त्रिपुरा हाई कोर्ट ने राज्य के सभी मंदिर परिसरों में पशु बलि की बलि पर पुरी तर से रोक लगा दी है। हाई कोर्ट के इस आदेश के बाद प्रसिद्ध शक्ति पीठ माता त्रिपुरेश्वरी मंदिर में 500 साल पुरानी परम्परा के तहत प्रतिदिन दी जाने वाली बलि पर भी रोक लग जाएगी। दरअसल राज्य सरकार की ओर से हर दिन एक बलि यहाँ दी जाती रही है, जो यहाँ की परंपरा है।
चीफ जस्टिस संजय करोल और जस्टिस अरिंदम लोढ़ की बेंच ने कहा, “अन्य मंदिरों की तरह, त्रिपुरेश्वरी मंदिर की नियमित गतिविधियों में सरकार की भूमिका सीमित है। सरकारी पैसे का इस्तेमाल मंदिर में रोज एक बकरी की बलि देने के लिए करना संविधान के अनुच्छेद 25(2)(a) में बताई गई सेकुलर गतिविधि के तहत नहीं ।
कोर्ट ने आगे कहा, “समाज में सुधार लाने के लिए सभी कुरीतियों को खत्म करने के लिए बदलाव लाना राज्य की जिम्मेदारी है। ऐसी प्रथाओं का हिस्सा बनने की बजाय, राज्य को मंदिरों में जानवरों की बलि के खिलाफ कानून लाना चाहिए क्योंकि यह व्यवस्था, नैतिकता और स्वास्थ्य के खिलाफ है।”
यह पशु अधिनियम, 1960 के क्रूरता निवारण अधिनियम के प्रावधानों के भी खिलाफ है। एक मंदिर में जानवर की बलि, जो कि धर्म का अनिवार्य हिस्सा नहीं है, संविधान के अनुच्छेद 21 का भी उल्लंघन है।
आदेश में कहा गया है कि भक्त किसी भी जानवर को व्यक्तिगत विश्वास, भरोसे या इच्छा से मंदिर में ले जा सकते हैं ।लेकिन, पशु को सुरक्षित वापस लाना होगा और किसी भी परिस्थिति में पशु बलि की किसी भी गतिविधि को करने की अनुमति नहीं दी जाएगी।
हाई कोर्ट ने मुख्य सचिव और सभी जिलों के पुलिस अधीक्षकों को निर्देश दिया है त्रिपुरा के उन मंदिरों में CCTV कैमरा लगाए जाएं, जहां बलि दी जाती है।