बलात्कार |बढ़ती बलात्कार की घटनाओं को कैसे रोका जाये? पिछले दिनों देश में एक के बाद एक बच्चियों के साथ बलात्कार और दर्दनाक हत्या की खबरें आ रही हैं पूरे देश को सोचने पर विवश करने वाली हैं। पहले अलीगढ़ से टिवंकल की खबर आती है फिर बांदा, उन्नाव, बदायूं, मेरठ, बड़ौत, सीतापुर, कानपुर व उत्तर-प्रदेश के शहर जुड़ते हैं लोगों को लगता है कि उत्तर प्रदेश जंगल राज की ओर है मगर दिल्ली, राजस्थान, गुजरात, हरियाणा, पंजाब और मध्यप्रदेश की घटनायें यह स्पष्ट कर देती हैं कि यह घटनायें किसी राज्य तक सीमित नहीं है और न ही किसी एक समुदाय विशेष तक।अपितु पूरा देश ही इनकी चपेट में है और देश स्तर से लेकर राज्य स्तर तक इस तरह की घटनाओं को रोकने के लिए ठोस व प्रभावी कदम उठाने होंगें नहीं तो रणनीति पर चलकर ऐसे तत्वों को तत्काल कठोर संदेश देना होगा।
अभी अभी कठुआकाण्ड पर निचली अदालत का फैसला आया है। उसमें बहुत सी बातें साफ होनी हैं, मामला ऊपर की अदालतों में जायेगा। नयी नयी परतें खुलेंगी। कुछ चौंकाने वाली बातें सामने आ जाये तो कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए।यह ऐसा मामला है जिस पर सबसे अधिक चर्चा प्रदर्शन कैंडिल मार्च हुए हर तरह के माध्यमों से बयानवाजी की झड़ी लग गई। बात केवल अदालत के फैसले या करने वाले की नहीं होती है बात है कि कोई निर्दोष सजा न पाये। न्याय समय से मिलने के साथ साथ न्याय हुआ है यह दिखना भी चाहिए अन्यथा देरी से हुआ न्याय भी अन्याय से बड़ा हो जाता है और अपराधी अपने आप तो अपनी विकृति मानसिकता की पुनरावृत्ति करते ही हैं। इनके जैसे अन्य भी दुष्कृत्य करने में संकोच न करते हैं। बात यहां एक मामले की नहीं है बात है ऐसे अनेक मामलों की जब अपराधी अपराध कर बलात्कार कर सात साल या दो तीन की सजा काटकर बाहर आ जाते हैं और बार बार बलात्कार करते हैं जैसा कि अलीगढ़ काण्ड का एक अपराधी है। दूसरी ओर पीड़िता भारी मानसिक व शारीरिक कष्ट सहने के बाद जान से जाती है अथवा जीवन भर जिन्दा होकर भी मर मर कर जीती है। इनके माता पिता असहनीय मानसिक पीड़ा उठाते हैं। ऐसे मामलों में कई बार सर्वोच्च न्यायालय ने भी पीड़ितों को इच्छा मृत्यु देने से मना कर दिया है।
अब बात ऐसे एक दो मामलों में सड़क पर प्रकट होने वाले कभी मोमबत्तियां जलाने और कभी पोस्टर लेकर सड़क पर निकल कर आने वालों की करते हैं।वह पिछले दिनों में एक दर्जन से अधिक बलात्कार की घटनाओं के बाद चुप क्यों हैं।असिष्णुता वाले कहां गये।उनके कान परं जूं क्यों न रेंग रहीं है। मीडिया में शोर क्यों नहीं मचा रहे। अखबारों में बड़े बड़े ले नहीं लिख रहे। वाशिंगटन पोस्ट द गार्जियन और हिन्दू में परिचर्चायें नहीं छपवा रहे।क्या कठुआ की बच्ची और इन सबमें कोई पृथ्वी और मंगल ग्रह सा अन्तर है अथवा अपने आकाओं के इशारे का इन्तजार है।ऐसे मामलों पर कठोर सजा का विरोध करने वालों मानव अधिकार का ढिढोंरा पीटने वालों समूहों संगठनों की संवेदनशीलता कहां हैं या वास्तव में सबके सब मदारी के बन्दर से हो।यह मत भूलों आज जैसी घटनायें हो रही है यदि इनको समय से न रोका गया जल्दी कठोर उपाय न किये गये तो आपके घर भी न बचेंगे। इन वहशी दरिन्दों के हाथ कहीं पर भी पहुंचने लगेंगे।इनका कोई जाति वर्ग समुदाय और पन्थ नहीं है।अतः अभी भी जाग जाओ यह सबके हित में है।
भारत सरकार ने पिछले दिनों पाक्सो एक्ट सोलह साल से कम वालों के लिए अलग से सजा ऊपर वालों के लिए मृत्यु दण्ड आदि के प्रावधान किये हैं पर यह अब तक प्रभावी नहीं हैं और न पर्याप्त ही हैं। उसका सबसे बड़ा कारण है कि बाकी का सिस्टम वहीं का वहीं पर है लागू करने वाले वही हैं चार्जशीट दाखिल करने वाले न्याय देने या दिलाने वाले पुरानी व्यवस्था से निकले हैं।काम करने के तौर तरीके वहीं के वहीं हैं तो बदलाव की उम्मीद कैसे की जा सकती है। सरकार को यहां पर भी एक बड़ी सर्जिकल स्ट्राइक करनी पड़ेगी। इनके काम करने के तरीके और कामकरने के लिए सालों से इनके अन्दर बनी नीति और नियति को बदलना होगा।अन्यथा आपके कानून आपकी बैठकें आपके कठोर आदेश कागजों पर तो अधिक से अधिक मजबूत और प्रभावशाली दिखेंगे पर जमीन पर इनका कोई असर न होगा। इन विकृत मानसिकता वालों के लिए इनको पीछे से समर्थन करने वालों को भी साफ साफ सन्देश न जायेगा।
