नई दिल्ली। ट्रिपल तलाक पर रोक लगाने से संबंधित नया विधेयक विपक्ष के कड़े विरोध और मत विभाजन के बाद शुक्रवार को लोकसभा में पेश कर दिया गया। इस दौरान विधेयक के गुणदोषों एवं प्रक्रियागत मसलाें पर सत्ता पक्ष एवं विपक्ष के बीच तीखी तकरार हुई।
मस्लिम महिला (अधिकारसंरक्षण) विधेयक 2019 को सदन में पेश करने की कार्यवाही आरंभ हुई तो ऑल इंडिया मजलिसे इत्तेहादुल मुसलमीन के सदस्य असदुद्दीन ओवैसी ने कहा कि वह इस विधेयक पर आपत्ति व्यक्त करना चाहते हैं। इस पर अध्यक्ष ओम बिरला ने कहा कि आपत्ति तभी की जा सकती है जब विधेयक को कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद सदन में पेश कर दें।
ओवैसी की आपत्ति को कांग्रेस नेता अधीर रंजन चौधरी सहित कई विपक्षी नेताओं का समर्थन मिला। प्रसाद ने कहा कि विधेयक मुस्लिम महिलाओं को न्याय दिलाने के लिए है। सुप्रीमकोर्ट ने तीन तलाक की प्रथा को अवैध बताते हुए कहा था कि इस बारे में सरकार को कानून बनाना चाहिए। उच्चतम न्यायालय के आदेश के बाद भी 229 ऐसे मामले आए हैं। उन्हाेंने कहा कि नए कानून से तलाक की इस प्रथा का दुरुपयोग करने की प्रवृत्ति पर रोक लगेगी।
कांग्रेस के शशि थरूर, रिवोल्यूशनरी सोशलिस्ट पार्टी के एन के प्रेमचंद्रन और ओवैसी ने आपत्ति व्यक्त करते हुए कहा कि इससे कई संवैधानिक प्रावधानों और मौलिक अधिकारों का उल्लंघन होता है।
प्रसाद ने इन आपत्तियों को खारिज करते हुए कहा कि तीन तलाक राेकने के लिए विधेयक को 2017 और 2018 में दो बार इसी सदन से पारित किया जा चुका है और यह मुस्लिम महिलाओं के सम्मान के बारे में है।
औवेसी ने कहा कि अगर आप मुस्लिम महिलाओं की इतनी चिंता करते हैं तो आप सबरीमला के मुद्दे पर हिन्दू महिलाओं के बारे में चिंता क्यों नहीं करते। बाद में उन्होंने इस विधेयक को पेश किए जाने से पहले मत विभाजन की मांग की। मत विभाजन में 186 सदस्यों ने समर्थन में और 74 सदस्यों ने इसके विरोध में वोट दिया। बहुमत के समर्थन को देखते हुए विधेयक पेश किया गया।
वर्ष 2017 और 2018 में भी तीन तलाक से संबंधित विधेयक लोकसभा में दो बार पारित किया गया था लेकिन राज्यसभा में अटक गया था। सोलहवीं लाेकसभा भंग होने के बाद संबंधित विधेयक राज्यसभा में स्वत: निरस्त हो गया था और नया विधेयक 21 फरवरी को जारी अध्यादेश के स्थान पर लाया गया है।