुद्ध अपने पति के साथ मिलकर काम किया। प्लेग के मरीजों की देखभाल करते हुए वो खुद भी इसकी शिकार हुईं और 10 मार्च 1897 को अंतिम सांस ल्भ्ं