नई दिल्ली। मुस्लिम समाज में तीन तलाक की प्रथा को गैर-कानूनी तथा गैर-जमानती अपराध बनाने संबंधी नया विधेयक आज लोकसभा में पेश किया गया जिसमें पुराने विधेयक के कुछ प्रावधानों में महत्त्वपूर्ण बदलाव किया गया है।
‘मुस्लिम महिला (विवाह अधिकार संरक्षण) विधेयक, 2017’ लोकसभा में 28 दिसंबर 2017 को पारित हुआ था और कुछ प्रावधानों को लेकर विपक्ष के विरोध के कारण राज्यसभा में लंबित है।
सरकार ने इस बीच विभिन्न राजनीति दलों तथा विशेषज्ञों से चर्चा कर प्रावधानों में संशोधन करते हुए 19 सितंबर 2018 को इस संबंध में एक अध्यादेश जारी किया था और सोमवार को इसके लिए सदन में नया विधेयक ‘मुस्लिम महिला (विवाह अधिकार संरक्षण) विधेयक, 2018’ पेश किया गया।
पुराने विधेयक के अनुसार पुलिस किसी की भी शिकायत पर संज्ञान लेते हुए मामला दर्ज कर सकती थी। साथ ही इसमें जमानत की कोई गुंजाइश नहीं थी। नए विधेयक में अपराध गैर जमानती ही है, लेकिन पीड़िता के अनुरोध पर सुनवाई के पश्चात यदि मजिस्ट्रेट को लगता है कि आरोपी को जमानत देने के उपयुक्त आधार हैं तो वह जमानत दे सकता है।
इसके अलावा यह भी प्रावधान किया गया है कि सिर्फ पीड़िता पत्नी, उससे खून का रिश्ता रखने वालों और शादी से बने उसके संबंधियों की शिकायत पर ही मामला दर्ज किया जाएगा।
विधेयक में तीन तलाक या तलाक-ए-बिद्दत को गैर-कानूनी बनाया गया है तथा तीन तलाक देने वाले को तीन साल तक की सजा और जुर्माने का प्रावधान किया गया है।