केन्द्र व राज्य सरकारों को ऐसे अपराधियों के बारें में गम्भीरता से सोचना होगा जो छूटते ही बार बार अपराध करते हैं उसमें भी तीन-तीन बलात्कार करने में कोई संकोच भय नहीं है।ऐसे लोगों के लिए अमेरिका-ईरान जैसे कठोर उपाय करने पड़ेंगे। अमेरिका में बलात्कार की सजा पाये अपराधियों के लिए इंजेक्शन या गोलियों का प्रावधान है जिससे वह कुछ सालों के लिए नपुंसक हो जाता है।बिना ऐसी दवा लिये उसे जेल से छोड़ा ही नहीं जाता है। अमेरिका ने ऐसे मामलों में मानवधिकार वालों या कैंडिल मार्च जैसे गैंग को सदैव अनदेखा किया है। भारत सरकार को तत्काल सोचना पड़ेगा कम सजा वाले बलात्कारी लगातार दुष्कृत्यों को अंजाम दे रहे हैं। सरकार न केवल उनके लिए कठोर कानून बनाये अपितु ऐसों पर लगातार नजर रखी जाये। ऐसा अपराधी जिस क्षेत्र का हो उस क्षेत्र के थानाध्यक्ष को ऐसी घटना होने पर सीधे अपराधी मानकर उस पर भी वही कार्यवाही हो जो सम्बन्धित अपराधी पर की जा रही हो। इसके बाद सबसे महत्वपूर्ण बात है कि अन्य गणनाओं के साथ साथ यह भी गणना हो कि ऐसे अपराध किस वर्ग समुदाय जाति के लोग अधिक करते हैं।उनको चिन्हित कर उनको समुदाय के अनुसार भी अतिरिक्त दण्ड का प्रावधान रखा जाये। साथ ही साथ सरकार ऐसे अपराधी के परिवार को कम से कम दस साल के लिए समस्त सरकारी अधिकारों व सुविधाओं सें वन्चित कर दे।तभी कानून व सरकार के द्वारा कुछ जमीनी परिणाम की आशा की जा सकती है।
इस तरह के मामलों में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका यदि कोई निभा सकता है तो वह समाज है समाज के अर्न्तगत परिवार की भूमिका है। ऊपर से जितने अधिक मामले यह कानून सरकार के लगते हैं उतने हैं नहीं।बल्कि सरकार कानून के साथ बड़े भाई की भूमिका समाज की है।बिना समाज के सहयोग के समाज में इस तरह के मामलों में जागरूकता गम्भीरता के सही और समय से अपेक्षित परिणाम की आशा नहीं की जा सकती है।हमे ध्यान देना होगा कि जबसे समाज परिवार की व्यवस्थायें कमजोर हुई हैं। यहां पर मैं समाज की रूढ़ियों-कुरीतियों की बात नहीं कर रहा हूं। नियमों-मान्यताओं को तोड़ने का प्रचलन बढ़ा है। सामूहिक जिम्मेदारी के स्थान पर व्यक्तिवाद बड़े बूढ़ों की अनदेखी आरम्भ हुई है। समाज के प्रमुख लोगों ने सारी जिम्मेदारी सरकार और उसके कानून पर डाल दी है।अपराधों का ग्राफ बढ़ा है। अब समाज या परिवार का अपराधियों में कोई खौफ नहीं है। न ही समाज परिवार पहले जैसे सबसे प्रभावी बहिष्कार जैसे निर्णय कर पा रहे हैं। इसके लिए समाज सरकार से बदलते शिक्षा संस्कृति के स्वरूप उसमें नैतिक मूल्यों की गिरावट पर कोई दबाव बना पा रहा है। ज्ञान का जीवन के लिए पशुता से मानवता में बदलने वाला माध्यम जब रास्ते से भटकता है अथवा कुछ लोगों समूहों के लिए भटकाया जाता है। तो इससे निकली पीढ़ी से ऐसे परिणाम निकलना स्वाभाविक है।
अतः अब समय आ गया कि परिवार और समाज भी अपनी जिम्मेदारी समझें। कोई घटना प्रभाव पूरे परिवार और समाज पर माना जाये।सड़क पर निकलने वाली बहू बेटी पहले की तरह सबकी हो जाये घर का दायरा अपने घर से निकलकर पूरे मुहल्ले तक पहुंच जाये।कोई यदि गलती करे या थोड़ा भी साहस करे तो पूरा समाज एक स्वर से उसका विरोध कर दे सालों तक सामाजिक धार्मिक बहिष्कार कर दे। शिक्षा पद्धति में सुधार के लिए दबाव बनायें। अपराधों के लिए बने कानूनों का दुरुपयोग न हो अपराधी एक जैसे अपराध बार बार न कर सकें सरकार का कानूनविदों का ध्यान आकर्षित किया जाये।तो संभव है कि जिम्मेदारी के दोनों पहियों समाज और सरकार के सही दिशा में आगे बढ़ने से अपराध और अपराधियों पर अंकुश लग सके।प्रचार प्रसार में अधिक अच्छा लगने वाला नारा बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओं वास्तव में भी माता-पिता के कानों को सुख शान्ति प्रदान करें।