सच्चा मित्र | समाज में हम किसी ना किसी रूप से जुड़े हैं। सभी रिश्ते नाते बहुत ही अनमोल है इन्हीं सब रिश्तो में एक रिश्ता ऐसा है जिन्हें ऊपर वाला खून के रिश्ते में बांधना भूल जाता है। उसे सच्चा मित्र बना कर भेज देता है। दोस्ती और जीवन देखा जाए तो एक सिक्के के दो पहलू हैं। सच्चा मित्र जीवन के लिए एक ऐसा उपहार है जो किसी भी कीमत पर खरीदा नहीं जा सकता। आजकल की भागती जिंदगी में दोस्ती का मायना ही बदल गया है।
पर देखा जाए तो मित्र ही ऐसा शख्स है जो हमेशा कंधे से कंधा मिलाकर खड़ा पाया जाता है। दुख हो या सुख सच्चा मित्र कभी भी अपने दोस्त को अकेला नहीं होने देता याद करिए किसी की बिटिया की शादी विदाई के बाद सभी रिश्तेदार वापस, आंगन पंडाल पूरा खाली तब मित्र का हाथ ही कंधे पर होता है और धीरज बंधाता कहता है, मैं हूं ना इन शब्दों से वह सारा जहां जीत जाता है।
मित्रता कीजिए सुदामा की तरह मित्रता कीजिए दूध और पानी की तरह ना मैं तुम्हें खोना चाहता हूं ना तेरी याद में रोना चाहता हूं। जब तक जिंदगी है दोस्त मैं हमें हमेशा तुम्हारे साथ रहूंगा बस यही बात हमेशा कहना चाहता हूं। मित्रता एक कांच के गहने जैसा है टूटे तो बनाने वाला भी रोता है और तोड़ने वाला भी रोता है कोई कहता है। दोस्ती एक जीवन की बहुत सुंदर रचना है इससे बढ़कर कोई अनमोल खजाना नहीं है।
कोई कहता है दोस्ती नशा बन जाती है
कोई कहता है दोस्ती सजा बन जाती है
पर दोस्ती अगर सच्चे दिल से करें।
तो दोस्ती जीने की वजह बन जाती है।
एक दिन सुदामा ने श्रीकृष्ण से कहा, “मित्र मुझे दोस्ती या मित्रता कैसी होनी चाहिए इसका मतलब बता दो” तब श्री कृष्ण ने कहा, “जहां मतलब है वहां दोस्ती (मित्रता) नहीं रह सकती है” ।
मुझे ना धन दौलत ना प्यार चाहिए
जो हमेशा साथ दें ऐसा यार चाहिए।
हजारों दोस्तों का क्या करना मुझे
बस एक दोस्त ईमानदार आप जैसा चाहिए।