शिप्रा नदी | की उतप्ति का उल्लेख हिंदू धर्मग्रंथों में मिलता है । ऐसा माना जाता हैं कि बहुत समय पहले भगवान शिव ने ब्रह्म कपाल लेकर, भगवान विष्णु से भिक्षा मांगने पहुंचे। तब भगवान विष्णु ने उन्हें अंगुली दिखाते हुए भिक्षा प्रदान की। इस अशिष्टता से भगवान भोलेनाथ नाराज हो गए और उन्होंने तुरंत अपने त्रिशूल से विष्णु जी की उस अंगुली पर प्रहार कर दिया। अंगुली से रक्त की धारा बह निकली। जो विष्णुलोक से धरती पर आ पहुंची। और इस तरह यह रक्त की यह धार, शिप्रा नदी में परिवर्तित हो गई। शिप्रा नदी के किनारे स्थित घाटों का भी पौराणिक महत्व है।
जिनमें रामघाट मुख्य घाट माना जाता है। कहते हैं भगवान श्रीराम ने पिता दशरथ का श्राद्धकर्म और तर्पण इसी घाट पर किया था। इसके अलावा नृसिंह घाट, गंगा घाट, पिशाचमोचन तीर्थ, गंधर्व तीर्थ भी प्रमुख घाट हैं।शिप्रा नदी के किनारे स्थित सांदीपनी आश्रम में भगवान श्रीकृष्ण, बलराम और उनके प्रिय मित्र सुदामा ने विद्या अध्ययन किया था। हिंदू धर्मग्रंथों में वर्णित है कि राजा भर्तृहरि और गुरु गोरखनाथ ने भी इस पवित्र नदी के तट पर तपस्या से सिद्धि प्राप्त की।
हमारे देश में शिप्रा, गंगा, सरस्वती और नर्मदा आदि ऐसी अनेक नदियां हैं जो पवित्र मानी जाती हैं । ये नदियां ना तो मैली होती हैं और ना ही इनका जल अशुद्ध होता है। उज्जैन में मां शिप्रा का काफी पौराणिक महत्व हैं ।